अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि एक ओर जहां आर्थिक सुधार की प्रक्रिया जारी है वहीं भविष्य की घरेलू मांग, राज्य सरकारों के पूंजीगत व्यय, बैंकिंग क्षेत्र के फंसे हुए कर्ज तथा आपूर्ति क्षेत्र की बाधाओं को लेकर अभी काफी अनिश्चितता रहने वाली है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा आयोजित बीएफएसआई समिट में नोमुरा की मुख्य अर्थशास्त्री (भारत और जापान के अलावा शेष एशिया) सोनल वर्मा ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि भारत कारोबारी सुधार चक्र के बीच है।’ हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि अर्थव्यवस्था में इतनी आपूर्ति नहीं है कि वह मांग क्षेत्र की ओर से नजर आ रहे अंग्रेजी के व्ही अक्षर की आकृति के सुधार के साथ कदम मिला सके। वर्मा ने कहा, ‘इस वर्ष हमारी वृद्धि में आपूर्ति क्षेत्र बाधा बन सकता है।’
जेपी मॉर्गन के मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) साजिद चिनॉय ने कहा कि यदि चालू वित्त वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था 9 या 9.5 फीसदी की दर से बढ़ती है तो भी यह महामारी के पहले के आय स्तर से नीचे रहेगी।
चिनॉय ने कहा, ‘हम उस स्थिति से पांच और छह फीसदी नीचे रह सकते हैं जो एक वर्ष पहले लगाए गए अनुमान से बेहतर होगा लेकिन फिर भी यह अंतर काफी अधिक होगा। मुझे लगता है यह बात अहम है क्योंकि नीति निर्माण के दौरान ध्यान में रखना होगा कि हमें यथाशीघ्र गंवाई गई पांच फीसदी आय के अंतर को पाटना होगा।’
एचएसबीसी में वैश्विक शोध की प्रबंध निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) प्रांजल भंडारी ने कहा कि बैंकों का फंसा हुआ कर्ज बढ़ सकता है। उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि हम सबसे बुरे दौर से गुजर चुके हैं। बैंकों के फंसे हुए कर्ज में मंदी के बाद कुछ वर्षों तक इजाफे की प्रवृत्ति देखी गई है। महामारी ऐसे घाव छोड़कर जा सकती है।’
डायचे बैंक एजी के निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री (भारत और दक्षिण एशिया) कौशिक दास ने कहा कि यदि कोविड की तीसरी लहर नहीं आती है तो चालू वित्त वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था 10-10.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है।
उन्होंने कहा कि महमारी की दूसरी लहर के आक्रमण के बाद अर्थशास्त्री बहुत निराशावादी हो गए और उन्होंने वृद्धि अनुमानों में कमी करनी शुरू कर दी।
हालांकि इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि उन्होंने भारत की वृद्धि के अनुमान को 8.5 फीसदी से बढ़ाकर 9 फीसदी किया है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र और बिजली उत्पादन दो ऐसे क्षेत्र हैं जो मंदी के बीच भी निरंतर अच्छा प्रदर्शन करते रहे।
उन्होंने कहा, ‘लेकिन अब मनरेगा में काम की मांग, ग्रामीण बेरोजगारी के आंकड़ों और ग्रामीण इलाकों में टीकाकरण के बाद हम देख रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों की गैर कृषि मांग भी सुधार के लिए तैयार है और इससे समूचे ग्रामीण क्षेत्र को आगे बढऩे में मदद मिलेगी।’
भारतीय स्टेट बैंक के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि अंतिम निजी खपत के मामले में वृद्धि से जुड़े आशावाद में भिन्नता स्पष्ट दिख रही है। उन्होंने कहा, ‘कोविड की दूसरी लहर ने आम परिवारों की बचत को प्रभावित किया है इसलिए आने वाले समय में भी यह चुनौती बरकरार रहने वाली है।’