तेल विपणन कंपनियों द्वारा एथेनॉल के खरीद मूल्य में बढ़ोतरी न किए जाने से दुखी चीनी मिलों ने ग्रीन फ्यूल का विनिर्माण रोकने और गन्ने की पेराई के सह-उत्पाद मोलासेस को शराब बनाने वाली कंपनियों को बेचने की धमकी दी है।
चीनी मिल प्रत्येक टन मोलासेस से 225 से 260 लीटर एथेनॉल बनाते हैं हालांकि यह प्रयुक्त तकनीक पर निर्भर करता है। लेकिन, मोलासेस का एक महत्वपूर्ण हिस्से की आपूर्ति अल्कोहल बनाने वाली कंपनियों को की जाती है जो कच्चा माल खरीदने के लिए 6,000 रुपये प्रति टन तक का भुगतान करते हैं।
उद्योग से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार, ‘ ऐसी परिस्थितियां तब उभर रही हैं जब सरकार ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पेट्रोल में पांच प्रतिशत एथेनॉल मिलाना तीन साल पहले ही अनिवार्य कर दिया था। आपूर्ति की कमी के कारण यह चिंता की बात हो सकती है।’
एथेनॉलइंडिया डॉट नेट, एक वेबसाइट जो देश में इथेनॉल की मांग-आपूर्ति तथा उत्पादन-बिक्री को ट्रैक करती है, के प्रमुख सलाहकार दीपक देसाई ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘गन्ने के उत्पादन में कमी के अनुमानों के साथ सरकार की 20 प्रतिशत एथेनॉल अनिवार्य रूप से मिलाने की योजना उपलब्धता की कमी की वजह से व्यवहार्य होना संभव नहीं लगता है।’
तेल विपणन कंपनियों ने चीनी मिलों के एथेनॉल की कीमत कम से कम 30 रुपये बढ़ाने की मांग को नकार दिया है। चीनी मिल 32 रुपये से अधिक के उत्पादन लागत के एक हिस्से की भरपाई करना चाहते हैं। कंपनियों का कहना है कि तीन वर्ष के समझौते के तहत चीनी मिल परस्पर सहमति वाले मूल्य 21.50 रुपये प्रति लीटर की दर से करार की अवधि (जो अक्टूबर 2009 तक है) तक एथेनॉल की आपूर्ति करने के लिए बंधे हुए हैं।
ऑल इंडिया डिस्टिलर्स एसोसिएशन (एआईडीए) के महानिदेशक वी एन रैना ने कहा, ‘तीन साल पहले परिस्थितियां कुछ भिन्न थीं जब 21.50 रुपये प्रति लीटर के बिक्री मूल्य पर सहमति हुई थी। मोलासेस की कीमतें 600 से 700 रुपये प्रति टन के बीच है।
गन्ने के बंपर उत्पादन और रेकॉर्ड पेराई के कारण आपूर्ति के बावजूद बचत हुई थी। अब, जब इस वर्ष आपूर्ति कम हुई है और अगले सीजन में स्थिति और खराब होने का अनुमान है तो बाजार परिस्थितियों में बदलाव के साथ मूल्यों में भी सुधार होना चाहिए।’
हालांकि भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘चीनी मिलों को मूल्य बढ़ाने की जिद्द करने के बजाए परिस्थितियों में आए बदलाव को आत्मसात करना चाहिए। अक्टूबर 2009 में वर्तमान अनुबंध समाप्त होने के बाद ही मूल्य पर अगले दौर की बातचीत शुरू होगी।’
उन्होंने आश्चर्यजनक तौर पर कहा था कि चीनी मिल 21.50 रुपये प्रति लीटर से कम कीमत पर भी ग्रीन फ्यूल की आपूर्ति करने को तैयार हैं जिससे कई चीनी मिल अधिकारियों को आश्चर्य हुआ था। वास्तव में, इस कंपनी ने अपनी मांग की पूर्ति के लिए अक्टूबर 2009 तक 1,40,000 किलोलीटर ग्रीन फ्यूल का ऑर्डर दिया था।
एआईडीए खुले बाजार में इथेनॉल की बिक्री पर जोर देती है ताकि इस पर से तेल विपणन कंपनियों या सरकार का नियंत्रण खत्म हो सके। द्वारिकंश शुगर मिल के कंपनी सचिव बी जे माहेश्वरी ने कहा, ‘कच्चे तेल की भांति ही एथेनॉल की कीमत भी बाजार तत्वों द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए न कि किसी सरकारी या नियामक की बाध्यता द्वारा।’
देश को प्रति वर्ष लगभग 60 करोड़ लीटर एथेनॉल की जरूरत होती है ताकि पेट्रोल के साथ 5 प्रतिशत मिलावट के मानक को तीन वर्षों तक पूरा किया जा सके। अगर इसे बढ़ा कर 10 प्रतिशत कर दिया जाता है तो देश को 120 करोड़ लीटर एथेनॉल की आवश्यकता होगी।
तीन तेल विपणन कंपनियां- इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, बीपीसीएल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने देश भर के चीनी मिलों से 140 करोड़ लीटर की कुल खरीद का करार किया हुआ है।