विभिन्न जिंसों की बढ़ती कीमत ने साल 2008 में उपभोक्ताओं और उद्योगों को चाहे जितना जलाया और रुलाया हो, लेकिन आने वाले सालों में वर्तमान कीमत केमुकाबले इसमें बहुत ज्यादा बढ़ोतरी के आसार नहीं हैं।
यह आकलन है विश्व बैंक का, जिसने अपनी हालिया रिपोर्ट ‘ग्लोबल इकनॉमिक प्रॉस्पेक्ट-2009’ में इस बात का खुलासा किया है। लेकिन भारतीय विशेषज्ञ वर्ल्ड बैंक के इस आकलन से सहमत नजर नहीं आते।
विश्व बैंक के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि साल 2009 में खाद्यान्न की कीमत में 20 फीसदी की गिरावट आएगी। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक साल 2008 से साल 2010 के दौरान खाद्यान्न आज के मुकाबले 26 फीसदी सस्ता हो जाएगा।
इस दौरान तेल की कीमत में 25 फीसदी और धातुओं की कीमत में 32 फीसदी की गिरावट का अनुमान है। इस साल कच्चे तेल की कीमत औसतन 75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहने के आसार हैं।
खाद्यान्न के साथ-साथ अन्य जिंसों की कीमत में गिरावट केपीछे है घटती विकास दर (जीडीपी) और जिंसों की बढ़ती सप्लाई। बैंक का कहना है कि विकासशील देशों की घरेलू विकास दर औसतन 4.5 फीसदी के आसपास रहेगी।
विश्व बैंक के मुताबिक, खाद्यान्न की ऊंची कीमत की वजह से पूरी दुनिया में गरीबों की संख्या में 13 से 15.5 करोड़ लोग और जुड़ गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2003 से 2008 के दौरान पिछली शताब्दी के मुकाबले तेल, धातु, खाद्यान्न और दूसरी जिंसों की कीमत में भारी उछाल आया।
जनवरी 2003 से अगर तुलना की जाए तो 2008 में एनर्जी की कीमतों में 320 फीसदी, विभिन्न अयस्कों की कीमत में 296 फीसदी जबकि खाद्यान्न की कीमत में 138 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। पर वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट के साथ ही जिंसों का बाजार ढहने लगा।
नवंबर 2008 के बाद से कच्चे तेल की कीमत में 60 फीसदी की गिरावट आई, लेकिन यह आज भी 2003 के मुकाबले 76 फीसदी महंगा है।
खाद्यान्न की कीमत में भी इस दौरान गिरावट देखी गई, पर यह अभी भी 2003 की तुलना में ज्यादा है। लेकिन भारतीय विशेषज्ञ वर्ल्ड बैंक के आकलन से सहमत नहीं दिखते।
एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज लिमिटेड के उपाध्यक्ष और रिसर्च हेड राजेश जैन का मानना है कि साल 2009 की पहली छमाही भले ही अर्थव्यवस्था के लिए बुरा साबित हो, लेकिन इसके बाद शेयर बाजार में उफान आएगा, मंदी के बादल छटेंगे और औद्योगिक मांग बढ़ेगी तो फिर इसका असर जिंस बाजार पर भी पड़ेगा।
ऐसे में इसकी कीमतें निश्चित रूप से ऊपर जाएंगी। उन्होंने कहा कि लोगों का जीवन स्तर दिन प्रति दिन ऊंचा हो रहा है, ऐसे में मंदी के बादल छंटते ही एक बार फिर जिंस की कीमत पर इसका दबाव देखा जाएगा यानी ये चीजें महंगी होंगी।
पिछले कुछ सालों में बायोफ्यूल के मद में कृषि जिंसों का इस्तेमाल भी इसकी कीमतें बढ़ा रहा था। विश्व भर के मक्का उत्पादन में हुई बढ़ोतरी का दो तिहाई बायोफ्यूल की तरफ जा रहा था।
इसी वजह से किसान गेहूं, सोयाबीन की फसल छोड़ मक्का उगाने लगे थे। अंतरराष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी की मानें तो आने वाले 20 साल तक बायोफ्यूल के मद में अनाज की मांग 7.8 फीसदी की दर से बढ़ेगी।
ऐसे में खाद्यान्न की आपूर्ति पर दबाव रहेगा, लेकिन इससे खाद्यान्न संकट का खतरा नहीं है। चाहे जितना माल बायोफ्यूल में चला जाए, कृषि की पैदावार में वैश्विक बढ़ोतरी और बंजर जमीन का इस्तेमाल कर खाद्यान्न की जरूरत सुनिश्चित की जा सकेगी।