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Editorial: ब्याज दरों को लेकर प्रतीक्षा करने का वक्त

फिलहाल जो हालात हैं उनमें एमपीसी के लिए वृद्धि दर चिंता का विषय नहीं है और यह बात उसे अवसर देती है कि वह मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित कर सके।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- December 05, 2023 | 11:11 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) की इस सप्ताह होने वाली बैठक अनुकूल आर्थिक परिदृश्य में होने जा रही है। गत सप्ताह जारी किए गए आंकड़े दर्शाते हैं कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 7.6 फीसदी की वृद्धि हासिल की।

एमपीसी ने इस अवधि में 6.5 फीसदी वृद्धि का अनुमान जताया था। हालांकि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि वृद्धि दर सकारात्मक ढंग से चौंका सकती है। चाहे जो भी हो इस वृद्धि दर ने अधिकांश अर्थशास्त्रियों को चौंका दिया है और उन्होंने पूरे वर्ष के पूर्वानुमान में संशोधन किया है।

अनुमान यह भी है कि एमपीसी पूरे वर्ष के अपने पूर्वानुमान को संशोधित करके 6.5 फीसदी से ज्यादा करेगी। चूंकि पहली छमाही में 7.7 फीसदी से अधिक आर्थिक वृद्धि रही इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि एमपीसी पूरे वर्ष के लिए क्या अनुमान पेश करती है। अधिकांश अर्थशास्त्री मानते हैं कि मौजूदा माहौल को बरकरार रखना मुश्किल होगा और वर्ष की दूसरी छमाही में इसमें कमी आएगी।

फिलहाल जो हालात हैं उनमें एमपीसी के लिए वृद्धि दर चिंता का विषय नहीं है और यह बात उसे अवसर देती है कि वह मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित कर सके। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर अक्टूबर में 4.87 फीसदी के साथ चार सालों के न्यूनतम स्तर पर रही। पिछले महीने यह 5.02 फीसदी थी।

मुद्रास्फीति के कारकों की बात करें तो इसका बुनियादी हिस्सा लक्ष्य के करीब है और यह बात एमपीसी को राहत प्रदान करेगी जबकि खाद्य मुद्रास्फीति नई चुनौतियां पेश कर सकती है। अक्टूबर में सब्जियों की कीमतों में कमी आई लेकिन अनाजों की मुद्रास्फीति ऊंची बनी रही। यह बात ध्यान देने लायक है कि कुछ चीजों की कीमतों के कारण सब्जियों की कीमत जहां बढ़ने का अनुमान है, वहीं एमपीसी की चिंता अनाज की महंगाई को लेकर है।

ताजा अनुमान संकेत देते हैं कि इस वर्ष ठंड कम पड़ेगी और इससे रबी की फसल खासकर गेंहू की उपज प्रभावित हो सकती है। असमान मॉनसून के कारण खरीफ की फसल के प्रभावित होने के बाद रबी के उत्पादन में कमी के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति ऊंची बनी रह सकती है। एमपीसी का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की दर औसतन 5.4 फीसदी बनी रहेगी।

घरेलू खाद्य कीमतों के जोखिम से इतर सामान्य माहौल भी अनुकूल है। विश्व स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें ऊंची लेकिन स्थिर हैं। पश्चिम एशिया में तनाव भी बड़ा जोखिम है। विकसित देशों में मुद्रास्फीति की दर कम हुई है जिससे वित्तीय बाजारों में उथलपुथल की गुंजाइश में कमी आई है। इसका असर मुद्रा बाजार और मुद्रास्फीति पर भी पड़ेगा।

उदाहरण के लिए अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर लक्ष्य से ऊपर है लेकिन जोखिम में कमी आई है। इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी बॉन्ड बाजार में कमी आई है और 10 वर्ष के सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल अक्टूबर के मध्य के उच्चतम स्तर से 70 आधार अंक तक घटा है।

हालांकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अधिकारियों ने कहा कि मुद्रास्फीति पर जीत की घोषणा करना जल्दबाजी होगी और नीतिगत ब्याज दरें ऊंची रह सकती हैं। वित्तीय हालात आसान हुए हैं जिससे भारत जैसे देशों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश दोबारा शुरू हो गया है।

कुल मिलाकर आने वाली तिमाहियों में हेडलाइन मुद्रास्फीति की दर के मध्यम अवधि में 4 फीसदी की दर से अधिक बने रहने की उम्मीद है क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति ऊंची रह सकती है। ऐसे में यह बात समझ में आती है कि एमपीसी प्रतीक्षा करे।

मध्यम अवधि के नजरिये से देखें तो हालिया विधानसभा चुनावों में किए गए वादों में से कुछ अगले साल लोकसभा चुनाव तक जारी रह सकते हैं। इसका असर सरकार की वित्तीय स्थिति पर पड़ सकता है। यकीनन यह मुद्रास्फीति पर भी असर डालेगा।

First Published : December 5, 2023 | 10:45 PM IST