दिल्ली के विधान सभा चुनाव में एकतरफा जीत से लगभग एक महीने पहले जनवरी 2015 में आम आदमी पार्टी (आप) संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की अपील ने विदेशों में बसे भारतीयों से उसे मिलने वाले समर्थन पर असर डाला है। वर्ष 2012 के नवंबर महीने में आप का गठन हुआ था। उस समय तक केजरीवाल और उनके सहयोगियों के लिए अप्रवासियों खासकर भारतीय-अमेरिकी नागरिकों से चुनाव प्रचार और वित्तीय दृष्टि से मिलने वाला सहयोग बहुत ही महत्त्वपूर्ण था।
तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा 2014 की शुरुआत में कराई गई एक जांच में पाया गया था कि सार्वजनिक चंदे के तौर पर आप को प्राप्त होने वाली धनराशि का पांचवां हिस्सा अप्रवासी भारतीयों (एनआरआई) से मिला है।
मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो एनआरआई विशेषकर गुजरात मूल के अप्रवासियों में उनकी अच्छी खासी पकड़ थी। विदेश में रहने वाले लगभग 54 लाख भारतीयों में हर चौथा आदमी गुजरात से है और वित्तीय रूप से भी यह काफी समृद्ध माना जाता है।
जिस दौरान अमेरिका ने मोदी पर वीजा प्रतिबंध लगा रखा था तो वहां रहने वाले गुजराती समुदाय को वह गुजरात कॉन्फ्रेंस और गुजरात दिवस जैसे आयोजनों पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया करते थे।
उनके गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान राज्य सरकार ने वार्षिक स्तर पर वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन शुरू किया था। इसमें विदेश में रहने वाले गुजराती समुदाय के उद्यमियों समेत दुनिया भर के निवेशकों को बुलाया जाता था। वर्ष 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ भारतीय जनता पार्टी की शाखा के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी के चुनाव प्रचार में बहुत अधिक मदद की और अमेरिका में गुजराती के अलावा अन्य भाषा बोलने वाले भारतीय लोगों से भी संपर्क साधा और उन्हें भाजपा के करीब लाए।
प्रधानमंत्री के रूप में सितंबर 2014 में पहली अमेरिकी यात्रा, जब मोदी ने न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर्स गार्डन (एमएसजी) में 20,000 भारतीय-अमेरिकी समुदाय को संबोधित किया था, से लेकर जून 2023 में अपनी 8वीं यात्रा तक वह आधा दर्जन से अधिक बार अमेरिका में रहने वाले भारतीय समुदाय के कार्यक्रमों में हिस्सा ले चुके हैं। इनमें ह्यूस्टन में 2019 में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ जैसा कार्यक्रम भी शामिल है, जिसमें तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने भी शिरकत की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में लगातार तीसरा कार्यकाल शुरू करने के बाद पहली बार अमेरिका जा रहे हैं। वहां लोंग आइलैंड के नासाउ वेटरन मेमोरियल कॉलेजियम में रविवार को वह एमएसजी कार्यक्रम की 10वीं बरसी मनाने के लिए आयोजित होने वाले ‘मोदी ऐंड अमेरिका : प्रोग्रेस टूगेदर’ कार्यक्रम में भारतीय-अमेरिकी समुदाय को संबोधित करेंगे। बीते गुरुवार को विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने भारतीय-अमेरिकी समुदाय को भारत और अमेरिका के बीच पुल बताया था।
‘मोदी ऐंड अमेरिका : प्रोग्रेस टूगेदर’ के आयोजक इंडो-अमेरिकन कम्युनिटी ऑफ यूएसए ने बताया है कि इस कार्यक्रम के लिए 24,000 लोगों ने पंजीकरण कराया है, जबकि इस जगह पर बैठने की क्षमता केवल 15,000 ही है।
इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेरिका के दौरे पर गए थे। वहां उन्होंने पत्रकारों के साथ-साथ कई विश्वविद्यालयों के छात्रों से भी बातचीत की थी। कांग्रेस और राहुल गांधी ने अपनी विदेशी शाखा इंडियन ओवरसीज कांग्रेस को भारतीय-अमेरिकी समुदाय को साधने के लिए सक्रिय करने में बहुत देर कर दी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न धर्मों को मानने और अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोगों के साथ उसका संपर्क अभियान काफी कारगर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी की अमेरिका की यात्राएं ऐसे समय हो रही हैं, जब वहां राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं और मतदान में दो माह से भी कम वक्त बचा है।
दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी का समर्थन आधार 2013-14 के मुकाबले भले कुछ कम हुआ हो, लेकिन इस पार्टी ने 2022 में आयोजित पंजाब विधान सभा चुनाव के दौरान अमेरिका, इंगलैंड और कनाडा जैसे देशों में बसे पंजाबी समुदाय को सफलतापूर्वक अपने साथ साथ जोड़ा। इन देशों में रहने वाले पंजाबी समुदाय ने 2020-21 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक समय तक चले किसान आंदोलन के समर्थन में भी रैलियां निकाली थीं।
विदेश मंत्रालय के अनुसार अमेरिका में लगभग 54 लाख भारतीय रहते हैं। इनमें 20.7 लाख एनआरआई हैं, जबकि 33.3 लाख भारतीय मूल के लोग हैं। इसके उलट 36 लाख एनआरआई यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) और 95 लाख भारतीय पश्चिमी एशिया में रहते हैं। विदेश से भारत पैसा भेजने में इनकी हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। लेकिन, इस वर्ष जून में गैर लाभकारी संगठन इंडायसपोरा ने बोस्टन कंसल्टिंग समूह के साथ मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की थी।
इसके अनुसार अमेरिका में रहने वाले भारतीय अन्य जगहों पर रहने वालों की अपेक्षा अधिक धनवान, उच्च शिक्षित हैं। यही नहीं, अमेरिका की कुल आबादी का 1.5 प्रतिशत होने के बावजूद अमेरिका की अर्थव्यवस्था से लेकर सांस्कृतिक क्षेत्र में इनका बहुत अधिक प्रभाव देखने को मिलता है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के कुल होटलों में 60 प्रतिशत के मालिक भारतीय-अमेरिकी नागरिक हैं। लगभग 35 से 50 प्रतिशत जनरल स्टोर भी भारतीयों द्वारा संचालित होते हैं, जो प्रति वर्ष 350 से 490 अरब डॉलर राजस्व देते हैं। कर राजस्व में भारतीय अमेरिकियों का योगदान भी वार्षिक स्तर पर लगभग 5 से 6 प्रतिशत है।
अमेरिका पढ़ने जाने वाले विदेशी छात्रों में लगभग 25 प्रतिशत भारतीय मूल के होते हैं। खास यह कि हर 10 में से 1 फिजिशियन भारतीय है। इतने व्यापक और मजबूत आर्थिक-सांस्कृतिक आधार वाला वर्ग का न केवल अमेरिका बल्कि भारत के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को भी प्रभावित करता है।
उदाहरण के लिए अमेरिका से फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट (एफसीआरए) के अंतर्गत भारत आने वाले दान की राशि में काफी इजाफा हुआ है। वर्ष 2015-16 में यह धनराशि 78.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर थी, जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 83.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गई।
कुल एफसीआरए दान राशि में अमेरिकी दान की हिस्सेदारी पूरी दुनिया में सबसे अधिक 35 प्रतिशत है। भारतीय अमेरिकी लोगों का नवोन्मेष और वैज्ञानिक अनुसंधान समेत विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
इस सदी में अमेरिकी कंपनियों ने 63 अरब डॉलर का निवेश भारत में किया है। इसके उलट भारतीय कंपनियों ने भी 40 अरब डॉलर का निवेश अमेरिका में किया। हाल के दशकों में भारतीय मूल के लोग अमेरिका की राजनीति में बहुत ही प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। इनमें उपराष्ट्रपति और मौजूदा चुनाव में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस, निक्की हेली, प्रमिला जयपाल और विवेक रामास्वामी के नाम उल्लेखनीय हैं।
चूंकि यह समुदाय अमेरिकी समाज, कारोबार और राजनीति में अपनी छाप छोड़ने के साथ भारतीय मूल्यों, पारिवारिक जड़ों और परंपराओं से भी गहरे जुड़ा हुआ है, ऐसे में भारतीय राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर इनका प्रभाव पड़ना लाजिमी है।