टेक-ऑटो

GPS तकनीक आखिर क्यों लड़खड़ा रही है और भारत जैसे बड़े देश इससे कैसे निपटेंगे

जीपीएस में बढ़ती गड़बड़ियों ने दुनिया की चिंता बढ़ाई, अब भारत समेत कई देश नए रास्ते खोज रहे हैं

Published by
अभिजित कुमार   
Last Updated- December 02, 2025 | 9:34 AM IST

आज हमारी जिंदगी जिन डिजिटल सिस्टम पर चलती है, वे ऐसे सिग्नल पर निर्भर हैं जिनके बारे में हम अक्सर सोचते भी नहीं। कई सालों तक ये सिग्नल सही चलते रहे, लेकिन पिछले एक साल में इनमें डर पैदा करने वाली गड़बड़ियां सामने आने लगी हैं। दिल्ली के आसमान में उड़ रहे विमान हों या समुद्रों के पास उड़ान भरने वाले हवाई जहाज, पायलटों ने बताया कि उनके नेविगेशन सिस्टम अचानक गलत दिशा दिखाने लगे। कई बार तो विमान की असली जगह से सैकड़ों किलोमीटर दूर की लोकेशन दिखाई देने लगी। अब दुनिया के कई विमानन विभाग इन घटनाओं को जीपीएस में जानबूझकर की गई दखल का परिणाम मान रहे हैं। इससे यह साफ हो गया है कि आधुनिक दुनिया किस हद तक इस तकनीक पर निर्भर है।

जीपीएस क्या है और दुनिया इसे क्यों उपयोग करती है

जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम अमेरिका द्वारा चलाया जाने वाला एक सैटेलाइट नेटवर्क है। इसमें 24 से अधिक सैटेलाइट आसमान में घूमते रहते हैं और लगातार अपनी पोजिशन और समय का सिग्नल भेजते हैं। मोबाइल, विमान, जहाज और टेलिकॉम टावर इन सिग्नलों की मदद से अपनी सही जगह और समय तय करते हैं। जीपीएस की शुरुआत वर्ष 1973 में हुई थी और यह 1995 में पूरी तरह काम करने लगा। आज अमेरिका इस सिस्टम पर हर साल अरबों डॉलर खर्च करता है।

जीपीएस आधुनिक जीवन को कैसे जोड़ता है

आज दुनिया में रूस का ग्लोनास, यूरोप का गैलीलियो और चीन का बेइदू जैसे दूसरे सिस्टम भी हैं, लेकिन जीपीएस सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। इन सभी सिस्टम की सबसे जरूरी बात यह है कि यह दुनिया को एक जैसा और एकदम ठीक समय बताते हैं। मोबाइल कंपनी, बैंक, शेयर बाजार, बिजली का नेटवर्क, डेटा सेंटर और इंटरनेट सभी को एक ही समय पर एक साथ काम करना होता है। अगर समय एक सेकंड भी आगे पीछे हो जाए तो बहुत बड़ी गड़बड़ी हो सकती है। जीपीएस सब जगह एक जैसा सही समय पहुंचाता है, इसलिए सब कुछ ठीक से चलता है। इसी वजह से हवाई जहाज, जहाज, ट्रेन, ट्रक, खेती की मशीनें, वैज्ञानिकों का काम और मोबाइल में चलने वाले नक्शे सब जीपीएस पर निर्भर रहते हैं।

युद्ध में जीपीएस की भूमिका और उसकी कमजोरियां

जीपीएस को सबसे पहले सेना के लिए बनाया गया था ताकि मिसाइल, जहाज, टैंक और सैनिक खराब मौसम और कठिन जगहों में भी सही दिशा पा सकें। यूक्रेन के युद्ध ने दिखा दिया कि यह तकनीक कितनी जरूरी और कितनी कमजोर दोनों है। वर्ष 2022 से रूस और यूक्रेन दोनों ने एक दूसरे के जीपीएस सिग्नल में दखल की। इससे ड्रोन, मिसाइल और संचार सिस्टम कई बार गलत दिशा दिखाने लगे। इसके बाद दोनों देशों को पुराने तरीके अपनाने पड़े जैसे इनर्शियल नेविगेशन और मजबूत एंटी जाम तकनीक। इससे दुनिया को यह समझ आया कि केवल जीपीएस पर निर्भर रहना सुरक्षित नहीं है।

दुनिया भर में जीपीएस में गड़बड़ियां क्यों बढ़ रही हैं

अंतरराष्ट्रीय विमानन संस्था के अनुसार साल 2024 में लगभग 4 लाख 30 हजार बार जीपीएस में दखल की घटनाएं हुईं। पिछले साल यह संख्या 2 लाख 60 हजार थी, यानी यह समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। कई जगह विमानों को अचानक गलत दिशा दिखने लगी या उनका रास्ता अजीब तरह से बदल गया, जो बिल्कुल संभव नहीं था। भारत में भी ऐसी दिक्कतें आईं। दिल्ली से जम्मू जा रहा एक विमान बीच रास्ते से वापस लौट आया क्योंकि उसका जीपीएस ठीक से काम नहीं कर रहा था। नवंबर 2024 में दिल्ली हवाई अड्डे पर पहली बार जीपीएस में दखल की घटना की पुष्टि हुई। इसके बाद डीजीसीए ने कहा कि ऐसी कोई भी घटना होते ही 10 मिनट के अंदर उसकी जानकारी देना जरूरी है।

जीपीएस के अलावा कौन से सिस्टम मौजूद हैं

आज दुनिया में कई तरह के सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम काम कर रहे हैं। रूस का ग्लोनास, यूरोप का गैलीलियो, चीन का बेइदू और भारत का नाविक (NavIC) इन में सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। भारत का नाविक सिस्टम धीरे धीरे मजबूत हो रहा है और सरकार चाहती है कि आने वाले सभी नए मोबाइल फोन में यह सिस्टम जरूर लगाया जाए, ताकि लोग सिर्फ जीपीएस पर निर्भर न रहें।

देश जीपीएस के लिए बैकअप क्यों बना रहे हैं

अब देशों को यह समझ में आ गया है कि सिर्फ एक ही नेविगेशन सिस्टम पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए वे अलग अलग तरह की तकनीकें तैयार कर रहे हैं ताकि जीपीएस बंद हो जाए या गलत सिग्नल दे तो भी काम चलता रहे। अमेरिका ने 2018 के बाद कई नई तकनीकों को परखा है, जैसे जमीन से मिलने वाला बहुत मजबूत सिग्नल, नीचे की कक्षा में घूमने वाले सैटेलाइट और फाइबर से चलने वाली समय तकनीक। ऑस्ट्रेलिया ने भी ऐसे उपकरणों की जांच की है जो सिग्नल खराब होने पर भी सही दिशा बता सकते हैं।

ब्रिटेन ने जरूरी राष्ट्रीय सिग्नल को सुरक्षित रखने के लिए 200 मिलियन डॉलर से ज्यादा की योजना शुरू की है और एक बहुत मजबूत लोरेन नेटवर्क बनाने पर ध्यान दे रहा है, जिसे जाम करना बहुत कठिन माना जाता है। एशिया, यूरोप और अमेरिका की कई कंपनियां भी नई तकनीक पर काम कर रही हैं जिनमें जमीन आधारित समय नेटवर्क, नए प्रकार के सैटेलाइट और ऐसे क्वांटम सेंसर शामिल हैं जो विमान और गाड़ियों को बिना सैटेलाइट के भी रास्ता दिखा सकते हैं।

क्या दुनिया जीपीएस को छोड़ देगी

अभी जीपीएस को दुनिया छोड़ने वाली नहीं है। जीपीएस पर चलने वाला पूरा बाजार बहुत बड़ा है और इसकी कीमत 100 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। दुनिया का लगभग हर काम किसी न किसी तरह जीपीएस पर निर्भर है। लेकिन हाल में जो गड़बड़ियां सामने आई हैं, उनसे यह साफ हो गया है कि देशों को अब इसके साथ मजबूत बैकअप भी बनाना पड़ेगा। आगे चलकर दुनिया सिर्फ एक सिस्टम पर नहीं चलेगी। कई सिस्टम मिलकर काम करेंगे, ताकि अगर एक सिस्टम खराब हो जाए तो दूसरा तुरंत काम संभाल ले और दुनिया की घड़ी और दिशा बताने वाली व्यवस्था बंद न हो।

First Published : December 2, 2025 | 9:26 AM IST