दबावग्रस्त फर्मों ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से शिकायत की है कि परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियां (एआरसी) विदेशी फंडों की मदद से ऐसेट स्ट्रिपिंग में लिप्त हैं।
एक दबावग्रस्त कंपनी ने आरबीआई को लिखे पत्र में कहा है कि बैंकों से ऋण का अधिग्रहण करने के बाद एआरसी एक प्रभावी ‘बेनामी ढांचे’ के जरिये वेंचर फंडों को पिछले दरवाजे से प्रवेश दे रही हैं जो फिलहाल केवल कंपनियों के पुनर्गठन अथवा प्रतिभूतिकरण के लिए उपलब्ध है।
एक एआरसी के शीर्ष अधिकारी ने संपर्क करने पर कहा कि ट्रस्ट ढांचे के तहत शेयरधारक हस्तक्षेप सकते हैं और इसके विपरीत विदेशी निवेशक शिकायत कर रहे हैं कि उन्होंने जिन कंपनियों में ट्रस्टों के माध्यम से निवेश किया है उनमें उन्हें पर्याप्त जगह नहीं दी गई है। एआरसी के अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि आरबीआई ने जुलाई में एआरसी के अनुपालन के लिए निष्पक्ष व्यवहार संहिता को जारी किया था।
दबावग्रस्त कंपनियों का कहना है कि परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियां आरबीआई द्वारा निर्धारित 12 महीने तक के पुनर्गठन में विफल हो रही हैं। उन्होंने केंद्रीय बैंक से पूछा है कि क्या सरफेसी ऐक्ट के तहत भारतीय रुपये में ऋण के अधिग्रहण के लिए किसी गैरपंजीकृत विदेशी क्रेडिट फंड को स्थानीय एआरसी के पंजीकरण और उसके प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने की अनुमति है।
वास्तव में आरबीआई के लिखे पत्र में कहा गया है कि परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियां वैश्विक फंडों को विशेष तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से भारी छूट पर दबावग्रस्त ऋण के अधिग्रहण के लिए अपने प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल की अनुमति दे रही हैं ताकि कंपनी के लिए किए गए भुगतान को प्रभावी तौर पर एंटरप्राइज मूल्य बनाया जा सके और समयबद्ध तरीके से पुनर्गठन किया जा सके।
पत्र में कहा गया है, ‘लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के ऋणदाताओं के लिए एक धोखाधड़ी की जा रही है क्योंकि फंड स्थायी स्तर पर ऋण के पुनर्गठन से इनकार कर रहे हैं और उसके बजाय बेहद सामान्य रिटर्न की मांग कर रहे हैं। इस लिहाज से वे सही स्थायी ऋण स्तर के आकलन के लिए सलाहाकरों की नियुक्ति करने में विफल रहे हैं और वे 12 महीनों की निर्धारित समय सीमा के भीतर पुनर्गठन को पूरा करने में भी विफल रहे हैं।’