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राजग: 25 साल पहले जुड़े, पर अब कई बिछड़े

Published by
अर्चिस मोहन
Last Updated- May 16, 2023 | 8:30 AM IST

इस महीने नरेंद्र मोदी सरकार अपनी नौवीं वर्षगांठ पारंपरिक तौर पर पूरे उत्साह और धूमधाम से मनाएगी। लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के 25 साल पूरे होने को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही है। राजग की शुरुआत औपचारिक रूप से 15 मई, 1998 को हुई थी और 1998 से 2004 तक केंद्र में शासन करने वाली भाजपा के लिए यह गठबंधन महत्वपूर्ण भी रहा। हालांकि, 2014 में मिली बड़ी जीत के बाद सहयोगी दलों के प्रति भाजपा नेतृत्व का शुरुआती उत्साह कम हो गया है।

भाजपा में कुछ लोगों का मानना है कि शनिवार को आए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे और उपचुनाव के नतीजे दरअसल भाजपा को राजग के प्रासंगिक होने की याद दिलाते हैं। कर्नाटक में भाजपा की बड़ी हार के कुछ घंटों बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि दक्षिण भारत अब ‘भाजपा मुक्त’ हो गया है।रविवार को भाजपा के राज्यसभा सदस्य जीवीएल नरसिम्हा राव आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में थे, जहां उन्होंने सत्तासीन दल वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) की आलोचना राज्य में व्याप्त अराजकता के लिए की। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि वह, जन सेना पार्टी (जेएसपी) प्रमुख पवन कल्याण के वाईएसआरसीपी विरोधी वोटों को विभाजित नहीं होने देने के आह्वान से सहमत हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा और जेएसपी सहयोगी दल हैं और इसी तरह जेएसपी और तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) भी सहयोगी दल हैं। तेदेपा, 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले राजग से बाहर हो गई थी, लेकिन हाल ही में उसने रिश्ते सुधारने की कोशिश की है। संभवतः तेदेपा के संदर्भ में ही उन्होंने कहा कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अन्य गठबंधनों पर फैसला करेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विचारक और भाजपा के बौद्धिक केंद्र के पूर्व प्रमुख आर बालशंकर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि शीर्ष नेतृत्व सहयोगी दलों के बारे में फैसला करेगा लेकिन अगर तेदेपा या द्रमुक भी गठबंधन करने के इच्छुक हैं तो उनका स्वागत किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘कई और राजनीतिक दल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की तुलना में राजग के करीब हैं, जैसे कि बीजू जनता दल। हाल तक तेलंगाना राष्ट्र समिति और वाईएसआरसीपी भी पार्टी के करीब रही है। हालांकि अकाली दल, जनता दल (यूनाइटेड) और शिवसेना का एक धड़ा अब राजग के साथ नहीं है लेकिन फिर भी राजग ने पिछले 25 सालों में अधिक साझेदार दलों को जोड़ने में कामयाबी पाई है।’ बालाशंकर ने कहा, ‘राजग की सफलता शानदार है और इसके 25 वर्षों में से 16 वर्ष से अधिक समय तक सरकार केंद्र में रही है और वर्ष 1998 के बाद से इस गठबंधन ने छह लोकसभा चुनावों में से चार में जीत हासिल की है।’

शनिवार को आए जालंधर लोकसभा उपचुनाव के नतीजे भाजपा को इस बात की चेतावनी देते हैं कि उसे पंजाब में अपने पूर्व सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बिना काफी संघर्ष करना पड़ेगा। हालांकि पिछले 12 महीने में पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष
सुनील जाखड़ जैसे नेताओं के पार्टी से जुड़ने के बावजूद भाजपा की मुश्किलें कम नहीं होंगी।

जालंधर के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को 1.34 लाख वोट मिले, जबकि अकालियों को 1.54 लाख वोट मिले वहीं जीतने वाले आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार को 3.02 लाख वोट मिले। एक सूत्र ने बताया कि शिअद-भाजपा एकजुट होकर आप को कड़ी टक्कर दे सकते थे क्योंकि शिअद-भाजपा की संयुक्त वोट हिस्सेदारी और आप की वोट हिस्सेदारी के बीच का अंतर एक प्रतिशत है।

हालांकि शिअद नेता नरेश गुजराल ने कहा कि उनकी पार्टी भाजपा से सावधान है। उन्होंने कहा, ‘भाजपा को अपने और अपने पूर्व सहयोगियों के बीच विश्वास की कमी को फिर से पूरा करने की जरूरत है। उन्होंने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया, इसके सिद्धांतों को तोड़ा और शिवसेना, जदयू और शिअद जैसे सहयोगी दलों के राजनीतिक स्थान या उनके विधायकों को हड़पने की कोशिश की।’ गुजराल ही अब भंग हो चुकी राजग समन्वय समिति में अपनी पार्टी का प्रतिनिधित्व करेंगे।

उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों ने राजग की प्रासंगिकता के एक और पहलू को उजागर किया। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सहयोगी, अपना दल (सोनेलाल) ने मिर्जापुर में छानबे और रामपुर में स्वार उपचुनाव लड़ा और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को हराया। स्वार में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाली इस पार्टी ने शफीक अहमद अंसारी को मैदान में उतारा, जिन्होंने सपा नेता आजम खान का गढ़ मानी जाने वाली सीट पर सपा की अनुराधा चौहान को हराया।

इस सीट पर भाजपा या इसके सहयोगी दलों ने पिछले दो दशक में कभी जीत हासिल नहीं की थी। पटेल ने जीत का श्रेय राजग में लोगों के निरंतर बने भरोसे को दिया। एक सूत्र ने कहा कि चूंकि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में एक भी मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा इसलिए पार्टी अपने सहयोगी दलों का इस्तेमाल कर इस समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश कर सकती है कि पार्टी का संरक्षण उन तक भी पहुंच रहा है और इस तरह पार्टी अपनी एक समावेशी छवि पेश कर पाएगी।

2020 में भाजपा के साथ अपने संबंधों को तोड़ने वाली एक पार्टी के नेता ने कहा, ‘यह सिर्फ संख्या की बात नहीं है। कभी-कभी गठबंधन और गठजोड़ का प्रतीकात्मक महत्व होता है।’

First Published : May 16, 2023 | 8:30 AM IST