किसानों का कहना है कि प्रति बीघा 75-80 हजार खर्च कर देने के बाद अब 10-15 हजार मिलना मुश्किल हो गया है | फोटो क्रेडिट: Pexels
Tomato Price: तेज गर्मी, अधिक उत्पादन और मांग से ज्यादा बाहरी राज्यों से आवक के चलते उत्तर प्रदेश में टमाटर की खेती करने वाले किसानों का बुरा हाल है। हालात इतने खराब है कि दाम न मिलने की वजह से किसान टमाटर सड़कों के किनारे फेंक रहे हैं या मुफ्त में बांट रहे हैं। उत्तर प्रदेश में थोक मंडियों में टमाटर 500 रुपए क्विंटल बिक रहा है, जबकि किसानों को इसकी कीमत 200-300 रुपए क्विंटल भी नहीं मिल रही है।
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, भदोही, चंदौली, मिर्जापुर, गाजीपुर, जौनपुर और वाराणसी सहित पूर्वांचल के दर्जन भर जिलों में टमाटर की जमकर खेती होती है। इस बार सीजन की शुरुआत में टमाटर का भाव थोक मंडियों में तेज था, जिसके चलते मुनाफे की आस में किसानों रकबा बढ़ाकर खेती की थी। प्रदेश में सबसे ज्यादा टमाटर की खेती सोनभद्र जिले में होती है, जहां इस बार करीब 8000 एकड़ में इसे बोया गया था। लोगों के मुफ्त में टमाटर बांटने और सड़कों के किनारे फेंकने की सबसे ज्यादा घटनाएं वहीं से सामने आ रही हैं।
यहां के किसानों का कहना है कि प्रति बीघा 75-80 हजार खर्च कर देने के बाद अब 10-15 हजार मिलना मुश्किल हो गया है। इलाके के मझोले किसान शहरयार बताते हैं कि घाटा इतना बड़ा हो गया है कि अगले साल टमाटर की खेती से अभी से हाथ जोड़ लिया है। उनका कहना है कि पिछले साल टमाटर की खेती ने खासा मुनाफा दिया था, जिसके बाद बहुत से लोगों ने इस बार उंचे किराए पर खेत लेकर बुआई की थी।
इस बार हालात इतने खराब है कि पिछले हफ्ते मिर्जापुर की थोक मंडी में टमाटर के 30 किलो वाले कैरेट का दाम महज 32 रुपए लगाया गया। सोनभद्र के ही किसान वीरेंद्र बताते हैं कि टमाटर के दाम इतने अस्थिर रहते हैं कि इसकी खेती से डर लगने लगा है। खाद, बीज और कीटनाशक का अच्छा-खासा खर्च करने के बाद इलाके के किसान दाम न मिलने से कंगाल हो गए हैं। उनका कहना है कि पूर्वांचल के इन जिलों में कोल्ड स्टोरों की भी कमी है और टमाटर को अपने घर पर बहुत दिन तक बचा पाना मुश्किल होता है।
वीरेंद्र के मुताबिक कोल्ड स्टोरों में महंगे किराए पर भंडारण करने के बाद भी जरूरी नहीं कि आगे बेचने पर लागत निकल पाएगी। गौरतलब है कि मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली की टमाटर नेपाल व खाड़ी देशों तक भेजा जाता रहा है। बीते कुछ सालों से इसका निर्यात नहीं हो रहा और स्थानीय बाजारों में कीमत गिरती जा रही है। किसानों का कहना है कि इस बार फसल तैयार होने के तुरंत बाद से आढ़तियों ने औने-पौने दामों पर खरीद शुरू कर दी थी।
मंडी में स्थानीय फसल के आने से पहले ही बाहरी राज्यों का टमाटर भर चुका था, जिसके चलते यहां के किसानों को दाम नहीं मिले। मिर्जापुर के किसान अजय बताते हैं कि टमाटर में लगातार घाटे को देखते हुए अब मिर्च की खेती का चलन बढ़ रहा है। मिर्च के दाम स्थिर रहते हैं और इसके भंडारण को लेकर समस्या कम आती है। हाल के वर्षों में मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली के किसान मिर्च की खेती करने लगे हैं जिसके दाम भी ठीक मिल जाते हैं।