विशेषज्ञों का कहना है कि अक्षय ऊर्जा पर जोर दिए जाने के बावजूद भारत के ऊर्जा क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन की भूमिका महत्त्वपूर्ण बनी रहेगी। बिज़नेस स्टैंडर्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर समिट 2025 में गुरुवार को विशेषज्ञों ने कहा कि भारत के ऊर्जा परिवर्तन की राह में अक्षय ऊर्जा के एकीकरण में चुनौतियां, विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता तथा भंडारण और पारेषण संबंधी बुनियादी ढांचे में कमी जैसी अहम बाधाएं बनी हुई हैं।
पूर्व बिजली सचिव आलोक कुमार ने कहा कि निकट भविष्य में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल खत्म नहीं किया जा सकता। हालांकि उनकी हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम होगी। उन्होंने कहा, ‘अक्षय ऊर्जा में कई चुनौतिया हैं। इनमें पूंजीगत वस्तुओं का आयात और एकीकरण संबंधी जटिलताएं प्रमुख हैं। हमें जीवाश्म ईंधन के उत्पादन को भी हरित बनाने पर ध्यान देना होगा। रिफाइनरियां हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल कर सकती हैं, खदानों के उपकरणों का विद्युतीकरण हो सकता है। साथ ही, अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल जेनरेशन और कोल गैसीफिकेशन की तकनीकों पर भी निवेश बढ़ाने की जरूरत है।’
विश्व बैंक में वरिष्ठ ऊर्जा विशेषज्ञ मणि खुराना ने कहा कि भारत ने अक्षय ऊर्जा उत्पादन पर बहुत ज्यादा जोर दिया है, लेकिन पारेषण की उपेक्षा की है। उन्होंने कहा, ‘अक्षय ऊर्जा के एकीकरण के लिए भंडारण संयंत्र और बैटरियों की जरूरत है, लेकिन पारेषण सुस्त है। अगर हम यह ऊर्जा ग्राहकों तक पहुंचाना चाहते हैं तो पारेषण और भंडारण में निवेश महत्त्वपूर्ण है।
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के मसले पर स्टेटिक के सीईओ अक्षित बंसल ने तेजी से बढ़ते ईवी इकोसिस्टम का जिक्र किया, जिसमें चार्जिंग स्टेशनों की बढ़ती संख्या, बैटरी की कीमतों में कमी और उपभोक्ताओं द्वारा इसकी बढ़ती स्वीकार्यता शामिल है। उन्होंने कहा, ‘सवाल जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल घटने का नहीं है, बल्कि यह है कि हम कितनी तेजी से बुनियादी ढांचा और इकोसिस्टम बना सकते हैं, जिससे ऊर्जा में स्वतंत्रता और विद्युतीकरण सुनिश्चित हो सके।’
साइरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर रामानुज कुमार ने नीति और धन संबंधी चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत को ऊर्जा बदलाव के क्षेत्र में विदेशी तकनीक पर निर्भरता घटाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘ऊर्जा बदलाव के लिए हमें नैशनल टेक्नॉलजी मिशन की जरूरत है। देश के प्रमुख आईआईटी के बीच सरकार की पहल पर गठजोड़ की जरूरत है।’