डॉनल्ड ट्रंप के जवाबी कर की नीति से अमेरिका में वृद्धि को लेकर बढ़ती चिंता के बीच डॉलर कमजोर हो रहा है। अगले कुछ महीनों के दौरान रुपया स्थिर रहने की संभावना है, जिससे भारत के केंद्रीय बैंक को अपना विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने का बेहतर मौका मिलेगा। दिसंबर से फरवरी के दौरान कई बार सर्वाधिक निचले स्तर पर पहुंचने के बाद अब मार्च से रुपये में उल्लेखनीय रिकवरी देखी जा रही है। डॉलर के मुकाबले रुपया 0.44 फीसदी मजबूत हुआ है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के एक पोल के परिणामों का माध्य निकालने से पता चलता है कि जून के अंत तक डॉलर के मुकाबले रुपया 85.50 पर और सितंबर के अंत तक 85.24 प्रति डॉलर पर कारोबार करने का अनुमान लगाया जा रहा है। शुक्रवार को रुपया 85.24 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जबकि इसके पहले 85.44 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता ने कहा, ‘रुपये में गिरावट की रफ्तार धीमी रहने की संभावना है, क्योंकि अमेरिका की वृद्धि दर कम होने से डॉलर कमजोर होगा। ट्रंप द्वारा घोषित जवाबी कर अनुमान से बहुत ज्यादा है और साफतौर पर यह शुल्क में अंतर से जुड़ा हुआ नहीं है।’
शुक्रवार को डॉलर सूचकांक में गिरावट के बाद रुपया मजबूत होकर 85प्रति डॉलर के स्तर से नीचे पहुंच गया था। बाजार को उम्मीद थी कि रिजर्व बैंक डॉलर खरीदकर बाजार में हस्तक्षेप करेगा, लेकिन केंद्रीय बैंक की अनुपस्थिति ने बाजार को चकित किया। इस कैलेंडर वर्ष में पहली बार रुपया 85 रुपये प्रति डॉलर से नीचे आया और 18 दिसंबर 2024 के बाद पहली बार ऐसा हुआ। पिछले वित्त वर्ष में डॉलर के मुकाबले रुपये में 2.42 फीसदी की गिरावट आई है।
भारत पर चीन, वियतनाम और थाईलैंड जैसे क्षेत्रीय पड़ोसियों की तुलना में 26 फीसदी का कम जवाबी शुल्क लगाया गया है, इसकी वजह से भी बाजार की धारणा को बल मिला है।
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी हेड और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली ने कहा, ‘इस समय बहुत अनिश्चितता की स्थिति है। जोखिम से बचने की धारणा बढ़ रही है। ट्रंप के अहंकार और चल रहे व्यापार युद्ध के कारण दर का पूर्वानुमान लगाना बहुत कठिन है। हालांकि मुझे अगले 3 से 6 महीने में शांति की उम्मीद है और मैं अनुमान लगा रहा हूं कि एशिया के अन्य देशों की तुलना में भारत पर सबसे कम शुल्क लगेगा। ’
मार्च में रुपये ने डॉलर के मुकाबले फिर मजबूती हासिल कर ली। साल की शुरुआत में निचले स्तर पर पहुंचने के बाद विदेशी पूंजी प्रवाह के कारण ऐसा हुआ। रुपये में बहुत उतार चढ़ाव को रोकने के लिए रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा बाजार में लगातार हस्तक्षेप किया और खरीद-बिक्री स्वैप नीलामियों का आयोजन किया। इन कदमों से बैंकिंग व्यवस्था में रुपये डालने में मदद मिली और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच रुपये को समर्थन मिला। परिणामस्वरूप मार्च में रुपये में उल्लेखनीय रूप से मजबूती आई और यह करीब 88 रुपये प्रति डॉलर के निचले स्तर से ऊपर आया और इस कैलेंडर वर्ष में आई गिरावट की भरपाई हो गई।