तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यब एर्दोआन के साथ घनिष्ठ संबंधों के इतिहास वाले किसी तुर्की नागरिक की एयर इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी के रूप नियुक्ति से कुछ सवाल उठे हैं। पिछले सप्ताह नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक के क्षेत्र में कार्यरत टाटा समूह ने घोषणा की थी कि टर्किश एयरलाइंस के पूर्व प्रमुख इल्कर आयची 1 अप्रैल तक एयर इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी के रूप में पदभार संभाल लेंगे।
सूत्रों ने कहा कि हालांकि सरकारी अधिकारियों द्वारा अब तक कोई आपत्ति नहीं जताई गई है, लेकिन एर्डोगन के साथ आयची की निकटता के कारण इस प्रक्रिया में सामान्य से ज्यादा वक्त लग सकता है। तुर्की के राष्ट्रपति ने बार-बार भारत विरोधी रुख अपनाया है, जिसमें कश्मीर नीति के संबंध में पाकिस्तान का समर्थन करना भी शामिल है।
अगर चेयरमैन, प्रबंध निदेशक, मुख्य कार्याधिकारी और/या मुख्य वित्त अधिकारी का पद किसी विदेशी नागरिक के पास हो, तो गृह मंत्रालय द्वारा वार्षिक सुरक्षा जांच की जरूरत होती है। इस सुरक्षा जांच के दौरान कुछ प्रतिकूल पाया जाता है, तो लाइसेंसधारी के लिए गृह मंत्रालय का निर्देश बाध्यकारी होता है। फिलहाल एयर इंडिया का परिचालन पांच सदस्यों वाली एक समिति द्वारा किया जा रहा है, जिसमें चार परिचालनगत निदेशक और नियंत्रक कंपनी टाटा संस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष निपुण अग्रवाल शामिल हैं।
सूत्रों ने कहा कि एयर इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी के लिए टाटा समूह की तलाश में तकरीबन तीन महीने की प्रक्रिया थी, जिसका नेतृत्व शीर्ष स्तर के अधिकारियों की तलाश करने वाली फर्म एगॉन जेहंडर ने किया था। इस फर्म का टाटा समूह के साथ काम करने का लंबा इतिहास रहा है तथा टाटा संस और टाटा मोटर्स के लिए शीर्ष अधिकारियों की तलाश में भी मददगार रही है। टाटा ने इस विषय में कोई टिप्पणी नहीं की।
आयची ने वर्ष 2015 में टर्किश एयरलाइंस के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला था। उनकी निगरानी में यह विमान कंपनी 373 विमानों के बेड़े के साथ 128 देशों में 328 गंतव्यों को जोडऩे वाली बड़ी विमान कंपनी बन चुकी है। वर्ष 2014 में इसने 261 विमानों के बेड़े के साथ 108 देशों में 261 गंतव्यों के लिए उड़ान भरी थी।
इस्तांबुल के नए हवाई अड्डे पर जाने का बड़ा कदम, बड़े आकार वाले विमानों के ऑर्डर और कोर्गो कारोबार की वृद्धि भी उनके कार्यकाल में हुई।
दिसंबर 1999 में पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों द्वारा इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 के अपहरण के बाद विमान कंपनी और हवाई अड्डों के साथ काम करने वाले निदेशकों और अधिकारियों के लिए सुरक्षा मंजूरी की आवश्यकता अनुभव की गई थी। हालांकि तब तुरंत कोई निर्णय नहीं लिया गया था, लेकिन वर्ष 2006 में दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के निजीकरण के बाद यह मामला उठाया गया था।
एक संसदीय समिति ने जीएमआर समूह के संबंध में सवाल उठाए थे, जो विदेशी नागरिक को अपनी हवाईअड्डा परियोजना के प्रमुख के रूप में नियुक्त करके दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निजीकरण और आधुनिकीकरण कर रहा था। तब सरकार ने विमान अधिनियम में संशोधन किया और अनिवार्य सुरक्षा मंजूरी के प्रावधान को शामिल किया।
वर्ष 2018 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने विमान कंपनियों और हवाई अड्डों को यह कहते हुए चेतावनी दी थी कि वह उन विमान कंपनियों और गैर-अनुसूचित परिचालकों का परिचालन निलंबित कर देगा, जो पूर्व सुरक्षा मंजूरी के बिना निदेशकों की नियुक्ति करते हैं।
विदेशी नियुक्तियों के लिए सुरक्षा मंजूरी हासिल करने की प्रक्रिया पर काम कर चुके विमान कंपनियों के अधिकारियों ने कहा कि हालांकि पहले तीन महीने से अधिक का समय लगा करता था, लेकिन गृह मंत्रालय ने पिछले दो वर्षों में इस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर दिया है और अब इसमें अधिकतम 60 दिन लगते हैं।