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देश में chatgpt से सीखने की बढ़ेगी रफ्तार ?

भारत के महानगरों के स्कूलों में इस तरह की बहस शुरू हो चुकी है और कुछ गंभीर तरीके से पुनर्विचार कर रहे हैं।

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देबार्घ्य सान्याल   
Last Updated- July 11, 2023 | 12:18 AM IST

अगर आप जीपीटी 3.5 में ‘चैटजीपीटी इन स्कूल डिबेट’ जैसे वाक्यांश लिखते हैं तब संभव है कि कि आपको इस तरह की चुटीली पंक्ति लिखी हुई मिले जैसे कि ‘हमने जहां से शुरुआत की थी हम वहीं वापस आ गए हैं लेकिन इसमें कम से कम कुछ बदलाव तो हुआ है।’

यह सच है कि दुनिया में जीपीटी 3.5 की शुरुआत के ठीक बाद शुरू हुई कुछ चर्चा, शिक्षा के क्षेत्र में जेनेरेटिव एआई की भूमिका पर केंद्रित है खासतौर पर के-12 श्रेणी में। कई देशों के स्कूलों द्वारा बड़े पैमाने पर एआई पर प्रतिबंध लगाने की सबसे अधिक अपुष्ट रिपोर्टों के बीच अभिभावकों का यह मानना हो सकता है कि यह उनके लिए एक चिंता का विषय है।

हालांकि, गुरुग्राम के हेरिटेज इंटरनैशनल एक्सपीरिएंशियल स्कूल (एचआईएक्सएस) द्वारा माता-पिता को भेजे गए हाल के एक पत्र से पता चलता है कि भारत के महानगरों के स्कूलों में इस तरह की बहस शुरू हो चुकी है और कुछ गंभीर तरीके से पुनर्विचार कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए, पत्र का एक छोटा हिस्सा ही लें जिसमें लिखा है, ‘चैटजीपीटी की क्षमता शिक्षकों को उत्साहित करती है, लेकिन इसको लेकर कुछ आशंकाएं भी हैं। यदि छात्र असाइनमेंट पूरा करने के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं, तो क्या यह चोरी नहीं है? हमें कैसे पता चलेगा कि ये असाइनमेंट छात्र ने पूरे किए हैं न कि एआई टूल ने? यदि छात्र केवल चैटजीपीटी से प्रश्न पूछकर सीख सकते हैं तब शिक्षक की क्या भूमिका होगी? यह अंतिम प्रश्न सबसे पेचीदा है और इसकी वजह से हमारे कर्मचारियों के बीच कई तरह की चर्चा शुरू हो चुकी है।

एक शिक्षक क्या कर सकता है जो चैटजीपीटी नहीं कर सकता है?’ इसलिए, जहां से हमने शुरुआत की थी, हम वहीं वापस लौटें लेकिन कम से कम कुछ बदलाव हुआ है। इस विमर्श में केवल एचआईएक्सएस ही नहीं है। गाजियाबाद के डीएलएफ पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्य सीमा जेरथ भी एचआईएक्सएस की चिंता से इत्तफाक रखती हैं।

जेरथ ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि हम पूछ रहे हैं कि शिक्षक और छात्र एआई का उपयोग कैसे कर सकते हैं और इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए या नहीं। हम निश्चित रूप से इस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि हमें इसका अंदाजा है कि जेनेरेटिव एआई अब यहां मौजूद रहेगा।‘ उन्होंने कि चैटजीपीटी कक्षा में कई तरह से लाभ दे सकता है।

दिव्यांग बच्चों को कुछ कार्य करने में आसानी होगी। जेरथ कहती हैं, ‘जेनेरेटिव एआई शिक्षकों के काम को भी कम कर सकता है। वे टेक्स्ट, वीडियो, प्रेजेंटेशन हासिल कर सकते हैं। इसके अलावा क्विज, गेम, एमसीक्यू, एक्सेल शीट और यहां तक कि पाठ की योजनाएं भी बना सकते हैं। काम का बोझ कम होने के साथ ही शिक्षक अपने छात्रों को व्यक्तिगत स्तर पर सीखने के अवसर देने में सक्षम होंगे, जो इस समय की मांग भी है। वे सामाजिक-भावनात्मक और जीवन कौशल पर बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होंगे, जिससे हर सीखने वालों की क्षमता बढ़ाने पर काम किया जाएगा।’

जीपीटी सीरीज पहले से ही स्कूल के सीनियर छात्रों को कॉलेज जीवन में से जुड़े बदलावों को समझने में मददगार साबित हो रही है। एमआईटी टेक रिव्यू में रोहन मेहता लिखते हैं, ‘इन दिनों कॉलेज में आवेदन करने जैसी कुछ प्रक्रिया मानसिक रूप से थका देने वाली हैं और मैंने अपने पूरक लेख में काफी मेहनत की लेकिन चैटजीपीटी के संपादन की पेशकश आकर्षक थी।’

मेहता कहते हैं कि चैटजीपीटी ने जो बताया वह आधुनिक कॉलेज लेख की रचनात्मक मांगों के लिहाज से बुनियादी रूप से असंगत थी लेकिन संभावनाओं को व्यक्त करने के लिए चैटजीपीटी के उपयोग से उनकी सोच मजबूत होती है जो शब्दों के पैमाने से पैराग्राफ तक है।

अशोक विश्वविद्यालय के उद्यमिता विभाग में विजिटिंग फैकल्टी और एआई और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों के माध्यम से डिजिटल बदलाव जैसी सेवाएं देने वाली ब्रिटेन की कंपनी टेक व्हिस्परर लिमिटेड के संस्थापक जसप्रीत बिंद्रा का कहना है कि अधिकांश हाई-स्कूल और स्नातक छात्रों ने तेजी से जेनेरेटिव एआई उपकरणों को अपनाया है और वे पहले से ही चैटजीपीटी से भी आगे बढ़कर चैटसोनिक, जैस्पर और नोशन आई जैसे अधिक बेहतर विकल्पों को अपना रहे हैं।

बिंद्रा यह भी बताते हैं कि इन्हें तेजी से अपनाने की वजह से स्कूलों के लिए चुनौती उन छात्रों के साथ बने रहने की होगी, जिन्होंने अपने साथियों की तुलना में तेजी से कौशल को समझा है और वे अधिक ताकतवर उपकरणों को अपना रहे हैं। स्कूलों के लिए जेनेरेटिव एआई को अपनाने और इसे तेजी और तत्काल तरीके से बनाने की आवश्यकता है।

दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साथ-साथ बेंगलूरु, मुंबई और हैदराबाद जैसे शहरों के कई स्कूलों से बिज़नेस स्टैंडर्ड ने बात की जिनसे पता चला कि ये स्कूलों में इस प्रौद्योगिकी को लागू करने के लिए कार्य योजना बनाने पर चर्चा शुरू करने के लिए अपने संबंधित राज्य या केंद्रीय बोर्ड से संपर्क करने पर विचार कर रहे हैं।

हैदराबाद के हाईटेक सिटी के एक प्रतिष्ठित स्कूल की प्रधानाचार्य स्मृति खन्ना कहती हैं, ‘इस तरह की कार्ययोजना के लिए नियामकीय ढांचा जरूरी होगा और सीमाएं निर्धारित की जानी चाहिए।’

खन्ना और जेरथ जैसी शिक्षकों का कहना है कि छात्रों ने पहले से ही अपना होमवर्क करने, गणित की समस्याओं को हल करने और लंबे उत्तर लिखने आदि के लिए जेनेरेटिव एआई का उपयोग करना शुरू कर दिया है। जेरथ कहती हैं, ‘यह उनके सीखने की रफ्तार को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है और वे अवधारणाओं को समझे बिना अपनी बुनियादी कौशल को भी गंवा सकते हैं और चीजों को समझे बिना ही बेहतर अंक ला सकते हैं।’

First Published : July 11, 2023 | 12:18 AM IST