कोविड-19 महामारी की ताजा लहर से न केवल अस्पताल में बेड की कमी से पूरी चिकित्सा व्यवस्था का बुनियादी ढांचा चरमरा गया है बल्कि वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की क्षमता और आपूर्ति में भी बड़ी बाधाएं देखी जा रही हैं।
एक तरफ, वेंटिलेटर उद्योग की मुश्किल यह है कि कुछ अस्पतालों में उनका स्टॉक बेकार पड़ा है क्योंकि उन्हें चलाने के लिए प्रशिक्षित लोग नहीं हैं, वहीं कुछ अस्पतालों में कोविड के गंभीर मरीज हैं लेकिन वहां ऐसे उपकरणों की कमी है। दूसरी ओर देश में मेडिकल ऑक्सीजन विनिर्माण उद्योग के सामने तरल ऑक्सीजन उत्पादन की चुनौतियां भी हैं क्योंकि मरीजों की बढ़ती तादाद के लिहाज से ऑक्सीजन की जरूरत को पूरा करना मुश्किल हो रहा है।
नतीजतन देश में इन्वेसिव वेंटिलेटर निर्माताओं ने राज्य और केंद्र सरकारों से कहा है कि वे उन अस्पतालों के बेकार पड़े स्टॉक का पुनर्वितरण उन अस्पतालों में करें जहां इनकी ज्यादा जरूरत है और इन्हें संचालित करने के लिए ज्यादा प्रशिक्षित लोग मौजूद हैं। देश के प्रमुख वेंटिलेटर निर्माताओं में से एक स्कैनरे टेक्नोलॉजीज के संस्थापक वी अल्वा के अनुसार, वेंटिलेशन के साथ चुनौती उपकरणों की कमी की नहीं है बल्कि सबसे बड़ी कमी प्रशिक्षित आईसीयू विशेषज्ञों की है जिसे इंटेंसिविस्ट और श्वसन प्रक्रिया से जुड़े तकनीशियनों के रूप में जाना जाता है।
अल्वा ने कहा, ‘यहां उनकी बड़ी कमी है। हम पहले ही सरकार को 30,000 से अधिक इन्वेसिव वेंटिलेटर और प्राइवेट केंद्रों के लिए 5,000 से अधिक ऐसे वेंटिलेटर की आपूर्ति कर चुके हैं और आवश्यकतानुसार अधिक आपूर्ति कर सकते हैं। लेकिन देश में इस समय केवल 10,000 इंटेंसिविस्ट हैं जबकि 50,000 से अधिक इन्वेसिव वेंटिलेटर हैं, ऐसे में अंतर काफी व्यापक है। इसके अलावा वेंटिलेटर की आपूर्ति में भी एकरूपता नहीं है।’
ऐसे ही एक कंपनी, मैक्स वेंटिलेटर के पास रातोरात वेंटिलेटर की खूब मांग बढ़ गई जिसकी वजह से कंपनी को रोजाना 15-20 वेंटिलेटर बनाने के बजाय 35 वेंटिलेटर बनाने की कोशिश करनी पड़ रही है जिसे अब वह एक सप्ताह के भीतर ही पूरा करने की योजना बना रही है।
मैक्स वेंटिलेटर के प्रबंध निदेशक अशोक पटेल का कहना है, ‘बड़ी चुनौतियों में से एक कच्चे माल की खरीद भी है जिसके लिए हम करीब 350 वेंडरों से बातचीत कर रहे हैं ताकि कलपुर्जे की आपूर्ति हो सके और हम तेजी से वेंटिलेटर तैयार कर सकें। हम अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों की मदद कर रहे हैं ताकि आईसीयू बेड और वेंटिलेटर के 1:10 अनुपात में सुधार लाया जा सके। यह देखते हुए कि इस तरह के वेंटिलेटरों के लिए प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होती है। ऐसे में कई जगहों पर नॉन इन्वेसिव मोड वाले वेंटिलेटरों के जरिये मरीजों का इलाज करने की सलाह दी जा रही है जिसमें थोड़े कम प्रशिक्षित लोगों के जरिये भी काम बन सकता है।’
इसी तरह मेडिकल ऑक्सीजन और कंप्रेसर निर्माताओं ने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए क्षमता बढ़ाने में मदद के साथ-साथ तरल ऑक्सीजन का इंतजाम करने के लिए सरकार से मदद मांगी है। मरीजों के लिए ऑक्सीजन संकट के चलते महाराष्ट्र कोविड-19 कार्यबल ने अस्पतालों को सलाह दी है कि वे हाई फ्लो नैसल ऑक्सीजन (एचएफ सीओ) कैनुला का इस्तेमाल बंद कर दें क्योंकि इसमें काफी ऑक्सीजन खर्च होती है। कार्यबल का नेतृत्व कर रहे संजय ओक ने कहा, ‘सांस से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे मरीजों के लिए नॉन इन्वेसिव वेंटिलेशन का इस्तेमाल किया जा सकता है। हाई फ्लो ऑक्सीजन या एचएफएनओ मशीनें कई बार लगभग 80 लीटर प्रति मिनट का भी इस्तेमाल करती हैं। राज्य में रोजाना मोटे तौर पर 1,250 टन ऑक्सीजन का उत्पादन होता है। अब लगभग पूरी मात्रा का इस्तेमामल हो जा रहा है।’
अकेले मुंबई में ही कोविड-19 अस्पतालों में करीब 235 टन ऑक्सीजन की खपत हो रही है। शहर में अब लगभग 150 कोविड अस्पताल और नर्र्सिंग होम हैं। कोविड-19 मरीजों को होमकेयर की सुविधा देने वाले अस्पताल के एक प्रबंधक का कहना है, ‘होमकेयर में भी मरीज ऑक्सीजन का इस्तेमाल कर रहे थे। अब हमें सलाह दी गई है कि हम घर में देखभाल करते वक्त ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर का इस्तेमाल करें और घर पर ऑक्सीजन सिलिंडर आवंटित न करें बल्कि इनका इस्तेमाल अस्पताल में करें। इसका मतलब यह है कि होमकेयर मरीजों को अतिरिक्त लागत का वहन करनी होगी।’
हैदराबाद के यशोदा हॉस्पिटल्स को कई और चुनौतियों के सामने आने की आशंका है। इसकी वजह यह है कि कुछ हफ्तों से इसके सभी आईसीयू वेंटिलेटर का इस्तेमाल हो रहा है और ऑक्सीजन की कमी झेल रहे मरीजों के लिए पोर्टेबल बीआईपीएपी और दो फ्लो मीटर के साथ हाई फ्लो ऑक्सीजन डिलिवरी करके सभी संभव तौर-तरीकों पर काम करने की कोशिश की गई है।
हैदराबाद के यशोदा हॉस्पिटल्स के क्रिटिकल केयर मेडिसन विभाग के क्लीनिकल निदेशक डॉ वेंकट रमण कोला के मुताबिक अब तक अस्पताल के सभी परिसरों में ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति रही है लेकिन पिछले दो हफ्तों में ऐसे मरीज अचानक बढ़े हैं जिन्हें ऑक्सीजन की ज्यादा जरूरत है। ऐसे में समूह को अपने ऑक्सीजन संयंत्रों में तरल ऑक्सीजन आपूर्ति की कमी की आशंका सता रही है।
डॉक्टर कोला कहते हैं, ‘एक समूह के रूप में, हम चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं। इसके लिए हम ज्यादा ऑक्सीजन की खपत करने वाले एचएफ एनसी जैसे उपकरणों में कटौती कर रहे हैं जो मोटे तौर पर वेंटिलेटर की तुलना में 5 से 10 गुना ऑक्सीजन का इस्तेमाल करता है। ऑक्सीजन के इस्तेमाल में अब थोड़ी सतर्कता बरतते हुए प्राथमिकता के आधार पर इसका वितरण करना होगा। हम ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर खरीदने की कोशिश कर रहे हैं जो प्रति मिनट 5 लीटर से 8 लीटर ऑक्सीजन दे सकता हैं जिसका इस्तेमाल उन मरीजों पर किया जा सकता है जो आईसीयू में नहीं हैं। हम आईसीयू और आपातकालीन विभाग के इस्तेमाल के लिए सभी उपलब्ध ऑक्सीजन को देने की योजना बना रहे हैं। हमें मौजूदा रोगियों के लिए वेंटिलेटर की कमी की समस्या से बचने के लिए मरीजों की भर्ती भी सीमित करनी पड़ सकती है। हैदराबाद में यशोदा हॉस्पिटल समूह महामारी की स्थिति के दौरान सभी मरीजों की सेवा करने के लिए सभी प्रतिकूल परिस्थितियों में संभावित विकल्पों के साथ तैयार है।’
महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने गुरुवार को कहा कि राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों के लिए प्राथमिकता के आधार पर ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र स्थापित करना अनिवार्य कर दिया है। करीब 10 बेड वाले छोटे अस्पतालों में ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर खरीदने का आग्रह किया जाएगा। टोपे ने अस्पतालों से ऑक्सीजन के इस्तेमाल में किसी भी तरह के लीकेज को रोकने के लिए हरसंभव उपाय करने को भी कहा है।
जसलोक हॉस्पिटल ऐंड रिसर्च सेंटर में मेडिकल अनुसंधान के निदेशक डॉ राजेश पारिख ने बताया कि अभी तक अस्पताल आत्मनिर्भर था लेकिन इस बात की चिंता भी बनी हुई थी कि भविष्य में यह संकट इसके मरीजों को प्रभावित कर सकता है।
पिछले साल महामारी की पहली लहर के दौरान गुजरात में 240 टन की मेडिकल ऑक्सीजन की खपत हुई थी जो खपत अप्रैल 2021 बढ़कर 470 टन हो गई है।
मौजूदा वक्त में कोविड मामलों में लगातार तेजी देखी जा रही है। ऐसे में गुजरात में मेडिकल ऑक्सीजन की खपत बेतहाशा बढ़ी है और मार्च के पहले सप्ताह के 50 टन से बढ़कर मार्च के अंतिम सप्ताह में 100 टन, जबकि अप्रैल के पहले हफ्ते में 200 टन से बढ़कर मध्य अप्रैल में 470 टन हो गई है। सरकारी अस्पतालों में करीब 220 टन मेडिकल ऑक्सीजन की खपत होने की उम्मीद थी, वहीं निजी अस्पतालों और मेडिकल केंद्रों में 250 टन खपत की आशंका दिखी।
इस बीच, मेडिकल ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ताओं में से एक एम्स इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक श्वेतांशु पटेल के मुताबिक, राज्य खाद्य एवं औषधि नियंत्रण प्रशासन (एफ डीसीए) और पुलिस अधिकारी बढ़ते संकट के बीच तरल ऑक्सीजन सुनिश्चित करने में सहायता कर रहे हैं जिससे और अधिक दबाव बढ़ सकता है।
पटेल ने कहा, ‘इस समय मेडिकल ऑक्सीजन बुनियादी ढांचे में अड़चन है और सिलिंडरों की नई क्षमता ऑक्सीजन के जरूरतमंद मरीजों की बढ़ती संख्या को सेवाएं देने में असमर्थ हैं। आगे तरल ऑक्सीजन की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है।’