आर्थिक गतिविधियों में तेजी के बावजूद महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MANREGA) में इस वित्त वर्ष काम की मांग तेज बनी हुई है। ग्रामीण इलाकों में रोजगार के हिसाब से यह चिंता का विषय है।
इसे देखते हुए केंद्र सरकार इस योजना और धन डालने पर विचार कर रही है, जिससे वित्त वर्ष के शेष महीनों में योजना सुचारु रूप से जारी रह सके।
मनरेगा वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर तक इस योजना में व्यय करीब 77,634 करोड़ रुपये रहा है, जबकि कुल उपलब्ध राशि 68,014 करोड़ रुपये है। इससे पता चलता है कि आवंटन से 9,619.53 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हो चुके हैं।
केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 24 के बजट अनुमान (बीई) में मनरेगा के लिए करीब 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किया था। खबरों में कहा गया है कि इस घाटे की भरपाई के लिए हाल में 10,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त आवंटन किया गया है, जबकि 18,000 से 20,000 करोड़ रुपये और आवंटित किए जा सकते हैं।
बहरहाल अतिरिक्त आवंटन अगले 5 महीने के लिए पर्याप्त होगा, या व्यय का कुछ हिस्सा अगले साल के बजट में ले जाना पड़ेगा, यह देखना बाकी है। ऐसा इसलिए भी है कि पहले चरण में दिए गए 10,000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल मौजूगा घाटे की भरपाई में ही हो जाएगा।
मनरेगा वेबसाइट से मिले आंकड़े से पता चलता है कि अक्टूबर 2023 के अंत तक करीब 206.9 करोड़ रुपये कार्यदिवस का सृजन किया गया, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 188.9 करोड़ कार्यदिवस का सृजन किया गया था।
इससे इस दौरान काम की मांग में 9.8 प्रतिशत वृद्धि का पता चलता है। वित्त वर्ष 2023 में करीब 295.7 करोड़ कार्यदिवस का सृजन इस योजना के तहत किया गया था।
अब चालू वित्त वर्ष के शेष 5 महीने में भी ऐसी स्थिति बनती दिख रही है। इसका मतलब यह हुआ कि नवंबर 2023 से मार्च 2024 के बीच 117.84 करोड़ कार्यदिवस का सृजन हो सकता है।
मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक वित्त वर्ष 24 में काम वाले वाले एक व्यक्ति को एक दिन में औसतन 321 रुपये मिले हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि अनुमानित कार्यदिवस (117.84 X321) के लिए 37,826.6 करोड़ रुपये की जरूरत होगी।
खबरों के मुताबिक इसके लिए 28,000 से 30,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त बजट आवंटन की संभावना है। और 10,000 करोड़ रुपये हाल में दिए जा चुके हैं, जिसका इस्तेमाल घाटे की भरपाई में हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि शेष 18,000 से 19,000 करोड़ रुपये नई मांग के लिए उपलब्ध होगा।
इस शेष राशि से करीब 57.9 करोड़ कार्यदिवस का सृजन हो सकता है, जबकि 117.84 कार्यदिवस के सृजन की जरूरत होने का अनुमान है। मनरेगा के तहत न्यूनतम 100 दिन काम का कानूनी अधिकार दिया गया है।
लिबटेक इंडिया में वरिष्ठ शोधार्थी चक्रधर बौद्ध ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा, ‘केंद्र सरकार लगातार कहती रही है कि मनरेगा काम की मांग से संचालित मॉडल है, जिसके लिए पर्याप्त धन है। बहरहाल जमीनी हकीकत अलग है। जब भी फंड की कमी होती है, मनरेगा के तहत गतिविधियां तब तक ठहर जाती हैं, जब तक धन नहीं आता। यह अहम है कि सरकार इस योजना के तहत पर्याप्त धन की उपलब्धता सुनिश्चित करे और सही मायने में मनरेगा के तहत कानूनी गारंटी दी जा सके।’
लिबटेक इंडिया सामाजिक वैज्ञानिकों, कार्यकर्ताओं, इंजीनियरों और डेटा वैज्ञानिकों का समूह है। यह मनरेगा के विभिन्न पहलुओं पर कई राज्यों में काम करता है।