कोविड-19 महामारी का बड़ी कंपनियों की तुलना में छोटी फर्मों और उनके कर्मचारियों पर बड़ी मार पड़ी है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में इनकी बिक्री और आय में तेज गिरावट आई है, जिसकी वजह से कई छोटी फर्मों को बड़ी फर्मों की अपेक्षा अपनी परिचालन लागत, खास तौर पर कर्मचारियों की लागत में ज्यादा कटौती करनी पड़ी है।
छोटी आकार की सूचीबद्घ कंपनियों (बिक्री के हिसाब से शीर्ष 200 में शामिल नहीं) के वेतन और पारिश्रमिक खर्च में अप्रैल से सितंबर 2020 के दौरान पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 10.3 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान उनकी शुद्घ बिक्री भी 25.3 फीसदी घटी है।
इसके परिणामस्वरूप छोटी फर्मों के वेतन और पारिश्रमिक पर होने वाला खर्च चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 9 तिमाहियों में सबसे कम रहा। जून तिमाही को छोड़ दें तो शुद्घ बिक्री भी 12 तिमाही में सबसे कम रही है।
दूसरी ओर शीर्ष 100 कंपनियों के वेतन और पारिश्रमिक मद में खर्च पहली छमाही के दौरान 0.6 फीसदी बढ़ा है, वहीं उनकी शुद्घ बिक्री में सालाना आधार पर 13 फीसदी की कमी आई है। शीर्ष 100 के बाद वाली 100 कंपनियों का वेतन खर्च 2.3 फीसदी कम हुआ हैै, वहीं उनकी शुद्घ बिक्री में 18.4 फीसदी की गिरावट आई है। यह विश्लेषण विभिन्न क्षेत्रों की 2353 सूचीबद्घ कंपनियों के तिमाही नतीजों के नमूने पर आधारित है। हालांकि इसमें बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां शामिल नहीं हैं।
इस विश्लेषण से पता चलता है कि छोटी कंपनियों ने छंटनी, वेतन कटौती आदि के जरिये अपनी कर्मचारी लागत में आक्रामक तरीके से कटौती की है। एचएसबीसी सिक्योरिटीज ऐंड कैपिटल मार्केट्स (इंडिया) की प्रांजुल भंडारी और आयुषी चौधरी ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है, ‘आंकड़े बताते हैं कि छोटी फर्में बड़ी कंपनियों की तुलना में कर्मचारियों के खर्च में ज्यादा कटौती की है।’
टीमलीज की सह-संस्थापक और कार्यकारी उपाध्यक्ष रितुपर्णा चक्रवर्ती ने कहा, ‘एमएसएमई ने पहले वेतन में कटौती की और फिर कर्मचारियों की छंटनी की क्योंकि आय और नकदी प्रवाह में अचानक आई कमी को सहने में वे समर्थ नहीं थीं। स्पष्ट है कि उनके पास बड़ी कंपनियों जितनी पूंजी नहीं होती है।’
इसके उलट अप्रैल 2018 से दिसंबर 2019 के बीच छोटी फर्मों में कर्मचारियों की लागत में तेज वृद्घि देखी गई थी। इस दौरान इन कंपनियों के वेतन-भत्ते के खर्च में 20 फीसदी का इजाफा हुआ था जबकि शीर्ष 100 कंपनियों का वेतन-भत्ता मद में खर्च 12 फीसदी बढ़ा था।
उन्होंने रिपोर्ट में लिखा है, ‘बड़ी और छोटी कंपनियों के बीच बढ़ती असमानता भी व्यक्तिगत स्तर पर बढ़ती खाई की वजह हो सकती है। बड़ी कंपनियों के मुकाबले छोटी कंपनियों में श्रम का इस्तेमाल अधिक होता है। ऐसे में अगर छोटी कंपनियों का प्रदर्शन खराब रहता है तो इससे बड़ी संख्या में लोगों पर असर पड़ता है।’
वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में सूचीबद्ध शीर्ष 100 कंपनियों का शुद्ध मुनाफा (अतिरिक्त आय एवं नुकसान समायोजित करने के बाद) सालाना आधार पर 24.1 प्रतिशत कमजोर रहा। इसी अवधि के दौरान नीचे से 2,150 कंपनियों का शुद्ध मुनाफा सालाना आधार पर 76.4 प्रतिशत कम रहा। इसकी तुलना में अगली 100 कंपनियों का शुद्ध मुनाफा पहली छमाही में सालाना आधार पर 43.8 प्रतिशत रहा। एक छोटे आकार की कंपनी (शुद्ध बिक्री के लिहाज से शीर्ष 100 कंपनियों को छोड़कर) की शुद्ध बिक्री सितंबर तिमाही में 58 करोड़ रुपये रही और इस अवधि में उन्होंने वेतन एवं मजदूरी (औसतन) 7 करोड़ रुपये खर्च किए। दूसरी तिमाही में ही एक मझोले आकार की कंपनी की शुद्ध बिक्री 18 करोड़ रुपये रही और एवं वेतन एवं मजदूरी के मद में 2 करोड़ रुपये खर्च हुए। इसकी तुलना में दूसरी तिमाही में शीर्ष 100 कंपनियों में शामिल किसी एक कंपनी की शुद्ध बिक्री (औसतन) 7,644 करोड़ रुपये रही और वेतन एवं मजदूरी पर 1,253 करोड़ रुपये खर्च हुए। इन कंपनियों की सूची में माध्य स्तर पर आने वाली कंपनी की शुद्ध बिक्री 3,782 करोड़ रुपये रही थी, जबकि वेतन एवं मजदूरी पर उनका खर्च दूसरी तिमाही में 295 करोड़ रुपये रहा था। कुछ लोगों का कहना है कि छोटी कंपनियों का प्रदर्शन कमजोर बना रहा तो इसका असर बड़ी कंपनियों पर भी हो सकता है।