गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए कृषि संसाधनों का बेहतर प्रबंधन हो

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 4:56 PM IST

संयुक्त राष्ट्र की सहयोगी संस्था खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने कृषि और वानिकी क्षेत्र के संसाधनों का बृहतर आबंटन करने को कहा है।


एफएओ के मुताबिक, ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब एक तिहाई की है, लिहाजा पर्यावरण परिवर्तन से जूझने और असंतुलन दूर करने के लिए संसाधनों का बेहतर वितरण बहुत जरूरी है।

एफएओ के सहायक महानिदेशक एलेक्जेंडर मूलर ने कहा कि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने में किसानों और जंगलों में रहने वालों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है। उल्लेखनीय है कि ग्रीन हाउस गैसों के कुल सालाना उत्सर्जन में कृषि और वानिकी क्षेत्र की मौजूदा भागीदारी 30 फीसदी की है।

जंगलों की कटाई से जहां 17.4 फीसदी उत्सर्जन होता है, वहीं 13.5 फीसदी उत्सर्जन के लिए खेती जिम्मेदार है। ग्रीन हाउस गैसों में शामिल मीथेन की बात करें तो इसके कुल उत्सर्जन के 50 फीसदी के लिए तो अकेले कृषि क्षेत्र ही जिम्मेदार है। धान और पशुपालन इसकी मुख्य वजह है।

नाइट्रेजन उर्वरकों के जबरदस्त इस्तेमाल से नाइट्रस ऑक्साइड के कुल सालाना उत्सर्जन का 75 फीसदी खेती के चलते हो रहा है। मूलर के मुताबिक, करीब 40 फीसदी बायोमास उत्सर्जन के लिए किसान, पशुपालक या आदिवासी जवाबदेह हैं।

बकौल मूलर, ”अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर्यावरण परिवर्तन के खिलाफ चल रही मुहिम जीत सकता है, बशर्ते इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए तैयार कर लिया जाए।”

मूलर ने कहा कि पर्यावरण परिवर्तन से जूझने के अभियान में खेती और वानिकी क्षेत्रों की क्षमता का उपयोग करने के लिए वित्तीय समर्थन की जरूरत है। इसके लिए पूरी दुनिया के किसानों विशेषकर विकासशील देशों के लघु-भूमि किसानों और आदिवासियों पर फोकस करना होगा।

अन्यथा पर्यावरण परिवर्तन का किसानों, उनकी मवेशियों, जंगल उपयोग करने वालों, मछुआरों आदि पर काफी बुरा असर पड़ेगा। खासकर उन किसानों पर बुरा प्रभाव पड़ने का अनुमान है जो पर्यावरणीय दृष्टि से दोयम दर्जे के हैं।

आशंका है ऐसे किसानों को तुरंत ही फसलों और पशुधन का नुकसान झेलना पड़ सकता है। वहीं मछुआरों को बढ़िया गुणवत्ता के मछलियों की कमी हो सकती है।

इतना ही नहीं जंगली उत्पादों के उत्पादन में भी कमी आना तय माना जा रहा है। मूलर के अनुसार, कृषि और वानिकी क्षेत्रों से उत्सर्जन थामने और कम करने के लिए कई तरह के हस्तक्षेप संभव हैं।

जैसे-फसलों की ज्यादा सक्षम किस्मों के उपयोग, जंगली आग पर काबू, प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर प्रबंधन, भूमि को बंजर होने से बचाना, मृदा का जैविक प्रबंधन और कृषि और कृषि-वानिकी ढांचे का संरक्षण आदि।

इसके अलावा, गोबर से निकलने वाली बायोगैस का संचय और उर्वरकों का प्रभावशाली इस्तेमाल भी पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी हैं।

First Published : January 5, 2009 | 10:37 PM IST