पश्चिम बंगाल का नए सिरे से कोई पुनर्निर्माण नहीं हुआ है और न ही कोलकाता अभी लंदन में तब्दील हुआ है। लेकिन साल 2011 में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस ‘परिवर्तन’ का सूत्रधार बनने का आह्वान करते हुए सत्ता में आई थीं वह शहर के कोने-कोने की शोभा बढ़ाने वाली शानदार रोशनी से भी गहरा नजर आता है। चुनावी बिगुल बज चुका है और सभी दल पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में होने वाले चुनाव के लिए तैयारी कर रहे हैं। ममता अपने तीसरे कार्यकाल की उम्मीद के साथ चुनाव में उतर रही हैं। वह पार्टी में चल रही अंदरूनी असंतुष्टि के बीच अपनी कल्याणकारी योजनाओं और ‘विकास’ कार्यों के आधार पर तीसरी पारी के लिए वोट मांगेंगी।
यह बात सभी जानते हैं कि भूमि अधिग्रहण को लेकर हुआ आंदोलन ही ममता के लिए बंगाल में सत्ता तक पहुंचने में मददगार साबित हुआ। लेकिन इसके अलावा, उन्होंने लोगों से एक नए बंगाल का भी वादा किया था। 2011 के तृणमूल कांग्रेस के घोषणापत्र में लिखा गया था, ‘नई सरकार के सामने पश्चिम बंगाल का पुनर्निर्माण करने का काम है ताकि सर्वश्रेष्ठ के साथ प्रतिस्पर्धा की जा सके और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके।’ हालांकि ममता के 10 साल पूरा होने पर उनकी उपलब्धियां मिली-जुली हैं।
उद्योग के मोर्चे पर सरकार की सफ लता काफ ी हद तक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के विकास पर टिकी है। साल 2019-20 के लिए केंद्रीय एमएसएमई मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 88 लाख एमएसएमई इकाइयां हैं जो देश के कुल एमएसएमई का 14 फ ीसदी है। उत्तर प्रदेश में एमएसएमई की 89 लाख इकाइयां हैं। बंगाल के एमएसएमई इकाइयों से 1.3 करोड़ रोजगार मिला है।
वर्ष 2012-13 में, पश्चिम बंगाल में इन छोटे और मझोले उद्यम इकाइयों की संख्या 36 लाख थी और करीब 85 लाख लोगों को रोजगार मिला। हालांकि इसके बाद भी यह दूसरे स्थान पर है और उत्तर प्रदेश के साथ उस वक्त से ही अंतर कम हुआ है। इस क्षेत्र में ऋ ण की तादाद बढ़ी है और पहले के कार्यकाल में यह करीब 16,000 करोड़ रुपये था और वित्त वर्ष के लिए राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) का वितरण लक्ष्य 90,000 करोड़ रुपये था। हालांकि, भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर अभिरूप सरकार ने बताया कि सरकार ने एमएसएमई पर ध्यान केंद्रित किया है लेकिन बड़े उद्योग आगे नहीं आए हैं। वह कहते हैं, ‘बाकी भारत की तुलना में औसत आमदनी में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है। दक्षिणी राज्य उद्योग में आगे हैं और इसलिए उनकी प्रति व्यक्ति आमदनी अधिक है।’ चुनावों से पहले जारी तृणमूल का 2011-2020 के रिपोर्ट कार्ड में इस बात का जिक्र है कि प्रति व्यक्ति औसत आमदनी 2010 के 51,543 रुपये से दोगुने से ज्यादा बढ़कर 2019 में 1,09,491 रुपये हो गई है। हालांकि यह कई अन्य राज्यों से पीछे है। इक्रा द्वारा संकलित आंकड़ों से अंदाजा मिलता है कि प्रति व्यक्ति आमदनी (मौजूदा कीमतों पर) के लिहाज से पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गोवा, तेलंगाना, हरियाणा, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु जैसे राज्यों से पीछे है। इसी तरह मौजूदा शासन के तहत पश्चिम बंगाल में कारखानों की संख्या 2010 के 8,232 से बढ़कर 2017-2018 में 9,534 हो गई है लेकिन यह कई अन्य राज्यों की तुलना में काफ ी कम है जहां आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार साल 2010-2011 में भी कारखानों की तादाद इससे कहीं ज्यादा थी।
हालांकि इस वक्त पूरी व्यापक तस्वीर में सुधार दिख रहा है। सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2021 में राज्य में बेरोजगारी की दर 5.2 फ ीसदी पर है जो भारत के 6.53 प्रतिशत से कम है। एक कारोबारी का कहना है, ‘ऐसा नहीं है कि चीजें मौजूदा शासन व्यवस्था में नहीं सुधरी हैं। एक अच्छी बात यह है कि श्रम संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा कोई व्यवधान नहीं पैदा किया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में और अधिक निवेश की जरूरत है।’ विपक्षी दल भी सरकार के खिलाफ बार-बार यही आरोप लगाते हैं।
उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईटी) के आंकड़ों से पता चलता है कि इस मोर्चे पर कुछ वृद्धि हुई है और साल 2018 में 62 आईईएम 4,722 करोड़ रुपये के प्रस्तावित निवेश के साथ दायर किए गए जबकि 2019 में 48 आईईएम 5,844 करोड़ रुपये के प्रस्तावित निवेश के साथ जबकि दिसंबर 2020 में 27 आईईएम 9,552 करोड़ रुपये के प्रस्तावित निवेश के साथ दायर किए गए थे।
वहीं अगर दूसरे राज्यों की बात करें तो दिसंबर 2020 तक कर्नाटक के लिए प्रस्तावित निवेश 1,62,492 करोड़ रुपये था जबकि गुजरात में यह 46,141 करोड़ रुपये और महाराष्ट्र में 44,188 करोड़ रुपये (तमिलनाडु 6,807 करोड़ रुपये तक था) तक था। एक अफ सरशाह ने बताया, ‘आईएएम दर्ज कराने और लागू किए जाने की तुलना करने पर अंदाजा मिलता है कि पश्चिम बंगाल कई बड़े राज्यों से पीछे है।’
हालांकि राज्य सरकार निवेश प्रस्तावों के अलग आंकड़े पेश करती है जो इसे निवेशक शिखर सम्मेलनों, बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट (बीजीबीएस) में मिले हैं। सरकारी अनुमानों के मुताबिक, पिछले पांच निवेशक सम्मेलनों में करीब 12.32 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव मिले और इनमें से करीब 40.50 फ ीसदी पर अमल किया गया है।
बंगाल सिलिकन वैली नाम के 200 एकड़ के प्रस्तावित आईटी हब ने कुछ कंपनियों को जोड़ा है और टीसीएस ने अपना दूसरा कैंपस बनाने के लिए 20 एकड़ जमीन ली है (इसने राज्य में करीब 45,000 लोगों को नौकरी दी है) वहीं रिलायंस जियो ने एक विकास केंद्र के लिए 40 एकड़ और एयरटेल ने भी एक डेटा सेंटर के लिए जमीन ली है।
विप्रो के दूसरे केंद्र के लिए भूमि आवंटन को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है और इन्फ ोसिस ने अपने बहुप्रतीक्षित विकास केंद्र की घोषणा 2018 में की थी। राज्य ने लॉजिस्टिक्स श्रेणी पर भी ध्यान केंद्रित किया है जिसमें वृद्धि की संभावनाएं हैं और फ्लिपकार्ट पश्चिम बंगाल में अपना पहला एकीकृत लॉजिस्टिक्स केंद्र तैयार कर रही है। लेकिन इनमें से कई के काम में प्रगति हो रही है और राज्य के कर संग्रह में वृद्धि हुई है। वर्ष 2010-2011 में यह 21,128.74 करोड़ रुपये था जो 2021-22 में बढ़कर 75,416 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। सरकार ने बताया, ‘यह बेहतर प्रशासन और ई-गवर्नेंस के कारण है।’ सरकार ने कृषि पर भी जोर दिया और मौजूदा सरकार के कार्यकाल में राज्य विकास योजना के तहत कृषि और संबद्ध सेवा क्षेत्र के लिए बजट अनुमान 9.5 गुना बढ़ा है। नतीजा यह है कि 2010-2011 से 2017-18 तक खाद्यान्न का उत्पादन 25.03 फीसदी बढ़ा है और सरकार की आर्थिक समीक्षा के मुताबिक 2010-2011 से 2019-2020 के बीच रकबे में 309 फ ीसदी और उत्पादन दर 70 फ ीसदी बढ़ा है। कुछ अन्य आंकड़े भी अनुकूल दिखते हैं। पश्चिम बंगाल हमेशा कर्ज के बोझ तले दबा रहता था लेकिन जीएसडीपी (राज्य सकल घरेलू उत्पाद) और ऋ ण का अनुपात जो 2010-11 में 40:65 था वह साल 2021-22 में घटकर 34:81 फ ीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। वहीं कर्ज 2010-11 में 187,387.40 करोड़ रुपये पर था जो वित्त वर्ष 2022 में 525867.79 करोड़ रुपये (बजट अनुमान) तक बढऩे का अनुमान है।
और चक्रवात अम्फ न और कोविड की दोहरी चुनौतियों के बावजूद, पश्चिम बंगाल ने 2020-2021 में अग्रिम अनुमानों के अनुसार स्थिर कीमतों पर जीएसडीपी में 1.2 फ ीसदी की वृद्धि (31 जनवरी, 2020 तक अनुमानित) का अनुमान लगाया है। लेकिन शायद ममता का तुरुप का पत्ता विभिन्न सामाजिक और कल्याणकारी योजनाएं हैं जिन्हें उन्होंने पिछले कुछ सालों में लागू किया है और उनका सड़क, पेयजल और बिजली जैसी बुनियादी बातों पर ध्यान केंद्रित है।
चुनाव से पहले लोगों तक पहुंचने के लिए एक व्यापक कार्यक्रम ‘दुआरे सरकार’ की शुरुआत की गई जिसके तहत 12 कल्याणकारी योजनाओं की डिलिवरी शामिल है। इनमें खाद्य साथी (खाद्य सुरक्षा), कन्याश्री (उच्च शिक्षा के लिए लड़कियों को वित्तीय सहायता), कृषक बंधु (किसानों और बटाईदारों के लिए) और सबसे अहम लोगों के घर तक स्वास्थ्य सेवा देने के लिए स्वास्थ्य साथी (सार्वभौमिक स्वास्थ्य योजना) जैसी योजना शामिल है। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने बताया, ‘हर किसी के लिए कोई न कोई योजना है और सरकार ने इस पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है।’