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डिजिटल बैंकिंग पर जोर और परेशान होते ग्राहक

अगर बैंक की ओर से कोई गलत फोन नंबर डालकर फर्जी पंजीयन किया जा सकता है तो यह स्वाभाविक सी बात है कि ग्राहकों की सुरक्षा के साथ समझौता किया जा रहा है।

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देवाशिष बसु   
Last Updated- July 18, 2023 | 9:39 PM IST

ग्राहकों की समस्या हल करने की पुख्ता व्यवस्था कायम किए बगैर डिजिटल की ओर बढ़ते समय हम ग्राहकों को ही सतर्क और सावधान रहने की आवश्यकता है। बता रहे हैं देवाशिष बसु

बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) के अधिकारियों ने गत वर्ष कथित तौर पर फर्जी मोबाइल नंबरों का प्रयोग करके बैंक की नई ऐ​प्लिकेशन बॉब वर्ल्ड के नए पंजीयन का लक्ष्य हासिल किया।

अल जजीरा की एक खोजी रिपोर्ट के मुताबिक बैंक की प्रत्येक शाखा में एक अधिकारी को यह लक्ष्य सौंपा गया था कि वह कम से कम 150 वर्तमान ग्राहकों को इस ऐ​प्लिकेशन से जोड़े। जब पंजीयन कम हुए तो अधिकारियों ने यूं ही अनजान लोगों के मोबाइल नंबर को जोड़कर पंजीयन बढ़ाने की कोशिश की।

ऐसा प्रतीत होता है कि बैंक के अधिकारियों ने पूरे देश में ऐसा किया। पहले उन्होंने ऐसे बैंक खातों की सूची निकाली जिनके साथ मोबाइल नंबर नहीं थे। इसके बाद उन्होंने इन खातों को किसी भी मोबाइल नंबर से जोड़कर वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) प्राप्त किया ताकि ऐप को शुरू किया जा सके।

रिपोर्ट के अनुसार कर्मचारियों का दावा है कि उन्होंने इन ग्राहकों का पंजीयन ऐप से समाप्त किया और उसी मोबाइल नंबर को किसी अन्य खाते से जोड़कर अपने लिए तय लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश की। कई मामलों में एक ही मोबाइल नंबर को 100 से अधिक बैंक खातों से जोड़ा गया।

बैंक ऑफ बड़ौदा की अपनी नीति कहती है कि एक मोबाइल नंबर को आठ से अधिक बैंक खातों से नहीं जोड़ा जा सकता है। ऐसा भी तभी किया जा सकता है जबकि ये सभी बैंक खाते एक ही परिवार के हों (बैंक ने रिपोर्ट को खारिज किया है)।

यह बात जहां कई लोगों के लिए झटका साबित हो सकती है वहीं सच तो यह है कि वेबसाइट पर फर्जी हिट्स के दावे करना, भारी तादाद में ऐप डाउनलोड के फर्जी और फर्जी पंजीयन आदि डिजिटल कंपनियों में आम व्यवहार है।

सन 2021 में जापानी निवेश कंपनी सॉफ्टबैंक ने 17 करोड़ डॉलर की राशि का निवेश एक सोशल मीडिया कंपनी आईआरएल में किया। इस प्रकार उसने इस अनजान सी कंपनी का मूल्यांकन 1.17 अरब डॉलर किया।

पता यह चला कि उसके दो करोड़ यूजर के दावे में से 95 फीसदी फर्जी थे। परंतु जब एक लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्यांकन वाले देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक के कर्मचारियों ने लक्ष्य हासिल करने के लिए बार-बार फर्जी ऐप पंजीयन किया तो यह बैक उपभोक्ताओं और वित्तीय सेवाओं के लिए बहुत संवेदनशील मसला बन जाता है।

भारत के संदर्भ में यह प्रकरण तीन मुद्दे उठाता है:

ग्राहकों की सुरक्षा: अगर बैंक की ओर से कोई गलत फोन नंबर डालकर फर्जी पंजीयन किया जा सकता है तो यह स्वाभाविक सी बात है कि ग्राहकों की सुरक्षा के साथ समझौता किया जा रहा है। अल जजीरा के मुताबिक बैंक ऑफ बड़ौदा के आंतरिक ईमेल में यह स्वीकार किया गया कि हजारों बैंक खातों की सुरक्षा खतरे में थी क्योंकि वे अनजान लोगों के मोबाइल फोन से जुड़े हुए थे।

एक आंतरिक ईमेल दिखाता है कि अकेले भोपाल जोन में करीब 1,300 मोबाइल नंबर 30 से 100 बैंक खातों से जुड़े हुए थे और करीब 62,000 बैंक खाते जोखिम में आ गए थे। यानी एक मोबाइल नंबर से औसतन 47 बैंक खाते जुड़े हुए थे। यह बैंक के ग्राहकों को डिजिटल धोखाधड़ी के भारी जोखिम में डालने वाली बात थी।

बैंकरों की ईमानदारी और विश्वास भंग: इस समस्या के मूल में हैं ऊंचे और जरूरी लक्ष्य। इनके कारण स्वाभाविक रूप से व्यवहार खराब होता है। ऐसे ही ऊंचे लक्ष्य और बचाव और बचत की संयुक्त योजना के रूप में बीमा पॉलिसी बेचने के कारण भी बड़े पैमाने पर गलत तरीके से बिक्री और धोखाधड़ी सामने आई है। हमारे सामने बैंक धोखाधड़ी के ऐसे भी मामले आए हैं जहां भीतरी लोगों की भूमिका काफी संदेहास्पद रही है। अजय सूद एक अनिवासी भारतीय हैं जो अमेरिका में बस गए हैं। बैंक ऑफ इंडिया के उनके खाते से 1.33 करोड़ रुपये निकाल लिए गए।

ऐसा तब किया गया जबकि धन निकासी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मूल चेक उनके पास थे। उनके पंजीकृत मोबाइल नंबर को बदल दिया गया था और खाते से एक ऐसा आधार नंबर जोड़ दिया गया था जो उनका नहीं था। बिना बैंक के लोगों की मिलीभगत के ऐसा नहीं हुआ होता। बैंक के साथ ‘उनके’ नाम पर गलत तरीके से संवाद किया गया वह भी एक अपंजीकृत ईमेल आईडी से और उसके बाद बैंक अधिकारियों ने फंड स्थानांतरित करने को मंजूरी दे दी। उन्होंने अपने खाते में इतना पैसा अपनी मां के लिए रखा था जो भारत में रहती थीं।

जरा विचार कीजिए कैसे बैंक ऑफ बड़ौदा ने हजारों लोगों को मुश्किल में डाल दिया। बैंक ऑफ बड़ौदा के एक अधिकारी ने अल जजीरा को बताया कि कई कर्मचारियों ने ग्राहकों के खातों के साथ अपने मोबाइल नंबर जोड़ दिए। डिजिटल लेनदेन ओटीपी पर आधारित होते हैं जो गलत मोबाइल नंबर पर चला जाएगा। एक अंदरूनी ईमेल में इस खतरे को स्वीकार किया गया और कहा गया कि अगर कोई धोखाधड़ी होती है तो संबंधित शाखा तथा क्षेत्र के अधिकारियों को जिम्मेदार माना जाएगा।

ग्राहकों का समाधान: वित्तीय सेवा कारोबार में और स्वास्थ्य सेवा में भी सेवा प्रदाता ही सर्वेसर्वा होता है जबकि उपभोक्ता उसकी दया पर निर्भर होता है। बैंक धोखाधड़ी के मामलों में बैंकों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया यह होती है कि वह अपनी गलती न मानकर ग्राहक को ही दोषी ठहराया जाए। डॉ. सूद के मामले में उन्होंने बैंक ऑफ इंडिया में तमाम अधिकारियों से बात की। यहां तक कि रिजर्व बैंक तक में की।

बैंक के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक, नोडल अधिकारी और चंडीगढ़ के सहायक महाप्रबंधक तक को लिखे ईमेल्स का कोई जवाब नहीं मिला। आखिरकार हमारे हस्तक्षेप के बाद उन्हें उनका पैसा वापस मिला। परंतु न्याय की लड़ाई बहुत लंबी और परेशान करने वाली है। इसमें बहुत समय और धैर्य की आवश्यकता है। बैंक अब साफ-सफाई में लगा है लेकिन उतना ही पर्याप्त नहीं है। नियामक भी मामले की जांच कर रहा है लेकिन उससे क्या हासिल होगा? बैंकों की गलती खासकर गलत तरीके से उत्पाद बेचने के मामलों में उनकी गलती तय कर पाना मुश्किल है। जब साबित भी हो जाता है तो मौद्रिक जुर्माना इतना अधिक नहीं है और न ही केवल जुर्माने से ऐसे मामले रोके जा सकते हैं।

ऐसी धोखाधड़ी बढ़ेगी तो कई ग्राहकों के बैंक खाते साफ हो जाएंगे। रिजर्व बैंक को इन बातों की पूरी जानकारी है लेकिन वह अपेक्षित गति से काम नहीं कर रहा है। ग्राहकों की समस्या हल करने की पुख्ता व्यवस्था कायम किए बगैर डिजिटल की ओर बढ़ते समय हम ग्राहकों को ही सतर्क और सावधान रहने की आवश्यकता है।

(लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक हैं)

First Published : July 18, 2023 | 9:39 PM IST