दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों को आशंका है कि सरकार के साथ ‘अनुबंधात्मक समझौते’ से जुड़ी मौजूदा लाइसेंस व्यवस्था की जगह नियामक द्वारा प्रस्तावित नई ‘अथॉराइजेशन व्यवस्था’ उनके निवेशकों और निवेशों के लिए खतरा पैदा कर सकती है। इससे बड़ी नियामकीय अनिश्चतता पैदा हो सकती है।
इस कदम पर रिलायंस जियो, भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया लिमिटेड के बीच व्यापक सहमति है और वे ताकत के साथ इसका विरोध कर रही हैं। इनमें से कुछ की दलील है कि नई व्यवस्था उनके संविदात्मक अधिकारों को सीमित करेगी और सरकार द्वारा जारी किए गए किसी भी विशिष्ट नियम और शर्तों को चुनौती देने का उनका अधिकार सीमित हो जाएगा।
ये चिंताएं भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) की 18 सितंबर की सिफारिश के बाद सामने आई हैं। ट्राई ने दूरसंचार कंपनियों के साथ समझौता करने के बजाय उन्हें नए दूरसंचार अधिनियम के तहत सर्विस अथॉराइजेशन प्रदान करने का सुझाव दिया है। यह भी कहा गया है कि अथॉराइजेशन एक संक्षिप्त दस्तावेज होना चाहिए जिसमें नियमों के माध्यम से निर्धारित सेवा के लिए आवश्यक जानकारी और नियम व शर्तें शामिल हों।
हालांकि दूरसंचार कंपनियों ने स्पष्ट कर दिया है कि अथॉराइजेशन संबंधित नियमों में केवल आवेदन प्रक्रिया, पात्रता की शर्तें आदि जैसे व्यापक पहलुओं के लिए ही प्रावधान होना चाहिए, विस्तृत नियम व शर्तें सरकार और सेवा प्रदाता के बीच अनुबंध का हिस्सा बनी रहनी चाहिए। मंगलवार को संचार मंत्री माधव राव सिंधिया के साथ शीर्ष दूरसंचार अधिकारियों की बैठक में भी इस मामले पर चर्चा हुई थी।
एक प्रमुख दूरसंचार कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने इस कदम के विपरीत प्रभावों का जिक्र करते हुए कहा कि निवेशक (चाहे वैश्विक हों या घरेलू) चिंतित होंगे। इससे नियामकीय स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी क्योंकि नियमों में लगातार बदलाव हो रहे हैं और उन्हें चुनौती देने के लिए विकल्प बहुत कम हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब कई दूरसंचार कंपनियां वैश्विक निवेशकों की ओर देख रही हैं तो यह बदलाव निवेशकोंको पुनर्विचार पर मजबूर करेगा। दूरसंचार कंपनियों का यह भी कहना है कि मौजूदा लाइसेंसिंग व्यवस्था में बड़े परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह पिछले 25 वर्षों से अच्छी तरह काम कर रही है और अगर अथॉराइजेशन व्यवस्था लागू भी करनी है तो उसमें वर्तमान लाइसेंस व्यवस्था की संविदात्मक प्रकृति को बनाए रखना चाहिए, जिसे बदला नहीं जा सकता।
दूरसंचार कंपनियों ने कहा है कि अथॉराइजेशन समझौते में किसी भी बदलाव की स्थिति में सरकार के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह किसी भी परिवर्तन को लागू करने से पहले दूरसंचार कंपनियों के साथ आपसी सहमति बनाए।