पूंजीगत व्यय पर लगाम लगाने तथा कर राजस्व में इजाफा करने का दबाव बढ़ सकता है। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य
केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति के बारे में ताजा जानकारी तो यही है कि वह अब तक राजकोषीय विवेक की मान्य सीमाओं में है। अप्रैल-सितंबर 2023-24 के आधिकारिक आंकड़े भी इस नजरिये का ही समर्थन करने वाले हैं। ये आंकड़े दिखाते हैं कि वर्ष की पहली छमाही में केंद्र सरकार का शुद्ध कर संग्रह 15 फीसदी बढ़ा। यह बढ़ोतरी 11 फीसदी के वार्षिक बजट लक्ष्य से अधिक थी।
यह भी कहा गया कि विनिवेश के खराब प्रदर्शन की भरपाई गैर कर राजस्व में इजाफे से हो जाएगी। ऐसा मोटे तौर पर सरकारी बैंकों तथा रिजर्व बैंक के बेहतर लाभांश की बदौलत होगा।
केंद्र के व्यय की बात करें तो यही वह क्षेत्र है जहां 2023-24 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 5.9 फीसदी के दायरे में रखने की सरकार की क्षमता को लेकर शुबहा पैदा होता है। वर्ष की पहली छमाही में व्यय का रुझान मिलीजुली तस्वीर पेश करता है।
पूंजीगत व्यय को नियंत्रित रखने की दिशा में प्रभावी काम
सरकार ने पहली छमाही में पूंजीगत व्यय को नियंत्रित रखने की दिशा में प्रभावी काम किया है। पूंजीगत व्यय बढ़ाने के क्षेत्र में सराहनीय काम हुआ है और गत चार साल में यह करीब तीन गुना हो गया है। इसके बाद सरकार ने अप्रैल-सितंबर 2023 के बीच पूंजीगत व्यय में 43 फीसदी का इजाफा दर्शाया है जबकि सालाना लक्ष्य 36 फीसदी है।
इस इजाफे ने न केवल निजी पूंजी निवेश की कमी से जूझ रही अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में मदद की है बल्कि उसने राज्यों के पूंजीगत आवंटन को बढ़ाने में मदद की है। यह बात याद रहे कि केंद्र सरकार के 10 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय के बजट का करीब 13 फीसदी हिस्सा राज्यों के लिए है।
राज्यों ने सुधारों से संबद्ध केंद्रीय फंड और अपने संसाधनों का इस्तेमाल करके पूंजी निवेश बढ़ाने में अहम योगदान किया है। देश के कुल राज्य बजट के जिम्मेदार 23 राज्यों ने अप्रैल-सितंबर 2023-24 में अपना पूंजीगत व्यय 53 फीसदी बढ़ाया है।
दूसरे शब्दों में 2023-24 की पहली छमाही में केंद्र और राज्यों का संयुक्त पूंजी निवेश 7.54 लाख करोड़ रुपये रहा जो 2022-23 की समान अवधि के 5.15 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। अगर यह रुझान बरकरार रहा तो केंद्र और राज्यों का पूरे वर्ष का पूंजीगत व्यय जीडीपी के पांच फीसदी से बेहतर रह सकता है।
केंद्र सरकार का राजस्व व्यय 10 फीसदी बढ़ा
वास्तविक समस्या केंद्र और राज्यों के राजस्व व्यय के साथ है। एक साहसी फैसले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चालू वर्ष में राजस्व व्यय में केवल 1.4 फीसदी बढ़ोतरी करके 35 लाख करोड़ रुपये करने तथा इस तरह राजस्व व्यय में भारी कटौती करने का प्रस्ताव रखा है। छह महीने बीत गए हैं और केंद्र सरकार का राजस्व व्यय 10 फीसदी बढ़ चुका है।
चुनाव करीब हैं और इस बात की संभावना नहीं है कि केंद्र सरकार राजस्व व्यय को 35 लाख करोड़ रुपये के तय लक्ष्य तक सीमित रख पाएगी। इसके अलावा भी बजट में उल्लिखित राजस्व व्यय के दायरे में रहने के लिए वर्ष की बाकी बची छमाही में इसमें पांच फीसदी की कमी लानी होगी। यह संभव नहीं है।
अगर आपको लगता है कि केवल केंद्र सरकार ही राजस्व व्यय में इजाफे पर लगाई गई अपनी ही सीमा का उल्लंघन करने के लिए उत्तरदायी है तो एक बार फिर सोचिए। इस क्षेत्र में राज्यों की भी गलती है। पहली छमाही में उनका राजस्व व्यय 9.5 फीसदी बढ़ा है।
यदि केंद्र सरकार ने अपने वार्षिक राजस्व व्यय का 46 फीसदी हिस्सा पहली छमाही में यानी सितंबर के अंत तक व्यय कर दिया है तो इन 23 राज्यों ने भी पूरे वर्ष के बजट आंकड़े का 42 फीसदी इस्तेमाल कर लिया है।
चुनावी मौसम में राजकोषीय अनुशासन निभा पाना मुश्किल
चुनावी मौसम में वैसे भी राजकोषीय व्यय पर किसी तरह का राजकोषीय अनुशासन निभा पाना मुश्किल है। इसे हम 2023-24 की पहली छमाही से ही उन अधिकांश राज्यों में देख सकते हैं जहां नवंबर माह में चुनाव हो रहे हैं।
राजस्थान ने आश्चर्यजनक ढंग से अपने राजस्व व्यय में वृद्धि को 9.6 फीसदी पर रोका लेकिन अन्य सभी राज्यों में यह काफी तेजी से बढ़ा। छत्तीसगढ़ में यह 25 फीसदी, मध्य प्रदेश में 19 फीसदी, तेलंगाना में 18 फीसदी और मिजोरम में 12 फीसदी बढ़ा। इससे यही पता चलता है कि चुनाव के समय सरकार खजाना खोल देती है। ऐसा मोटे तौर पर चुनावी वजहों से होता है।
अब जबकि 2024 के आम चुनाव करीब आ रहे हैं तो केंद्र सरकार के राजकोषीय विवेक का पालन करने और घाटे को तय लक्ष्य के दायरे में रखने की क्या संभावना है? केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति पर पहले ही व्यय का दबाव बढ़ा हुआ है। नि:शुल्क खाद्यान्न योजना और कारीगरों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन इसकी वजह है।
यह संभव है कि इनमें से कई योजनाओं का पूरा प्रभाव 2024-25 के दौरान ही महसूस किया जा सकेगा। इनमें आगामी कुछ महीनों में घोषित होने वाली योजनाएं शामिल हैं। ऐसे में चालू वर्ष के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल नहीं होगा। परंतु वैसा करने से समस्या को केवल टाला जा सकता है हल नहीं किया जा सकता।
एक बात जो केंद्र और राज्यों की मदद कर सकती है वह है कर राजस्व में निरंतर उछाल। चालू वर्ष की पहली छमाही में इन राज्यों के कर राजस्व में 12 फीसदी की उछाल दर्ज की गई। केंद्र सरकार की ओर से कर राजस्व के उदार हस्तांतरण ने भी इसमें मदद की और यह 20 फीसदी बढ़ा।
केंद्र के लिए कर राजस्व में निरंतर इजाफा और अहम होगा। राजस्व व्यय के कारण वित्त पर अतिरिक्त दबाव पड़ने के कारण एक अहम चिंता होगी वर्ष की दूसरी छमाही में पूंजी निवेश की गति।
सरकार विकल्प के रूप में पूंजीगत व्यय को धीमा करने पर भी विचार कर सकती है। चाहे जो भी हो अगर 10 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य को हासिल करना है तो दूसरी छमाही में पूंजीगत व्यय में 55 फीसदी का इजाफा करना होगा जो मुश्किल प्रतीत होता है।
इसका अर्थ यह भी होगा कि 10 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का लक्ष्य नहीं पाया जा सकेगा जबकि यह सरकारी वित्त को कुछ राहत पहुंचाने के साथ-साथ राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित हो सकता था। हकीकत यह है कि बिना पूंजीगत व्यय को कम किए सरकार के राजस्व विभाग पर से दबाव कम नहीं किया जा सकता है।
ऐसे में कर संग्रह में जुटे अधिकारी और अधिक कर राजस्व जुटाने का प्रयास करेंगे ताकि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। यह भारत के कारोबारी जगत के लिए ठीक नहीं होगा।