यूक्रेन पर रूस के हमले की वजह से वैश्विक जिंस बाजारों में भी अनिश्चितता की स्थिति है और अगले वित्त वर्ष की शुरुआत से पहले ही सरकार ने यह आकलन किया है कि वित्त वर्ष 2023 का कम से कम एक लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है। वित्त वर्ष 2023 में 1.05 लाख करोड़ रुपये की खाद सब्सिडी पहले से ही अपर्याप्त दिख रही है क्योंकि यूरिया की दरों में लगातार तेजी देखी जा रही है और कच्चे तेल की कीमतों और गैस की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से कुछ प्रमुख कच्चे माल जैसे कि फॉस्फेट और अमोनिया की कीमतों में आगे दबाव दिख सकता है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘हमारी खाद सब्सिडी में तेजी आएगी।’ वित्त वर्ष 2023 में खाद सब्सिडी बजट अनुमान 2021-22 के संशोधित अनुमान से लगभग 25 फीसदी कम है।
फिलहाल पूल गैस की 16 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की दर से सब्सिडी की जरूरत का लक्ष्य भी 1.50 लाख करोड़ रुपये तक है और अब पूल्ड गैस दर संशोधित करके बढ़ा दी जाए तब सब्सिडी की और जरूरत हो सकती है।
बजट 2022 को तैयार करते वक्त, सरकारी अधिकारियों के बीच सोच यह रही कि आगे यूरिया की दरों में कुछ संतुलन हो सकता है जिसकी कीमत में नवंबर 2021 में वैश्विक बाजार में लगभग 40 फीसदी तक कमी आई थी जबकि डीएपी की बिक्री वैश्विक बाजार में 900 डॉलर प्रति टन हो रही है। कई बाजार खिलाडिय़ों का कहना है कि वित्त वर्ष 2023 में 1.05 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है लेकिन यह अपर्याप्त है और यह महज छह से सात महीने तक ही चल सकता है। तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की वैश्विक दरों में बढ़ोतरी का सीधा असर भारत के पूल्ड गैस दरों में पड़ा जो यूरिया के लिए एक बड़ा कच्चा माल है और इससे पूरी गणना में गड़बड़ी हो गई।
कारोबारी सूत्रों का कहना है कि भारत की पूल्ड गैस दर 18 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू तक हो सकती हैं। एक अनुमान के मुताबिक पूल्ड गैस दरों में एक डॉलर तक की बढ़ोतरी हुई और यूरिया के लिए सब्सिडी की जरूरत में 4,000-5,000 करोड़ रुपये तक की बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा यह बात चल रही थी कि भारत, डीएपी और एनपीके (जटिल खाद) के तीन साल के अनुबंध के लिए रूस के खाद विनिर्माताओं से मिलना चाहता था।
यूक्रेन करीब 10 फीसदी यूरिया की आपूर्ति करता है और अगर लंबे समय तक बंदरगाह बंद रहते हैं तब इस पर असर पड़ सकता है। हालांकि सरकार इस बात को लेकर आत्मविश्वास से भरी है कि खाद सब्सिडी के अलावा पूर्वी यूरोप के जारी संकट का प्रत्यक्ष असर नहीं पड़ेगा। एक अन्य अधिकारी ने बताया, ‘तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से खुदरा मुद्रास्फीति में थोड़ी तेजी आ सकती है। लेकिन आपको यह देखना होगा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में से तेल को बाहर रखा गया है। गैस पाइपलाइन की आपूर्ति अब भी जारी है।’ उन्होंने कहा कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार तेल के संकट को बर्दाश्त कर सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023 में औसतन 4.5 फीसदी खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान जताया है।
शुक्रवार को कच्चे तेल की कीमतों में कमी आई और यह 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गया क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर लगाए गए प्रतिबंध में से पेट्रोलियम को बाहर रखा। यूक्रेन पर रूस के हमले की वजह से एक दिन पहले आठ सालों में पहली बार कच्चे तेल की कीमतों ने 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर लिया था।
पश्चिमी देशों ने कई प्रतिबंध लगाए हैं जिनमें रूस के बैंकों को स्विफ्ट अंतरराष्ट्रीय भुगतान तंत्र से बाहर रखना शामिल है।
अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और कनाडा ने नए कदम उठाने की घोषणा की है जिसमें रूस के केंद्रीय बैंक के अंतरराष्ट्रीय भंडार पर प्रतिबंध शामिल है। इस कदम पर आने वाले दिनों में अमल किया जाएगा।