आम बजट में सॉवरिन वेल्थ फंडों (एसडब्ल्यूएफ) और पेंशन फंडों (पीएफ) के मामले में हैरानी की बात सामने आई है। निवेशकों के इन दो वर्गों ने निर्दिष्ट ऋण निवेशों पर होने वाले दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) पर विशेष छूट का फायदा उठाया था।
घरेलू कारोबारों में एसडब्ल्यूएफ के निवेश को बढ़ावा देने के लिए ऐसा किया गया था, खास तौर किसी बुनियादी ढांचे की सुविधाएं विकसित या संचालित करने वालों में। ऐसी छूट की पात्रता के लिए एसडब्ल्यूएफ को 31 मार्च, 2024 से पहले अपना निवेश करना जरूरी था और निवेश रखने की अवधि कम से कम तीन साल तय की गई थी। दिलचस्प बात यह है कि फरवरी में अंतरिम बजट के दौरान सरकार ने निवेश की अवधि एक साल बढ़ाकर मार्च 2025 कर दी थी।
मंगलवार को सरकार ने गैर-सूचीबद्ध डिबेंचर या बॉन्ड के हस्तांतरण या भुनाने या परिपक्वता पर होने वाले उस लाभ पर कर लगाने का प्रस्ताव रखा है जिसे अल्पकालिक पूंजीगत लाभ (एसटीजीसी) माना जाएगा, भले ही होल्डिंग अवधि कुछ भी हो। लिहाजा, गैर-सूचीबद्ध डिबेंचरों पर लाभ निवासियों और गैर-निवासियों दोनों के मामले में लागू दरों के अनुसार होगा। कई मामलों में यह 35 प्रतिशत की अधिकतम मार्जिनल दर होगी।
प्राइस वाटरहाउस ऐंड कंपनी के साझेदार सुरेश स्वामी ने कहा, ‘गैर-सूचीबद्ध बॉन्ड और डिबेंचर को अल्पकालिक पूंजीगत संपत्ति मानते हुए बजट ने निर्दिष्ट गैर-सूचीबद्ध बॉन्ड और डिबेंचर में निवेश करने वाले एसडब्ल्यूएफ और पीएफ के लिए इस छूट को प्रभावी रूप से हटा दिया है।’
उन्होंने कहा, ‘फरवरी 2024 में घोषित बजट ने इस समयसीमा को 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दिया था और हाल ही में उचित परिपत्र भी जारी किए गए थे। इस प्रकार गैर-सूचीबद्ध बॉन्ड और डिबेंचर में निवेश पर एसडब्ल्यूएफ/पीएफ के लिए लाभ को हटाना चूक लगती है।’
डेलॉयट इंडिया के साझेदार राजेश गांधी ने भी इस राय को दोहराया है। उन्होंने कहा, ‘एसडब्ल्यूएफ और पीएफ के लिए यह छूट केवल दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के लिए ही उपलब्ध है। इसलिए यह इस संशोधन का एक अनचाहा परिणाम लगता है। यह अनपेक्षित है क्योंकि एसडब्ल्यूएफ और पीएफ द्वारा अर्जित ब्याज आय कर से भी मुक्त है।’
गैर-सूचीबद्ध डिबेंचरों में अनिवार्य परिवर्तनीय बॉन्ड (सीसीडी) गैर-सूचीबद्ध क्षेत्र में निवेश करने के लिए विदेशी फंडों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले लोकप्रिय साधन हैं। ये हाइब्रिड साधन एक निश्चित अवधि के बाद अनिवार्य रूप से इक्विटी शेयरों में बदल जाते हैं। उन्हें लोकप्रियता इसलिए मिली है, क्योंकि ये निवेशकों को निवेश की जाने वाली कंपनी से नियमित ब्याज आय अर्जित करने की सुविधा देते हैं। इसके अलावा वे ‘इक्विटी’ होने की वजह से कंपनी में संभावित वृद्धि का लाभ भी पाते हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि चूंकि सीसीडी को गैर-सूचीबद्ध डिबेंचर के रूप में रखा गया है। इसलिए अब उस पर पहले के विपरीत ज्यादा कर लगेगा, जिसमें अनिवासियों को 36 महीने की होल्डिंग अवधि पर 10 प्रतिशत का एलटीसीजी चुकाना पड़ता था। विदेशी फंडों के मामले में उनका कर व्यय अब उनसे संबंधित संधियों पर निर्भर करेगा।