खाद्य पदार्थो की बढ़ती कीमतों की वजह से दुनिया भर में ऐसे लोगों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है जिनके लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल होता है।
वर्ष 2008 में दो वक्त की रोटी न जुटा पाने वाले लोगों की संख्या 4 करोड़ बढ़कर 92.3 करोड़ हो गई। संयुक्त राष्ट्र की इकाई ने यह चेतावनी दी है कि अगर आर्थिक मंदी का दौर यूं ही चलता रहा तो बहुत सारे लोग भूख के दर्द को झेलने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ)के एक अनुमान के मुताबिक विकासशील देशों में कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या लगभग 90.7 करोड़ हो गई है। इसमें से लगभग 65 फीसदी लोग दक्षिण एशिया के 7 देशों, भारत, चीन, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, इथियोपिया और कॉन्गो में रहते हैं।
इस रिर्पोट का कहना है कि एशिया में बहुत बड़ी जनसंख्या है लेकिन भूख और खाद्य पदार्थो की कमी को दूर करने की रफ्तार भी बहुत धीमी है। पूरी दुनिया के भूखे लोगों में से लगभग दो-तिहाई लोग एशिया में रहते हैं।’
हालांकि सब-सहारा अफ्रीका क्षेत्र में सबसे ज्यादा कुपोषित लोगों की संख्या है। वहां हर तीन लोगों में से एक यानी लगभग 23.6 करोड़ लोग कई सालों से भूख से पीड़ित हैं। हाल के वर्षो में इन इलाकों में कुछ प्रगति भी हुई है बावजूद इसके यहां भूखे लोगों की तादाद भी बढ़ रही है।
हालांकि ऐसा अनुमान है कि लंबे समय तक भूख का दंश झेलने वालों की संख्या 1990 के दशक के अंतिम वर्षो दौरान 34 फीसदी से कम होकर मौजूदा दशक के मध्य तक 30 फीसदी हो चुकी है। एफएओ ने इस दुनिया भर में भूखे लोगों की बढ़ती तादाद की वजह खाद्य पदार्थो की बढ़ती कीमतों को ठहराया है।
इसकी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2008 के शुरुआत में कुछ महत्वपूर्ण अनाज की कीमतों में जितना इजाफा था उसमें 50 फीसदी की गिरावट जरूर आई है लेकिन पिछले कुछ सालों के मुकाबले यह ऊंची ही रहेगी। कीमतों में गिरावट के बावजूद एफएओ का फूड प्राइस इंडेक्स अक्टूबर 2006 के मुकाबले अक्टूबर 2008 में 28 फीसदी ज्यादा था।
वर्ष 1996 के विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन में वर्ष 2015 तक भूखे लोगों की संख्या को आधा करने का लक्ष्य रखा गया। कुछ देशों ने तो खाद्य पदार्थो की कीमतों के बढ़ने के पहले ही इस शिखर सम्मेलन के लक्ष्य के अनुरुप ही काम किया। हालांकि इन देशों को भी इस लक्ष्य को पूरा करने के दौरान, खाद्य पदार्थ की कीमतों में इजाफा होने से काफी झटका लगा।