अब केवल सॉफ्टवेयर इंजीनियर होना ही काफी नहीं है। यह बात आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) विशेषज्ञ एवं तमांग वेंचर्स की संस्थापक एवं सीईओ नीना शिक ने पिछले दिनों बेंगलूरु में आयोजित एक बैठक में कही। उन्होंने अगली पीढ़ी के कौशल के बारे में सोचने के महत्त्व को समझाते हुए कहा कि अपने कौशल को निखारें। विश्लेषकों का मानना है कि एआई के दौर में कौशल को बेहतर करने के लिए हो रही तमाम बातों के बीच प्रौद्योगिकी क्षेत्र में मझोले स्तर के मैनजर नाजुक स्थिति में दिख रहे हैं।
ईवाई के पार्टनर एवं लीडर (प्रौद्योगिकी क्षेत्र) नितिन भट्ट ने कहा, ‘आगे मझोले स्तर के प्रबंधन की नौकरियां जांच के दायरे में आ सकती है। ऐसा खास तौर पर तब दिखेगा जब एआई एजेंट निगरानी एवं निर्णय लेने में बेहतर होते जाएंगे। ऐसे में प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बड़ी तादाद में मझोले स्तर के मैनेजरों को नए सिरे से कुशल बनाने अथवा किसी नए काम पर लगाने की जरूरत होगी अन्यथा वे बेकार हो जाएंगे।’
यह भी एक तथ्य है कि स्वचालन एवं एआई के कारण न केवल प्रवेश स्तर की नौकरियां प्रभावित होंगी बल्कि अनुभव वाले पदों पर भी उसका असर दिख सकता है। इससे काफी अनिश्चितता पैदा हो गई है और लोग खुद को नए सिरे से कुशल बनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, करीब 20 साल के अनुभव वाले मझोले स्तर के मैनेजरों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। उनका कहना है कि इन पदों पर बैठे लोगों को केवल मैनेजर ही नहीं बने रहना चाहिए बल्कि एआई की दुनिया में नई तकनीकी विशेषज्ञता हासिल करनी चाहिए।
उबर के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी (मोबिलिटी एवं डिलिवरी) प्रवीण नेप्पल्ली नागा ने कहा, ‘एआई आपकी नौकरी नहीं ले रही बल्कि एआई का इस्तेमाल करने वाले लोग आपकी नौकरी ले लेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘कर्सर का इस्तेमाल करने वाले इंजीनियर और उसका इस्तेमाल न करने वाले इंजीनियर के बीच अंतर है। इस बदलाव का पैमाना काफी बड़ा है।’
देश भर में ऐसे मैनेजरों की तादाद काफी बड़ी है। प्रमुख स्टाफिंग फर्म टीमलीज के एक अनुमान के अनुसार, प्रौद्योगिकी मैनेजरों की कुल तादाद में इनकी हिस्सेदारी 10 से 15 फीसदी है। स्पेशलिस्ट स्टाफिंग फर्म एक्सफेनो के अनुसार, भारत में करीब 6,10,000 वरिष्ठ प्रतिभाओं के पास 13 से 17 वर्षों का अनुभव प्राप्त है।
अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनी वेफेयर के भारतीय प्रौद्योगिकी विकास केंद्र के प्रमुख राहुल कैला ने कहा, ‘शायद 5-10 साल पहले ऐसा समय था जब मैनेजर की अवधारणा पीपल मैनेजर होने की होती थी। मगर अब कोई पीपल मैनेजर नहीं है। हमारे इंजीनियरिंग लीडरों में से कोई भी पीपल मैनेजर नहीं है क्योंकि वे पूरी तरह प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ हैं। अगर आप प्रौद्योगिकी को भलीभांति नहीं समझेंगे तो आप नेतृत्व नहीं कर सकते।’
जोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बु ने हाल में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को आगाह किया कि मैकेनिकल या सिविल इंजीनियरों के मुकाबले बेहतर वेतन पाने का उनका कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है।
नैसकॉम के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 4,00,000 से अधिक इंजीनियरों को एआई में प्रशिक्षित किया गया है। मगर उनमें से केवल 73,000 के पास उन्नत एआई कौशल की समझ है। इससे कौशल अंतर बिल्कुल स्पष्ट है। नैसकॉम के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि भारत 2028 तक एआई में 27 लाख नई नौकरियां पैदा करेगा। सिएल एचआर के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ आदित्य नारायण मिश्र ने कहा, ‘उन लोगों को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा जिनके पास विशेष कौशल नहीं है।’
भारत का आईटी क्षेत्र लंबे समय से रोजगार देने वाला एक प्रमुख क्षेत्र रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि अब एआई के कारण इसमें व्यापक बदलाव हो सकता है। टीमलीज डिजिटल की मुख्य कार्याधिकारी नीति शर्मा ने कहा कि प्रवेश स्तर की भूमिकाएं तो होंगी, लेकिन जो एल2 एवं एल3 है एल1 बन जाएंगे क्योंकि स्वचालन के कारण प्रवेश स्तर की कई नौकरियां अप्रासंगिक होती जा रही हैं। यही कारण है कि आईटी कंपनियों की नियुक्तियों में गिरावट दिख रही है।
शीर्ष पांच आईटी कंपनियों ने पिछले वित्त वर्ष में महज 12,718 लोगों को नियुक्त किया, जबकि 31 मार्च, 2020 को समाप्त वित्त वर्ष में 66,500 लोगों को नियुक्त किया गया था। सिएल एचआर के मिश्र ने कहा, ‘असली बदलाव आईटी सेवा में दिख रहा है। अब हमें एआई, जेन एआई, क्लाउड, डेवऑप्स, फुल-स्टैक डेवलपमेंट, प्रोडक्ट मैनेजमेंट और साइबर सुरक्षा में अधिक मांग दिख रही है।’
हाल में माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और वॉलमार्ट जैसी कंपनियों द्वारा की गई छंटनी की घोषणाओं के कारण इंजीनियर की भूमिकाओं के बारे में चिंता पैदा हो गई है। यह घोषणा ऐसे समय में की गई है जब एआई, जेन एआई और एआई एजेंट प्रौद्योगिकी क्षेत्र का परिदृश्य बदल रहे हैं।
वैश्विक वृहद आर्थिक अस्थिरता एवं शुल्क संबंधी अनिश्चितता ने भी प्रौद्योगिकी क्षेत्र की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। छंटनी पर नजर रखने वाली फर्म लेऑफ्स डॉट एफवाईआई के अनुसार, इस साल अब तक दुनिया भर में करीब 135 प्रौद्योगिकी कंपनियों में 62,000 लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं।
इस बदलते रुझान से निपटने के लिए भारत की सिलिकन वैली में न केवल प्रवेश स्तर की भूमिकाओं बल्कि मझोले स्तर के प्रबंधकों के लिए भी सबसे अधिक मायने रखने वाले शब्द हैं: नवाचार एवं बदलाव।