हमेशा से दिक्कतों से जूझते रहने वाले भारतीय चीनी उद्योग के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि चीनी की कीमतों में मजबूती बनी रहेगी।
अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन के कार्यकारी निदेशक पीटर बैरॉन ने कहा है कि दुनिया भर में अधिकता का चरण अब खत्म हो चुका है और विश्व बाजार अब कमी की ओर बढ़ रहा है इसकी वजह से उद्योग को कुछ राहत मिल सकती है।
बैरॉन का कहना है कि पहली बार इन तीन सालों में दुनिया भर में चीनी का उत्पादन वर्ष 2008-09 में 16.23 करोड़ टन हो जाएगा। जबकि दीर्घ अवधि में चीनी की खपत में औसतन वृद्धि 2.5 फीसदी होगी और यह बढ़कर 16.59 करोड़ टन हो जाएगी।
हालांकि वैश्विक कमी बैरॉन के अनुमान से भी ज्यादा रहेगी। इसकी वजह यह है कि उन्होंने भारत में चीनी उत्पादन में 56 लाख टन की कमी का अनुमान लगाया था जो कि 90 लाख टन हो जाएगा। उनका कहना है कि अगले मौसम में उत्पादन में कमी और भी ज्यादा होगी।
ये सभी संकेत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि दुनिया भर में चीनी की कीमतें मजबूत रहेंगी। इस बीच भारत के लिए यह मौसम बहुत अच्छे संकेत दे रहा है। गन्ना उत्पादन में सबसे आगे रहने वाले राज्यों मसलन महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में फरवरी की शुरुआत में ही गन्ने की कटाई खत्म हो गई है।
चीनी उद्योग को पिछले दो सालों में बहुत ज्यादा घाटा हुआ है। गन्ने की बुआई के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जमीन में कमी और खराब मौसम की वजह से भी हाल के दिनों गन्ने की पेराई के दिनों में भी काफी कमी आई है।
पिछले तीन सालों में पेराई के मौसम की अवधि 143 दिनों से 180 दिन रही है। वर्ष 2006-07 में 35.6 करोड़ टन गन्ने का उत्पादन हुआ है लगभग 180 दिनों तक पेराई का काम हुआ। इसी वजह से चीनी का उत्पादन 2 करोड़ 83 लाख 30 हजार टन हुआ।
दक्षिण भारत के राज्यों को छोड़कर देश की अन्य मिलें मार्च की शुरूआत में ही गन्ने की पेराई का काम बंद कर देंगी। फिलहाल यह उद्योग चीनी के उत्पादन में 165 लाख गिरावट की उम्मीद कर रहा है। इसके अलावा गन्ने से चीनी की रिकवरी में 1 फीसदी की कमी आई है।
इस मौसम में फैक्टरियों में खोई और शीरा भी उतना ज्यादा तैयार नहीं हो पा रहा है कि बिजली उत्पादन और एथनॉल तैयार हो सके ताकि चीनी से जुड़ी जिंसों के कारोबार में जोखिम कम किया जाए। भारत में चीनी उत्पादन में बलरामपुर चीनी दूसरे स्थान पर है।
बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक का कहना है कि इसके उत्पादन में वर्ष 2008-09 में लगभग 40 फीसदी की गिरावट हो सकती है। इन सभी वजहों से भी चीनी उद्योग पर गन्ने की कीमतों को लेकर बहुत दबाव बन रहा है।
उत्तर प्रदेश की सरकार ने गन्ने की कीमत में 12 फीसदी की बढ़ोतरी कर 140 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। इसे दिल्ली के चीनी जारी करने के निर्देश के संदर्भ में भी देखना चाहिए। हालांकि सरकार चीनी के लिए जो कोटा जारी करती है वह बाजार के गणित से ही तय नहीं होती।
भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन(एस्मा)के अध्यक्ष ओम धानुका का कहना है कि जब सरकार को यह महसूस हो जाएगा कि देश की चीनी की सबसे ज्यादा खपत औद्योगिक उपभोक्ता ही करते हैं और समय-समय पर अधिक कीमतों के लिए शोर भी वही मचाते हैं तो वह इसे बंद भी कर सकती है।
मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक भारत की प्रति व्यक्ति चीनी की खपत 19.8 किलोग्राम है। लेकिन इसमें भी गिरावट आ सकती है, अगर इसका औद्योगिक इस्तेमाल अलग हो जाएगा। भारतीय लोग बहुत कम चीनी की खपत करते हैं इसकी वजह उनकी भोजन की अलग शैली भी है। वैसे राशन की दुकान पर यह मौजूद होता ही है।
इन परिस्थितियों में यह आश्वासन मिलना बहुत जरूरी है कि वे गन्ने की बिलों का भुगतान समय पर कर दें। चीनी फैक्टरियां खुले बाजार अपने माल बेच कर जो मुनाफा कमाती हैं वह उनके उत्पादन का 90 फीसदी होता है और उनके पास पैसे भी हमेशा होते हैं ताकि वे गन्ने की बिल का उत्पादन कर सकें।
एस्मा के महानिदेशक एस. एल. जैन का यह दावा है कि भारत में यह क्षमता है कि वह कच्ची चीनी के नियमित निर्यातक हो सकता है। पिछले मौसम में उसने अपना निर्यात कच्चे माल के तौर पर बढ़ा कर 53.5 लाख टन कर दिया, यह इस बात का सबूत है। इसके अलावा हम देश के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक हो गए जो स्थान अब तक थाईलैंड का था।
हमारे कच्ची चीनी की गुणवत्ता बहुत बेहतर मानी जाती है। इसी वजह से दुबई जो दुनिया में सबसे बड़ी रिफाइनरी मानी जाती है, उसने कच्चे माल की आपूत के लिए ब्राजील के बजाय भारत को तरजीह दी है। लेकिन यह बहुत आश्चर्यजनक भी है कि हम चीनी के शुद्ध आयातक भी बन रहे हैं।
वर्ष 2007-08 के तीनों मौसम के दौरान बहुत ज्यादा चीनी का उत्पादन हुआ। देश में अगले मौसम में इसका फायदा नजर नहीं आएगा और चीनी का आयात वर्ष 2009-10 में ज्यादा हो सकता है।
हालांकि जैन का मानना है कि भारत नियमित निर्यातक बन सकता है। इसकी वजह से किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा और उन्होंने गन्ने के रकबे में जो कमी की थी उसमें भी सुधार होगा और फसल की उत्पादकता में भी बदलाव नजर आएगा।