सन 1999 में करगिल के संघर्ष के समय जो लोग सेना में थे या जो उस वर्ष जम्मू कश्मीर में रहे अथवा वहां काम किया, उन्हें सेना के लंबे-लंबे बेड़ों की याद होगी जिनका इस्तेमाल भारत ने सेना की टुकड़ियों को करगिल ले जाने में किया था। ये बेड़े जोजिला दर्रे से होते हुए द्रास गए या फिर रोहतांग दर्रे से लेह। आजादी के बाद पहली बार सेना के जवानों के ये बेड़े डरावने लग रहे थे।
पुराने शक्तिमान और टाटा लॉरी की जगह अशोक लीलैंड के नए स्टैलियन 7.5 टन, फोर व्हील ड्राइव लोड कैरियर (भारवाहक) ने ले ली थी। उसके बाद से स्टैलियन भारतीय सेना का प्रमुख भारवाहक बन गया है। 2020 में उसने भारतीय सेना के जवानों को पूर्वी लद्दाख में पहुंचाया ताकि चीन के उन सैनिकों को रोका जा सके जो डेपसांग, दौलत बेग ओल्डी, गलवान, हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा, पैंगॉन्ग सो और डेमचॉक में भारतीय इलाकों में घुस आए थे। जिस तरह आज भारतीय सेना की हवाई परिवहन क्षमता सी-17 ग्लोबमास्टर 2 विमानों पर केंद्रित है, वैसे ही कश्मीर से कन्या कुमारी तक सैनिकों का आवागमन स्टैलियन भारवाहकों पर आधारित है।
यही वजह है कि अशोक लीलैंड की पिछले दिनों की गई घोषणा में कई अमूल्य सबक छिपे हुए हैं। उसने कहा कि भारतीय सेना ने 800 करोड़ रुपये मूल्य के भारवाहकों का ऑर्डर दिया है। हमारी सेना के पास 50,000 स्टैलियन का बेड़ा है। इनमें से हर साल करीब 10 फीसदी या 5,000 वाहनों की सेवा अवधि समाप्त हो जाती है और उनकी जगह नए वाहन आते हैं।
हर स्टैलियन की कीमत 30 लाख रुपये
हर स्टैलियन की कीमत 30 लाख रुपये है यानी अकेले इस बेड़े को नया करने पर सालाना 1,500 करोड़ रुपये की राशि व्यय होती है। बेड़े के नवीनीकरण के अलावा सरकार का 2023-24 का बजट आवंटन बताता है कि इस राशि का बड़ा हिस्सा सैन्य परिवहन के अलग-अलग पहलुओं पर व्यय होगा।
राजस्व परिवहन के मद में 6,717 करोड़ रुपये आवंटित किए गए और 4,038 करोड़ रुपये की राशि परिवहन से संबंधित खरीद के लिए आवंटित की गई जिसमें नए भारवाहक शामिल थे। देश के निजी ट्रक निर्माताओं को फील्ड आर्टिलरी ट्रैक्टर्स (एफएटी 4 गुणा 4) और ‘गन टोइंग व्हीकल्स’ (जीटीवी 6 गुणा 6) के लिए निविदा प्रदान की गई। इन वाहनों का इस्तेमाल हल्की और मझोली आर्टिलरी गन की ढुलाई के लिए होना था।
स्वदेशीकरण और मानकीकरण दोनों पर जोर देगी सेना
इस भारी व्यय को देखते हुए ऐसे कई तरीके हैं जिनकी मदद से सेना इस बेड़े के चयन, खरीद, संचालन, रखरखाव आदि को आर्थिक दृष्टि से बेहतर बना सकती है। सबसे पहले तो इसके भारवाहक का मानकीकरण किया जा सकता है। अशोक लीलैंड, टाटा मोटर्स तथा अन्य निर्माताओं के बीच चयन करने के लिए शायद ज्यादा कुछ न हो लेकिन सेना ने संकेत दिया है कि वह स्वदेशीकरण और मानकीकरण दोनों पर जोर देगी। इसका अर्थ यह हुआ कि वाहन बेड़ों में एक ही तरह के भारी वाहन होंगे जबकि थोड़े अलग तरह के वाहन भी बनाए जाएंगे जहां बुनियादी रूप से महत्त्वपूर्ण समानताएं नजर आएं।
एक भारवाहक का मानकीकरण करने से सेना कि कलपुर्जे रखने की इन्वेंटरी कम होगी। एक वाहन के लिए ऐसे हजारों कलपुर्जों की जरूरत हो सकती है। अभी हाल तक इतने कलपुर्जों को संभाल कर रखना उस यूनिट का काम होता था जो सैन्य वाहन या हथियार प्लेटफॉर्म को संचालित करती।
सोवियत संघ को सैन्य लॉजिस्टिक्स का सरलीकरण करने में महारत हासिल थी। इसकी वजह यह थी कि उसकी भारी उपकरणों यानी टैंक, हथियारबंद वाहनों तथा हवाई रक्षा वाली बंदूकों से लैस सेना के लिए यह आवश्यक था कि लॉजिस्टिक्स को सहज बनाया जा सके। केवल उसी स्थिति में उनका इस्तेमाल संभव था। उन्होंने जबरदस्त मानकीकरण किया। मसलन टी-55 टैंक के पहियों में लगने वाले नट बोल्ट वही थे जो बीएमपी-1 हथियार वाहक वाहन में लगते थे। अगर शिल्का ऐंटी-एयरक्राफ्ट गन के रेडियो सेट को बंद कर दिया जाए तो उसे टी-72 टैंक से दोबारा शुरू किया जा सकता है। सोवियत सेना में प्रचलित एक चुटकुले के मुताबिक अगर किसी एक डिवीजन का जनरल मोर्चे पर जीत नहीं पाता तो उसे गोली मारक पड़ोसी डिवीजन का जनरल लाया जा सकता है।
भारत जैसे विशाल देश में लॉजिस्टिक्स का सहजीकरण करने तथा सैन्य उपकरणों के प्रबंधन में सिविल-रिटेल ट्रेड नेटवर्क की अहम भूमिका है। अब तक सैन्य उपकरण निर्माता प्रतिष्ठान जिनमें से अधिकांश ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) नेटवर्क के अधीन आते हैं, वही संबंधित उपकरणों के निर्माण, रखरखाव और निपटान के लिए उत्तरदायी रहे हैं।
बहरहाल इसके बजाय देश भर में मौजूद सिविल ट्रेड नेटवर्क को इस प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए ताकि इसका सहजीकरण हो सके तथा सैन्य उपयोगकर्ताओं के लिए लागत में कमी आ सके। उदाहरण के लिए अशोक लीलैंड अपने देशव्यापी खुदरा ट्रक नेटवर्क का इस्तेमाल जबलपुर स्थिति व्हीकल फैक्टरी से स्टैलियन की ढुलाई के लिए कर सकता है और उसे निर्माण स्थल से सीधे उस सैन्य यूनिट तक पहुंचा सकता है जहां उसकी जरूरत हो।
वाहन को उपयोगकर्ता यूनिट तक पहुंचाने के बाद ओएफबी और वीएफजे यूनिट को यह जानकारी रहती है कि उन्हें तय समय सीमा में उसकी सर्विस और जरूरी रखरखाव करना होगा। इसलिए जरूरी कलपुर्जे और अन्य सामग्री को वीएफजे खुदरा कारोबारी तक समय से पहुंचा सकता है।
कलपुर्जों तथा अन्य वस्तुओं की खपत का अनुमान तथा उन्हें जरूरत से पहले तैयार रखने से खपत रुझान बदल सकता है और कलपुर्जे उन स्थानों पर रखे जाने की शुरुआत हो सकती है जहां वे आसानी से उपलब्ध हों और पहुंच में हों। सैन्य उपकरणों के रखरखाव और प्रबंधन के लिए ऐसी व्यवस्था अपनाने से सैन्यकर्मियों की पुनर्नियुक्ति के अवसर भी बनेंगे। उनका इस्तेमाल उन उपकरणों की सर्विस और रखरखाव में किया जा सकता है जिन्हें वे अपने सेवा काल में संभालते होंगे। उन्होंने सेवा काल में जो पेशेवर दक्षता अर्जित की होगी उसे भुलाने के बजाय इन उच्च प्रशिक्षित पूर्व सैनिकों को दूसरा कैरियर दिया जा सकता है।
लॉजिस्टिक्स के ऐसे विकेंद्रीकरण का विस्तार करके बहुत आसानी से वाहन संचालन और रखरखाव के काम मसलन राशन, ईंधन, तेल और लुब्रिकेंट को संभालने तथा उनके वितरण के काम को अंजाम दिया जा सकता है। इंडियन ऑयल जैसे संगठनों से पहले ही लेह जैसी जगहों पर उपरोक्त चार चीजें जमा करने को कहा जा रहा है ताकि उनका ठंड आदि के दिनों में असैन्य इस्तेमाल किया जा सके जब रास्ते बाधित रहते हैं।
इसी प्रकार इंडियन ऑयल की सुविधाओं तथा कर्मचारियों को सेना के इस्तेमाल के लिए ईंधन, तेल तथा लुब्रिकेंट जैसी चीजों का भंडारण करने को कहा जा सकता है। सैन्य कामकाज का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है जिसे असैन्य कारोबार संभाल ले। ऐसा भी कोई तरीका नहीं जो लड़ाई के क्षेत्र में लॉजिस्टिक्स को सहज बनाए। सेना को इस विषय में कल्पनाशीलता के साथ सोचने की आवश्यकता है।