अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा तकरीबन 50 साल पुराने विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (एफसीपीए) पर रोक लगाए जाने से अमेरिका में अदाणी समूह के खिलाफ कानूनी कार्यवाही में देरी हो सकती है या संभावित रूप से रुक सकती है। विशेषज्ञों ने यह संभावना जताई है। उन्होंने कहा कि एफसीपीए के प्रवर्तन दिशानिर्देशों की न्याय विभाग की समीक्षा के परिणाम और रोक की अवधि पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत होगी।
कानूनी फर्म ऋषभ गांधी ऐंड एडवोकेट्स के संस्थापक ऋषभ गांधी ने कहा, ‘यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कार्यकारी आदेश एफसीपीए से संबंधित मौजूदा और पिछली कार्रवाइयों की समीक्षा का निर्देश देता है और इन मामलों का भविष्य अटॉर्नी जनरल द्वारा निर्धारित नए दिशानिर्देशों पर निर्भर करेगा।’
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सोमवार को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें अमेरिकी न्याय विभाग को निर्देश दिया गया है कि विदेशों अधिकारियों को उनसे संबंधित देशों में कारोबार हासिल या बरकरार रखने की कोशिश करते हुए रिश्वत देने के आरोपी अमेरिकियों के सभी उत्पीड़न को रोका जाए। साल 1977 में बनाया गया एफसीपीए अमेरिकी शेयर बाजार में सूचीबद्ध विदेशी कंपनियों और अमेरिकी कंपनियों को कारोबार हासिल करने या बरकरार रखने के लिए विदेशी अधिकारियों को रिश्वत देने से रोकता है।
नवंबर 2024 में अमेरिकी न्याय विभाग ने अदाणी समूह के संस्थापक गौतम अदाणी, उनके भतीजे सागर अदाणी और कंपनी के अन्य अधिकारियों पर एफसीपीए का उल्लंघन करने की साजिश, प्रतिभूति धोखाधड़ी और वायर धोखाधड़ी जैसे आरोपों में अभियोग लगाया था। अभियोग में आरोप लगाया गया कि अदाणी समूह ने आकर्षक सौर ऊर्जा अनुबंध हासिल करने के लिए भारतीय सरकारी अधिकारियों को 25 करोड़ डॉलर से ज्यादा के भुगतान से जुड़ी रिश्वतखोरी योजना बनाई थी।
ट्रंप का सोमवार का आदेश एफसीपीए के कार्यान्वयन को रोकता है और अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को कानून से संबंधित मौजूदा और पिछले फैसलों की समीक्षा करने तथा प्रवर्तन के लिए नए दिशानिर्देश बनाने का आदेश देता है।
रॉयटर्स की खबर के अनुसार आदेश पर हस्ताक्षर करते वक्त ट्रंप ने कहा कि इसका मतलब अमेरिका के लिए बहुत ज्यादा कारोबार होने वाला है। इससे पहले ट्रंप ने इसे भयानक कानून बताया था और कहा था कि इसे लागू करने के मामले में दुनिया अमेरिका पर हंस रही थी।
अकॉर्ड ज्यूरी के मैनेजिंग पार्टनर अलय रजवी ने कहा कि ट्रंप के कार्यकारी आदेश के बाद न्याय विभाग (डीओजे) चल रहे विदेशी रिश्वतखोरी के मामलों को प्राथमिकता से हटा सकता है या खारिज कर सकता है। उन्होंने कहा कि इससे प्रवर्तन कमजोर हो सकता है और इसलिए कंपनियों को अमेरिकी अभियोजन के डर के बिना संदिग्ध सौदों में शामिल होने का साहस मिल सकता है, जिससे संभावित रूप से भ्रष्टाचार का जोखिम बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि वित्तीय निगरानी के लिए अमेरिका पर निर्भर रहने वाले देश अब अपने घरेलू भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को कड़ा कर सकते हैं, जिससे स्थानीय नियामकों पर बोझ बढ़ सकता है।