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टिकट के दांवपेच में उलझी भाजपा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 6:27 AM IST

अर्थशास्त्री और चुनाव विशेषज्ञ अशोक लाहिड़ी का वास्तविक राजनीति से पाला तब पड़ा जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अलीपुरद्वारा से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद भी उनकी सीट वहां से काट दी गई। लाहिड़ी को बालूरघाट से चुनाव लडऩे का आग्रह किया गया। भाजपा के अलीपुरद्वार के जिला सचिव सुमन कांजीलाल ने लाहिड़ी के खिलाफ  विरोध प्रदर्शन करते हुए उनके नामांकन को चुनौती दी थी।
लाहिड़ी की उम्मीदवारी को लेकर बनी मतभेद की स्थिति कोई अपवाद नहीं थी। भाजपा को कई जगहों पर अपने उम्मीदवारों की पसंद को लेकर कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और स्थानीय पार्टी प्रतिनिधियों के बजाय बड़ी तादाद में तृणमूल कांग्रेस और वाममोर्चे से दल बदल कर भाजपा में शामिल होने वालों को टिकट देकर ‘पुरस्कृत’ करने के नेतृत्व के फैसले पर भी संदेह किया गया। कोलकाता के एक राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, ‘यह पुरानी और नई भाजपा के बीच हो रहा संघर्ष है। नई भाजपा में दलबदलू लोग शामिल हैं जबकि पुरानी पार्टी उन दिग्गजों से बनी है जो दशकों से पार्टी से जुड़े हुए हैं जब पश्चिम बंगाल में भाजपा का अस्तित्व भी नहीं था।’ हालांकि इस टिप्पणी को भाजपा के एक अंदरूनी सूत्र ने खारिज करते हुए अपनी दलील दी, ‘पुरानी भाजपा जैसा कुछ भी नहीं है। राज्य में हमारी छिट-पुट उपस्थिति रही है। यह दावा करना एक मिथक है कि हम हमेशा से पश्चिम बंगाल में एक ताकत के रूप में मौजूद थे। हमें अपनी पार्टी को मजबूत करने की भरपाई के तहत इन तथाकथित बाहरी लोगों की जरूरत है।’लाहिड़ी का प्रकरण जहां भाजपा की चुनावी रणनीति का हिस्सा है, वहीं कई अन्य गंभीर घटनाओं की वजह से पार्टी का सुदूर संपर्क बिगड़ता नजर आया। भाजपा ने चौरंगी और काशीपुर-बेलगछिया से क्रमश: दो ‘प्रत्याशियों’ शिखा मित्रा और तरुण साहा के नाम वापस लेने की घोषणा की। मित्रा कांग्रेस के दिवंगत नेता सोमेन मित्रा की पत्नी हैं जबकि साहा दरअसल माला साहा के पति हैं जो काशीपुर-बेलगछिया से तृणमूल के मौजूदा विधायक हैं। दोनों ने भाजपा में शामिल होने या उनके नाम की घोषणा होने से पहले भाजपा के नेताओं से संपर्क होने से इनकार कर दिया था।
राजनीतिक खिचड़ी तब पकने लगी जब मित्रा ने नंदीग्राम से भाजपा के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी और तृणमूल के पूर्व दिग्गज नेता के साथ बैठक की। उसी वक्त यह अटकलें लगाई गईं कि वह चुनाव लडऩे के लिए ‘उत्सुक’ हैं। दरअसल अधिकारी के गहरे ताल्लुकात मित्रा परिवार के साथ हैं। भाजपा के एक सूत्र ने कहा, ‘मुमकिन है कि वह कांग्रेस के दबाव में आ गई हों।’ माला साहा ने 2011 और 2016 में काशीपुर-बेलगछिया से जीत हासिल की थी लेकिन तृणमूल ने उन्हें इस बार टिकट देने से मना कर दिया और कोलकाता के डिप्टी मेयर अतिन घोष को वहां से मैदान में उतारा। भाजपा के सूत्र कहते हैं, ‘शायद भाजपा ने इस प्रकरण के बाद उनसे संपर्क किया हो। यह भी हो सकता है कि उन्होंने खुद के बजाय अपने पति के नाम का प्रस्ताव रखा हो और फिर वह पीछे हट गई हों।’
उत्तरी दिनाजपुर में कारोबारी और भाजपा के जिला ओबीसी विंग के प्रमुख रहे एक स्थानीय नेता मदन विश्वास ने आरोप लगाया कि रायगंज के सांसद और केंद्रीय मंत्री देबश्री चौधरी ने भव्य स्तर पर पूजा आयोजित करने सहित कई सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों पर पैसे खर्च करने के एवज में टिकट का वादा करने के बाद उनके खिलाफ  काम किया। यह टिकट तृणमूल से भाजपा में शामिल हुई कृष्णा कल्याणी को गया। भाजपा का स्पष्टीकरण यह था कि विश्वास ने किसी अन्य कारोबारी की तरह ही अपनी ‘स्वेच्छा’ से पैसा खर्च किया है और उन्हें कभी टिकट देने का वादा नहीं किया गया। चौधरी के हवाले से कहा गया है कि भाजपा ने उत्तर दिनाजपुर में विश्वास के पोस्टर लगाने पर आपत्ति जताई थी और वह कभी टिकट की रेस में ही नहीं थे।  जब तृणमूल के बागी रंजन वैद्य को सोनारपुर (दक्षिण 24 परगना) से चुनाव मैदान में उतारा गया तब विरोध प्रदर्शन भाजपा के कोलकाता मुख्यालय तक पहुंच गया जहां यह आरोप लगाते हुए पोस्टर नजर आ लगे कि बिस्वास ने जिला परिषद सदस्य के रूप में धन का दुरुपयोग किया। भाजपा नेतृत्व पर कोई असर नहीं हुआ। पश्चिम बंगाल के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने जोर देकर कहा, ‘हमारी एक अनुशासित पार्टी है। प्रदर्शनकारियों को हमारा संदेश है कि अगर आप हमारे साथ रहना चाहते हैं तो अनुशासित होकर रहें अन्यथा आप पद छोडऩे के लिए स्वतंत्र हैं।’ अलीपुरद्वार को छोड़ दें तो कथित तौर पर भाजपा पर अब तक कोई क्षेत्रीय स्तर पर दबाव नहीं आया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने काडर को संदेश देते हुए कहा, ‘राष्ट्र प्रथम, पार्टी को दूसरे स्थान पर और स्वयं को आखिरी स्थान पर रखें।’
नामांकन पर चल रहे विवाद पर राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘यहां 294 सीटें हैं लेकिन टीवी पांच या छह क्षेत्रों पर 24 घंटे अपनी नजर गड़ाए हुए है और यहां 25 या 30 लोगों की भीड़ को ही दिखा रहा है जो नारे लगा रहे हैं और चीख रहे हैं जैसे सब कुछ खत्म हो गया है। एक पार्टी जिसके बारे में माना जा रहा है कि इसकी जीत होगी, उसे यह सब देखना पड़ा रहा है। अगर कोई पार्टी संभावित विजेता नहीं होती तो इस मोर्चे पर आपको सभी चीजें शांत ही दिखतीं। करीब 95 फीसदी लोग चुनाव चाहते हैं जबकि 5 फीसदी लोग शोर मचाने वाले हैं।’
हालांकि एक सूत्र ने माना कि सह प्रभारियों, विजयवर्गीय, अरविंद मेनन और शिव प्रकाश को हालात को दबाने से पहले असंतुष्टों के साथ आपस में बातचीत करनी पड़ी और लंबी बैठकें भी करनी पड़ीं। सूत्र ने बताया, ‘मशहूर हस्तियों, फि ल्मी सितारों और खिलाडिय़ों के नामांकन के खिलाफ  काडर का प्रतिरोध जारी था क्योंकि उन्हें अनुकूल परिस्थितियों के ही मित्र के रूप में देखा जाता है। हमने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि हमें भाजपा के प्रोफ ाइल को बढ़ाने और इसे सामाजिक रूप से स्वीकार्य बनाने के लिए उनकी जरूरत है।’
उत्तर बंगाल की देख-रेख कर रहे प्रदेश संयुक्त महासचिव (संगठन) किशोर बर्मन ने दावा किया, ‘हमारे कार्यकर्ता अब कमल (भाजपा का चुनाव चिह्न), पार्टी का झंडा और (नरेंद्र) मोदी को देख रहे हैं। उम्मीदवार अब गौण हो गए हैं।’ हालांकि, एक राजनीतिक विश्लेषक ने बताया कि कुछ उम्मीदवारों के खिलाफ  मच रहे शोर को ‘नजरअंदाज’ नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘भाजपा के चाणक्यों ने इसका बेहतर प्रबंधन नहीं किया। यह समझने पर भी कोई मेहनत नहीं की गई कि किसी उम्मीदवार का नाम मतदाता सूची में शामिल था या नहीं। राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत व्यक्ति अचानक भाजपा में शामिल होने और चुनाव लडऩे के योग्य कैसे हो गया? (तृणमूल ने नियमों का हवाला देते हुए मुद्दा उठाया इसके बाद स्वप्न दासगुप्ता ने तारकेश्वर से चुनाव लडऩे के लिए राज्यसभा से इस्तीफ दे दिया था) क्या शिखा मित्रा ने उम्मीदवार बनने की सहमति दी थी?’

First Published : March 31, 2021 | 11:51 PM IST