दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) की कानूनी व्यवस्था, जो पट्टेदाताओं को अपने विमानों को विमानन कंपनियों से वापस लेने से रोकती है, की वजह से घरेलू विमानन कंपनियों को पट्टे के अधिक किराये में 1.2 से 1.3 अरब डॉलर का अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा था। नागरिक विमानन मंत्रालय ने आज यह जानकारी दी।
विमान पट्टादाता जब यह देखते हैं कि स्थानीय कानूनी व्यवस्था उन्हें दिवालिया हो चुकी विमानन कंपनी से विमान जल्दी वापस लेने की अनुमति नहीं दे रही है, तो वे अधिक पट्टा किराया वसूलते हैं। पट्टे की लागत उन भारतीय विमानन कंपनियों के मामले में खासा बड़ा व्यय साबित होती है, जिनके विमान बेड़े का लगभग 80 प्रतिशत भाग पट्टा व्यवस्था के अंतर्गत होता है।
मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि पट्टे के अधिक किराये की इस लागत का बोझ जनता पर डाल दिया जाएगा, जिससे सभी मार्गों पर किराया बढ़ जाएगा। इसके परिणामस्वरूप कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने बुधवार को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें विमान और उनके इंजनों से संबंधित सभी समझौतों को आईबीसी की धारा 14 में निर्दिष्ट ऋण स्थगन अधिकार से छूट दी गई है।
इसलिए अगर अब कोई विमानन कंपनी दिवालिया हो जाती है, तो वह धारा 14 का हवाला नहीं दे सकती है और अदालत से पट्टादाताओं को विमान वापस लेने से रोकने के लिए कह सकती है। गो फर्स्ट ने राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) में दिवालिया आवेदन दायर करने के बाद 3 मई को उड़ानों का परिचालन बंद कर दिया था।