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Editorial: विधानसभा चुनाव में हार के बाद ‘इंडिया’ का भविष्य

कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि हिंदी प्रदेशों में लोगों ने भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ाव नहीं महसूस किया और जाति जनगणना के वादे पर आधारित कांग्रेस का प्रचार भी वहां नहीं चला।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- December 06, 2023 | 10:50 PM IST

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने 1 सितंबर को मुंबई में अपनी पिछली बैठक में सीट साझेदारी की व्यवस्था को ‘तुरंत’ हल करने का ‘संकल्प’ लिया था और कहा था कि इसे आपसी सामंजस्य की भावना के साथ जल्दी पूरा किया जाएगा। यह भी कहा गया था कि देश भर में सार्वजनिक मुद्दों पर जनसभाओं का आयोजन किया जाएगा और संचार, मीडिया रणनीति तथा प्रचार अभियान के मामले में समन्वित प्रयास किए जाएंगे।

कांग्रेस इस गठबंधन की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है जिसकी राजनीतिक पहचान पूरे देश में है। वह नवंबर में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में उतरी थी लेकिन वह इन सभी मोर्चों पर पीछे हट गई।

नतीजा यह हुआ कि गठबंधन करीब तीन महीने से जरा भी आगे नहीं बढ़ सका है। स्पष्ट है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि पार्टी पांच राज्यों में से कम से कम तीन में चुनावी जीत दर्ज करेगी। इससे पहले पार्टी को हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनावों में जीत मिली थी। उन्हें लगा कि इस स्थिति में ‘इंडिया’ के अन्य साझेदारों के साथ सीट साझेदारी को लेकर वह मजबूती से अपना पक्ष रख सकेगी।

हकीकत में पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कमल नाथ ने ही पहले तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के इस सुझाव को ठुकरा दिया था कि भोपाल में संयुक्त रैली की जाए। इसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी के सीट साझेदारी के अनुरोध को रुखाई से ठुकराकर एकता को और चोट पहुंचाई थी।

हिंदी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस की हार के कारण ही उसके क्षेत्रीय साझेदारों ने पार्टी के खिलाफ अपनी हताशा सार्वजनिक रूप से प्रकट की और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा 6 दिसंबर को आयोजित बैठक में शामिल नहीं हुए और उन्हें यह बैठक आगे के लिए टालनी पड़ी।

खरगे और उनकी टीम को अब सभी को बातचीत के लिए तैयार करना होगा। कांग्रेस ने खुद को तेलंगाना में मिली जीत से सांत्वना दी है और उन नेताओं पर लगाम लगाकर अच्छा काम किया है जो उत्तर-दक्षिण के विभाजन की बात कर रहे थे। परंतु फिर भी पार्टी अपने वरिष्ठ नेताओं की ओर से वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ के गैरजिम्मेदाराना बयानों के आगे असहाय महसूस कर रही है।

ऐसी बातों से पार्टी को कोई लाभ नहीं होगा। पार्टी को यह समझना चाहिए कि हिंदी प्रदेशों में लोगों ने भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ाव नहीं महसूस किया और जाति जनगणना के वादे पर आधारित कांग्रेस का प्रचार भी वहां नहीं चला। पार्टी ने आजीविका के प्रश्नों पर खुलकर बात नहीं की।

खासकर मुद्रास्फीति और रोजगार संकट पर वह ऐसा नहीं कर सकी जबकि ‘इंडिया’ गठबंधन ने अपनी बैठकों में इन पर सहमति जताई थी।
यह बात ध्यान देने लायक है कि विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए गठबंधन को मजबूत करने के अवसर थे लेकिन उसने इसके विपरीत काम किया।

उदाहरण के लिए द हिंदू में प्रकाशित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के एक अध्ययन के मुताबिक कांग्रेस को राजस्थान में कम से कम 40 सीटों पर इसलिए नुकसान उठाना पड़ा कि उसने भारतीय आदिवासी पार्टी तथा अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ सीट साझा करने से इनकार कर दिया था।

बहरहाल दिसंबर 2003 का उदाहरण बताता है कि आम चुनाव के पहले इन विधानसभा चुनावों में जीत पांच माह बाद लोकसभा चुनावों में जीत की गारंटी नहीं है।

बहरहाल ‘इंडिया’ गठबंधन और खासतौर पर कांग्रेस पार्टी को यह स्वीकार करना चाहिए कि 2024 की चुनौती लगातार मजबूत हो रही है। ऐसे में अगर कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन को 2024 में अपनी संभावना मजबूत करनी हैं तो उन्हें सभी विवादों को तुरंत हल करके एक वैकल्पिक एजेंडा तैयार करना होगा। यह सब आसान नहीं होगा और यह गठबंधन इस बात पर निर्भर होगा कि कांग्रेस किस हद तक समायोजन की इच्छा दिखाती है।

First Published : December 6, 2023 | 10:42 PM IST