कम बारिश के बावजूद मक्केका रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है क्योंकि दक्षिणी राज्यों में मानसूनी बारिश की वजह से मक्के की पर्याप्त बुआई हुई है।
गौरतलब है कि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मक्के की खेती बहुतायत हमें होती है और इस फसल में उनका योगदान भी ज्यादा है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 22 अगस्त तक मक्केका रकबा 66.6 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। हालांकि पिछले साल यह आंकड़ा 71.8 लाख हेक्टेयर था।
मक्के के वर्तमान रकबे को देखते हुए पोल्ट्री उद्योग ने राहत की सांस ली है। एग्रीवॉच कमोडिटीज के विशेषज्ञ बी. बेहरा ने बताया कि मक्के का रकबा अभी भी पिछले साल के मुकाबले कम है, लेकिन हाल के समय में पिछले साल के रकबे और अब के रकबे में अंतर कम हुआ है। मक्के की बुआई का रकबा सामान्य स्तर को लांघ चुका है।
कमोडिटी विशेषज्ञों ने पहले मक्के की पैदावार के बारे में कहा था कि इस साल यह 20 करोड़ टन रहेगा जबकि पिछले साल यह 1.5-1.6 करोड़ टन था। बुआई में देरी की वजह से खबरें हैं कि आंध्र, कर्नाटक और महाराष्ट्र के किसान दूसरी फसल की तरफ शिफ्ट कर चुके हैं। ऐसे में इस बात की संभावना कम है कि मक्के का रकबा पिछले साल के रकबे को छू पाएगा।