दिवालिया एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत एक दुर्लभ मामले में अमेरिका का निवेश फंड डेक्कन वैल्यू इन्वेस्टर्स एमटेक ऑटो के ऋण समाधान पर फोर्स मेजर (अप्रत्याशित घटना) प्रावधान का हवाला देते हुए सौदे से पीछे हट गया है। डेक्कन वैल्यू का कहना है कि कोविड-19 महामारी के कारण एमटेक ऑटो के प्रदर्शन में और गिरावट आई है। डेक्कन वैल्यू ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि उसने जनवरी में अच्छी भावना से कंपनी के पुनरुद्घार की विस्तृत रणनीति के साथ एमटेक ऑटो के लिए समाधान योजना सौंपी थी।
डेक्कन वैल्यू ने कहा, ‘मार्च में कोविड के प्रसार की वजह से पूरी अर्थव्यवस्था में औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट तेज हो गई। वाहन क्षेत्र पर इसका व्यापक असर पड़ा है और एमटेक ऑटो की वित्तीय स्थिति और ज्यादा खराब हो गई। ऐसे में कंपनी के लिए डेक्कन वैल्यू का वाणिज्यिक आकलन बेकार हो गया।’ समाधान योजना में कहा गया था कि महामारी के कारण एमटेक के प्रदर्शन में अगर ज्यादा असर पड़ता है तो डेक्कन वैल्यू फोर्स मेजर प्रावधान का इस्तेमाल कर सकती है।
हालांकि वाणिज्यिक अनुबंधों में फोर्स मेजर का प्रावधान सामान्य है लेकिन आईबीसी के मामले में ऋणदाताओं की समिति आम तौर पर इस तरह के प्रावधान पर सहमत नहीं होती है। लेकिन डेक्कन वैल्यू ने जब प्रस्ताव सौंपा था, उस समय कोविड का प्रसार चीन तक सीमित था और ऋणदाताओं ने इस प्रावधान को मंजूरी दे दी थी। मामले के जानकार सूूत्रों के अनुसार समझा जाता है कि डेक्कन वैल्यू ने फोर्स मेजर का उपयोग करने के बारे में ऋणदाताओं को इस माह की शुरुआत में ही लिखा था। साथ ही यह भी कहा था कि मौजूदा शर्तों के तहत कंपनी के लिए समाधान योजना लागू करना संभव नहीं होगा क्योंकि वाणिज्यिक परिदृश्य काफी बदल गया है। कंपनी ने कहा कि प्रदर्शन पर फोर्स मेजर प्रावधान लागू होने से यह योजना अब व्यवहार्य नहीं रह गई है।
इससे एमटेक के समाधान में और जटिलताएं बढ़ सकती हैं। एमटेक ऑटो के लिए कॉरपोरेट ऋणशोधन समाधान प्रक्रिया तीन साल से भी ज्यादा समय से चल रही है। एमटेक भारतीय रिजर्व बैंक की गैर-निष्पादित आस्तियों (एनसीए) की पहली सूची में शामिल थी, जिसे आईबीसी के तहत ऋण समाधान में ले जाना था। कॉरर्पोरेशन बैंक द्वारा राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट में जाने के बाद कॉरपोरेट ऋणशोधन समाधान प्रक्रिया शुरू की गई थी।
एमटेक पर ऋणदाताओं का करीब 12,500 करोड़ रुपये बकाया है। डेक्कन वैल्यू ने करीब 2,700 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी, जिनमें से 500 करोड़ रुपये अग्रिम भुगतान करना था और शेष 2,200 करोड़ रुपये भविष्य में नकदी प्रवाह से भुगतान किया जाना था। इससे पहले डेक्कन वैल्यू ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर कोविड के प्रभाव का आकलन करने तथा ऋणदाताओं की समिति के साथ सौदे की शर्तों पर चर्चा के लिए मोहलत की मांग की थी।
