प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
देश की शीर्ष चार कार विनिर्माता कंपनियों में से दो ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को पत्र लिखा है। महिंद्रा ऐंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल्स ने केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल को लिखे पत्र आगामी कैफे-3 कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन नियमन में 909 किलो से कम वजन वाली पेट्रोल कारों को प्रस्तावित छूट पर विरोध जताया है।
महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ने कहा कि कैफे-3 मानदंडों का मसौदा भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाने की मौजूदा गति को उलट देगा। नतीजतन, कार विनिर्माता उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने के वास्ते मजबूत हाइब्रिड कारों को तवज्जो देने लगेंगे। टाटा मोटर्स ने कहा कि 909 किलोग्राम से कम वजन वाली कारों को खास छूट देने से कार विनिर्माताओं के लिए बैटरी प्रणाली और ईंधन सेल जैसी उन्नत तकनीक में निवेश करने के बजाय पेट्रोल-डीजल इंजन प्लेटफॉर्मों में धीरे-धीरे सुधार करना आसान और सस्ता हो जाएगा।
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दोनों कंपनियों ने 21 नवंबर को लिखे अपने पत्रों में उल्लेख किया है कि भार के आधार पर किसी भी तरह की कटौती से बराबरी के अवसरों पर असर पड़ेगा और सुरक्षित और स्वच्छ कारों की दिशा में देश की प्रगति पर प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलेगा। अपने पत्र में टाटा मोटर्स ने लिखा है, ‘909 किलो से कम वजन वाली कारों में सिर्फ एक ही मूल उपकरण विनिर्माता (ओईएम) की 95 फीसदी बाजार हिस्सेदारी है। इनमें से कई हल्की कारें उसी कीमत श्रेणी में अन्य कारों के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं। खासकर भार के आधार पर कारों को प्रोत्साहित करना यात्री वाहन उद्योग में बराबरी के अवसर देने में बड़ी चुनौती होगी।’
कॉरपोरेट औसत ईंधन दक्षता (कैफे) ढांचा औसत कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित करता है। इसे हर वाहन बनाने वाली कंपनियों के बेड़े को पूरा करना होता है और इसे प्रति किलोमीटर उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड के ग्राम (जी प्रति किलोमीटर) में नापा जाता है। अगर कोई कंपनी लक्ष्य पूरा करने में विफल रहती है तो विद्युत मंत्रालय के अधीन ऊर्जा दक्षता ब्यूरो उस पर सख्त दंड लगा सकता है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल जून में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने कैफे-3 मानदंडों का पहला मसौदा प्रकाशित किया था, जो वित्त वर्ष 2028 से 2032 के बीच लागू होगा। वाहन विनिर्माताओं के संगठन सायम ने अपने सदस्यों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद दिसंबर 2024 में अपनी प्रारंभिक टिप्पणियां प्रस्तुत कीं और उनमें कई बदलावों की मांग की गई थी। कुछ महीने बाद भारत की सबसे बड़ी कार विनिर्माता और छोटी कारों की सबसे बड़ी विक्रेता मारुति सुजुकी ने स्वतंत्र रूप से ऊर्जा दक्षता ब्यूरो से संपर्क किया और छोटी कारों के लिए भार के आधार पर छूट के जरिये राहत की मांग की। इस कदम ने उद्योग जगत में गहरी फूट डाल दी है।
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टाटा मोटर्स और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा की चिट्ठी के बारे में पूछे जाने पर मारुति सुजूकी के प्रवक्ता ने कहा, ‘कुछ गैस खपत वाले भारी वाहनों के विनिर्माताओं के लिए छोटे, स्वच्छ और अधिक ईंधन-कुशल वाहनों के लिए किसी भी प्रकार के नीतिगत समर्थन के खिलाफ लॉबिंग करना पूरी तरह से कारोबारी हित में है मगर यह देशहित के खिलाफ है।’
टाटा मोटर्स, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा और जेएसडब्ल्यू मोटर भारत में तीन प्रमुख इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनियां हैं। जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर ने भी 21 नवंबर को केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को इसी तरह का एक पत्र लिखा था। इस मामले पर बिज़नेस स्टैंडर्ड ने टिप्पणी मांगी मगर किसी भी कंपनी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
मारुति सुजूकी के प्रवक्ता ने कहा, ‘यूरोप, अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे 90 प्रतिशत से अधिक वैश्विक कार बाजार के नियमों में छोटी कारों की सुरक्षा के लिए कुछ प्रावधान हैं।’ उन्होंने कहा कि बड़ी कारों के मुकाबले छोटी कारों में ईंधन की खपत बहुत कम होती है और वे कार्बन डाइऑक्साइड भी कापी कम उत्सर्जित करती हैं, इसलिए इस सुरक्षा उपाय से कार्बन डाइऑक्साइड में कमी और ईंधन की बचत दोनों में मदद मिलेगी।
प्रवक्ता ने कहा, ‘फिलहाल कैफे-3 के मसौदे में 2.5 टन की बड़ी और भारी लग्जरी कारों में कार्बन डाइऑक्साइड में केवल 25 फीसदी की कमी की उम्मीद है मगर छोटी कार के प्रावधान के बाद भी, कैफे-2 के संदर्भ में ऑल्टो जैसी हल्की और छोटी कार में 44 फीसदी की भारी कमी की उम्मीद है।’
हालांकि, शुरुआत में इलेक्ट्रिक कारों को अपनाने की गति धीमी रही। लेकिन इस साल इलेक्ट्रिक कारों की मांग में तेज वृद्धि दर्ज की गई है।