साल 2008-09 के बजट ने ऑटोमोबाइल सेक्टर को कुछ रियायतें ही थीं। बजट में छोटी कारों, दुपहिया और तिपहिया के अलावा बसों की चेसिस पर उत्पाद शुल्क 16 से घटाकर 12 फीसदी कर दिया गया था।
कुछ कंपनियों ने इस कटौती का फायदा अपने वाहनों की कीमतें घटाकर ग्राहकों तक पहुंचाया है लेकिन इससे इस सेक्टर की मांग में बहुत ज्यादा फर्क नहीं आया है। मार्च की तिमाही में पैसेन्जर कार बनाने वाली सबसे अहम कंपनी मारुति सुजुकी के वॉल्यूम में कुल एक फीसदी का इजाफा देखने को मिला है जबकि इस दौरान टाटा मोटर्स की बिक्री में 12 फीसदी की गिरावट आ गई।
हीरो होंडा के वॉल्यूम में 2.1 फीसदी की ग्रोथ देखने को मिली है जबकि बजाज ऑटो के वॉल्यूम मे 11.8 फीसदी की कमी आ गई जबकि इस दौरान टीवीएस के वॉल्यूम में 17 फीसदी की कमी देखी गई।
लागत बढ़ने, ब्याज दरों में इजाफा होने और विदेशी मुद्रा में भारी उतार चढ़ाव होने के साथ ही वॉल्यूम में गिरावट की वजह से कारोबारी साल 2009 में ज्यादातर ऑटो कंपनियों की अर्निंग्स में औसतन 4 फीसदी की गिरावट आने के आसार हैं।
क्रेडिट सुइस का मानना है कि वॉल्यूम में गिरावट और इन कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी में ठहराव को जज्ब कर लिया है और उद्योग का भी मानना है कि लंबी अवधि में इस सेक्टर के वॉल्यूम में 8-12 फीसदी सीएजीआर की ग्रोथ देखी जा सकती है।