भारत बायोटेक वृद्धि के अगले चरण का खाका तैयार कर रही है। इसके तहत कंपनी नए टीके, क्लीनिकल परीक्षण, विनिर्माण संयंत्र, साझेदारी आदि पर 3,000 से 4,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। भारत बायोटेक अब टीकों पर ही नहीं बल्कि चिकित्सा क्षेत्र, विशेष रूप से घावों के उपचार के लिए दवाओं पर भी ध्यान केंद्रित करेगी। इसके साथ ही उसकी नजर पशुओं के लिए टीके बनाने वाली दुनिया की प्रमुख कंपनी बनने की है।
भारत बायोटेक के कार्यकारी उपाध्यक्ष कृष्णा एल्ला ने कहा, ‘कोरोना महामारी के दौरान हमने कोवैक्सीन तथा अन्य टीकों के विकास पर 600 से 700 करोड़ रुपये का निवेश किया था और अब हमें इससे कहीं ज्यादा मिल चुका है।’ उन्होंने कहा, ‘हमारी आय बढ़ी है मगर हमने कंपनी से मुनाफा या लाभांश नहीं लिया है। मैं सारा पैसा टीबी आदि के लिए भविष्य में टीकों के विकास पर शोध एवं विकास तथा पूर्वी भारत में विनिर्माण क्षमता बढ़ाने में लगा रहा हूं।’
एल्ला ने कहा कि भविष्य की सभी परियोजनाओं के लिए 3-4 हजार करोड़ रुपये से कम नहीं लगेंगे और इनमें से सबसे ज्यादा निवेश क्लीनिकल परीक्षण पर होगा। जब एल्ला से पूछा गया कि इसके लिए कंपनी पूंजी जुटाने पर विचार कर रही है या आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने का इरादा है तो उन्होंने कहा, ‘हम आइपीओ लाने की नहीं सोच रहे हैं मगर यह समय बताएगा कि कंपनी में किस तरह के बदलाव की जरूरत है।
हमारी अगली पीढ़ी कंपनी में शामिल हो रही है और अंतत: उन्हें ही इस बारे में निर्णय लेना है। अगर कंपनी को सूचीबद्ध कराना है तो इस बारे में मेरा परिवार निर्णय करेगा, मैं वैज्ञानिक ही बना रहना चाहता हूं।’ उन्होंने कहा कि भारत बायोटेक 1996 में शुरू होने के बाद से ही मुनाफे में रही है।
एल्ला के बेटे रैचेस एल्ला प्रशिक्षित क्लीनिकल शोधार्थी हैं और कंपनी में बतौर मुख्य विकास अधिकारी शामिल हुए हैं। वह भविष्य में टीके के विकास की जिम्मेदारी संभालेंगे।
भारत बायोटेक की इकाई ओडिशा के भुवनेश्वर में 1,200 करोड़ रुपये की लागत से विनिर्माण संयंत्र लगा रही है। इस संयंत्र में नए टीके बनाए जाएंगे और वैश्विक आपूर्ति के लिए ठेके पर भी विनिर्माण किया जाएगा। हैदराबाद, बेंगलूरु, पुणे और अंकलेश्वर में भी कंपनी की विनिर्माण इकाई हैं।
एल्ला ने कहा कि महामारी के बाद दुनिया भर में उत्पादन क्षमता जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है और अफ्रीकी तथा लैटिन अमेरिकी देश भी अब क्षमता बढ़ा रहे हैं। अब देशों की इकाइयों को वहां होने वाली बीमारियों (जैसे लीशमैनियासिस) पर ध्यान देना होगा और बढ़ी हुई क्षमता का इस्तेमाल उनके लिए दवा तथा टीके बनाने में करना होगा।
एल्ला ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘उदाहरण के लिए हम नॉन-टाइफाइडल सैमोनेला की परियोजना पर काम कर रहे हैं। यह पोल्ट्री से मनुष्यों में फैलता है और अफ्रीका में यह बड़ी समस्या है। हमने वेलकम ट्रस्ट और मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के साथ साझेदारी की है और बाल्टीमोर में परीक्षण का पहला चरण पूरा हो गया है। अब हम अफ्रीका में दूसरे और तीसरे चरण का परीक्षण कर रहे हैं। हमें इस तरह की स्थानीय समस्याओं को देखना होगा और अतिरिक्त क्षमता का बेहतर उपयोग करने के उपाय तलाशने होंगे।’
एल्ला पशुओं के टीके पर भी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि अगली महामारी पशुओं में आ सकती है। उन्होंने कहा, ‘हम पशुओं के लिए भी टीका बनाते हैं क्योंकि पशु किसानों – डेरी, पोल्ट्री आदि के लिए बहुत अहम हैं। हम जल्द ही दुनिया की सबसे बड़ी पशु टीका विनिर्माता कंपनी बन सकते हैं। हम अफ्रीका पर ध्यान दे रहे हैं क्योंकि चीन की कंपनियां तेजी से अफ्रीका में पहुंच रही हैं मगर भारत की पशु टीका कंपनियों की अफ्रीका में उतनी पैठ नहीं है।’ कृष्णा एल्ला की कंपनी बायोवेट पशुओं के लिए टीका बनाती है।
इसी तरह एल्ला की बेटी डॉ. जलाचारी एल्ला प्रशिक्षित त्वचारोग विशेषज्ञ हैं। वह घावों, जलने आदि के उपचार के लिए कंपनी की इकाई का नेतृत्व कर रही हैं।
भारत बायोटेक ने हैजा के उपचार के लिए भी टीका बनाया है, जिसके लिए लाइसेंस लेने की प्रक्रिया चल रही है। टीबी के टीके पर दक्षिण अफ्रीका में तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है। कंपनी जीएसके के मलेरिया टीके मॉस्क्यूरिक्स का भारत में उत्पादन करेगी, जिसकी आपूर्ति दुनिया भर में की जाएगी।