नीदरलैंड की संस्थागत निवेशक प्रोसस ने जब से इस बारे में बयान जारी किया है कि उसे भारत की सबसे बड़ी एडटेक दिग्गज बैजूस (Byju’s) के बोर्ड से बाहर क्यों निकलना पड़ा, तब से सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की भरमार आ गई है। कई लोगों का मानना है कि बैजूस का अंत आ गया है, जबकि कुछ अन्य का कहना है कि यह कर्मों का फल है।
हालांकि कई लोगों ने बैजूस की निवेशक प्रोसस और पीक एक्सवी पार्टनर्स (पूर्व में सिकोया कैपिटल के नाम से चर्चित) द्वारा अचानक दिखाई गई नैतिक जिम्मेदारी पर उचित सवाल उठाए हैं।
मंत्रालय और सरकार पहुंचना चाहते हैं मूल कारण तक
उद्यम पूंजी समुदाय और स्टार्टअप संस्थापकों का मानना है कि बैजूस यदि अपनी महत्वाकांक्षाओं से आगे निकल गया तो यह निवेशकों के समर्थन की वजह से संभव हुआ था। हालांकि अब कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय और सरकार मूल कारण तक पहुंचना चाहते हैं।
प्रोसस और पीक एक्सवी के बोर्ड प्रतिनिधियों – रसेल ड्रीसेनस्टॉक और जी वी शंकर को 22 जून को बैजूस से हटा दिया गया था। इन दोनों कंपनियों को यह स्पष्टीकरण देने में करीब एक महीना लगा कि उनके निदेशकों ने हटने का निर्णय क्यों लिया। इनके इस्तीफों के समय इस घटनाक्रम से अवगत सूत्रों ने कहा था कि इन निवेशकों की शेयरधारिता घट जाने की वजह से ऐसा हुआ।
प्रोसस के बयान में कहा गया कि बैजूस वर्ष 2018 में हमारे पहले निवेश के बाद तेजी से बढ़ी, लेकिन बदलते समय के साथ उसकी रिपोर्टिंग और प्रशासनिक ढांचा प्रणालियां उस तेजी से विकसित नहीं हुईं। हमारे निदेशक द्वारा कई बार सलाह दिए जाने के बावजूद बैजूस के नेतृत्व ने इस पर असहमति जताई और अपने तरीके से कॉरपोरेट प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन पर जोर दिया।
सवाल यह है कि प्रोसस और पीक एक्सवी ने इन चिंताओं से एलपी और संबद्ध हितधारकों को पहले अवगत क्यों नहीं कराया?