इस साल जुलाई में अनन्या बिड़ला की स्वतंत्र माइक्रोफिन प्राइवेट लिमिटेड ने सचिन बंसल के नेतृत्व वाली चैतन्य इंडिया फिल्म क्रेडिट लिमिट का अधिग्रहण 1,479 करोड़ रुपये में कर लिया था। सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में यह सबसे बड़े सौदों में शामिल था। इस सौदे के बाद स्वतंत्र गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी- सूक्ष्म वित्त संस्थान (एनबीएफसी-एमएफआई) श्रेणी में स्वतंत्र माइक्रोफिन संभवत: दूसरी सबसे बड़ी कंपनी बन जाएगी।
कंपनी की शुद्ध प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति (एयूएम) बढ़कर 12,409 करोड़ रुपये हो जाएगी। मार्च 2023 तक क्रेडिट एक्सेस ग्रामीण लिमिटेड की एयूएम 21,031 करोड़ रुपये थी।
स्वतंत्र माइक्रोफिन ने चैतन्य का अधिग्रहण करने के लिए एक निश्चित समझौता किया है। नियामकीय मंजूरी आदि मिलने के बाद इस साल के अंत तक यह सौदा पूरा होने की संभावना है। इन दिनों सूक्ष्म वित्त संस्थाओं (एमएफआई) के प्रमुखों की चाल-ढाल अचानक बदल गई है। कुछ दिन पहले तक इस क्षेत्र से दूरी बनाए रखने वाले निवेशक भी अब अचानक से दिलचस्पी लेने लगे हैं और निवेश करने का सही मौका तलाश रहे हैं। हाल में ही मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेस लिमिटेड ने तीन सूचीबद्ध सूक्ष्म वित्त संस्थानों को बाय रेटिंग देने की पहल की है।
कुछ नई एनबीएफसी-एमएफआई ने सार्वजनिक स्तर पर पूंजी भी जुटाने की घोषणा की है। आखिर, एमएफआई क्षेत्र में अचानक आए इस बदलाव के पीछे क्या कारण हैं? कोविड महामारी के दौरान यह क्षेत्र गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के बोझ से कराह रहा था। कुछ कंपनियों ने अपने खाते दुरुस्त करने के लिए प्रावधान करने शुरू कर दिए तो कुछ दूसरी कंपनियां पूंजी की दरकार से जूझ रही थीं मगर कोई निवेशक सामने नहीं आ रहा था। हालांकि, अब परिस्थितियां बदल गई हैं।
अप्रैल 2022 से ऋण खाते अचानक सुधर गए हैं। इससे पहले दो लगातार वित्त वर्षों 2021 और 2022 में एमएफआई क्षेत्र में ऋण आवंटन की रफ्तार सुस्त हो गई थी। मगर वित्त वर्ष 2023 में सूक्ष्म ऋण खातों का आकार 22 फीसदी तक बढ़कर 3.5 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। दो वर्षों तक ग्राहकों का मुंह नहीं देखने वाले इस क्षेत्र को अचानक नए ग्राहक मिलने लगे हैं। मार्च 2020 और मार्च 2021 के बीच ग्राहकों की संख्या मामूली बढ़कर 5.89 करोड़ से 5.93 करोड़ हो गई। वित्त वर्ष 2022 में तो यह संख्या कम होकर 5.5 करोड़ रह गई थी मगर वित्त वर्ष 2023 में यह बढ़कर 6.64 करोड़ हो गई है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2025 के बीच सूक्ष्म वित्त क्षेत्र की वृद्धि दर 18 से 20 फीसदी रह सकती है। एनबीएफसी- एमएफआई खंड तो इससे भी तेजी गति से आगे बढ़ेगा। पहली बार एनबीएफसी-एमएफआई कंपनियां सूक्ष्म वित्त ऋण खंड में सबसे बड़ी कर्जदाता बन गई हैं।
मार्च 2023 में बैंकों ने 1.19 लाख करोड़ रुपये के ऋण आवंटित किए थे जबकि इसकी तुलना में एनबीएफसी-एमएफआई ने 1.38 लाख करोड़ रुपये के ऋण आवंटित किए थे। एक साल पहले तक बैंकों ने 1.4 लाख करोड़ रुपये के सूक्ष्म ऋण आवंटित किए थे। इसकी तुलना में एनबीएफसी-एमएफआई का आंकड़ा 1 लाख करोड़ रुपये रहा था।
इन दोनों के अलावा लघु वित्त बैंक, सामान्य एनबीएफसी और गैर- लाभकारी संस्थान भी सूक्ष्म ऋण आवंटन के कारोबार से जुड़े हैं। खासकर, वित्त वर्ष 2023 की चौथी तिमाही में एनबीएफसी- एमएफआई ने 40,470 करोड़ रुपये के ऋण आवंटित किए। पिछले साल की समान तिमाही की तुलना में यह आंकड़ा 37.02 फीसदी अधिक है।
आलोच्य तिमाही में ऋण का औसत आकार भी 11.3 फीसदी बढ़ा है। एनपीए के मोर्चे पर क्या बदलाव आए हैं? कोविड महामारी के दौरान सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में एनपीए काफी बढ़ गया था। मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट के अनुसार जून 2021 में गैर-निष्पादित आस्तियां बढ़कर 14.8 फीसदी तक पहुंच गईं, जो दिसंबर 2019 में मात्र 1.3 फीसदी थीं ।
आर्थिक हालत में सुधार और ऋणों के नियमित भुगतान शुरू होने के बाद एनपीए में तेजी से सुधार हुआ है। कुल मिलाकर, सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में एक नया उत्साह आ गया है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। कोविड महामारी से पूर्व नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसीटी) लागू होने से चीजें अधिक व्यवस्थित हो गईं। कुछ हद तक इसका योगदान भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भी जाना चाहिए। आरबीआई ने नए दिशानिर्देश जारी किए, जो अप्रैल 2022 में प्रभाव में आ गए।
ऋण पर ब्याज तय करने की सीमा समाप्त कर दी गई। ऋणदाता अब ब्याज दरें तय करने के लिए स्वतंत्र हैं, मगर उन्हें अपने निदेशक मंडल से मंजूरी जरूर लेनी पड़ती है। लगभग सभी सूक्ष्म वित्त संस्थाओं ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है, जिससे उनका मार्जिन पहले से अब अधिक हो गया है। नए दिशानिर्देशों से बैंकों और अन्य एमएफआई के लिए भी अवसर एक समान हो गए।
नए दिशानिर्देशों के प्रभावी होने से पहले बैंकों का दबदबा हुआ करता था और उनके सामने एमएफआई दूर-दूर तक नहीं टिक पा रहे थे। सूक्ष्म ऋण की परिभाषाएं भी बदली गई हैं। ऋणदाता अब किसी भी उद्देश्यों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, विवाह आदि के लिए ऋण आवंटित कर सकते हैं। वित्त वर्ष 2023 से पहले 50 फीसदी तक ऐसे ऋण गैर- उपयोगी उद्देश्यों के लिए आवंटित करने की इजाजत थी मगर इनकी मात्रा 90 फीसदी तक पहुंच जाती थी। इससे कई ग्राहक ऊंची ब्याज दोनों पर ऋण लेने के लिए विवश हो जाते थे।
आरबीआई ने तय कर दिया है कि ऋण भुगतान किसी परिवार की कुल आय का 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। डिजिटल माध्यम से ऋण की वसूली से परिचालन लागत भी कम हो गई है और इससे अब समय भी कम लगने लगा है। ऋण संग्रह की विधि और ऋणों की मूल्यांकन एवं आवंटन प्रक्रियाएं भी ज्यादातर एमएफआई के लिए बदल चुकी हैं। इसे इस क्षेत्र में व्यवस्थागत मजबूती आई है।
सूक्ष्म वित्त क्षेत्र को और अधिक उत्पादक बनाने के लिए आरबीआई को कम से कम दो और बदलाव करने की जरूरत है। इन उपायों से गरीबी कम करने और वित्तीय समावेशन बढ़ाने में मदद मिलेगी। एनबीएफसी-एमएफआई को अपने पोर्टफोलियो में असुरक्षित ऋण की मात्रा 85 प्रतिशत रखनी होती थी। मगर अब यह शर्त घटाकर 75 प्रतिशत कर दी गई है।
इसका मकसद जोखिम कम करना है मगर मगर यहां एक तकनीकी पेच है। 85 प्रतिशत की पुरानी शर्त शुद्ध परिसंपत्तियों पर लागू थी, जबकि 75 प्रतिशत की नई शर्त संपूर्ण परिसंपत्तियों (नकदी, बैंकों में जमा रकम, निवेश) पर लागू है। एमएफआई यह 75 फीसदी की सीमा कभी भी पार कर सकते हैं। यह सीमा कम से कम घटाकर 65 फीसदी की जानी चाहिए।
ध्यान देने योग्य दूसरी बात यह है कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को बड़े ऋण आवंटित नहीं हो पा रहे हैं। इसका कारण यह है कि सूक्ष्म वित्त की जद में केवल सालाना 3 लाख रुपये आय वाले परिवार हो आते हैं। एमएसएमई के लिए ऋण लेना मुश्किल हो रहा है।
नियामक को बड़ी सूक्ष्म वित्त कंपनियों को उनके ऋणों का एक निश्चित हिस्सा एमएसएमई को देने के लिए कहा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि एमएसएमई खंड राष्ट्रीय प्राथमिकता की सूची में भी शामिल है।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक प्राइवेट लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)