पटना से 25 किलोमीटर दूर इटकी के काथाटोली गांव का सुमन कुमार अब जिंदगी अपनी शर्तों पर जी रहा है। आज उसके पास आम जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त धन और साधन हैं।
बिहार की सहकारी दुग्ध योजना सुधा डेयरी ने उसकी किस्मत को बदल दी है। एक समय था, जब वह इलाके के दूध माफिया के को दूध बेचने को मजबूर था, लेकिन आज वह सारा दूध सुधा डेयरी को देता है और उसे उसकी सही कीमत मिलती है। सुधा डेयरी की स्थापना 1983 को को-ऑपरेटिव सोसाइटी के तहत की गई थी। सुधा डेयरी दूध और इसके उत्पादों से करोड़ों का व्यापार करती है।
बिहार में सुधा डेयरी ने सफलता की जो कहानी लिखी है, वह अन्य क्षेत्रों के लिए प्रेरणा भी है और मिसाल भी। इस डेयरी के बिहार और आसपास के राज्यों के 84 शहरों में 6,000 से ज्यादा आउटलेट हैं। सुधा डेयरी में प्रतिदिन 6 लाख लीटर दूध का संग्रहण होता है। लगभग 5 लाख से ज्यादा दूधवाले सुधा डेयरी से जुड़े हुए हैं। इसकी सफलता ने ऐसे प्रतिमान गढ़े हैं कि अब निजी क्षेत्र के बैंकों ने भी इन ग्वालों को जरूरत पड़ने पर ऋण मुहैया कराने की पेशकश की है। सुधा डेयरी ने श्वेत क्रांति की जो कहानी बिहार में लिखी है, उससे आज हजारों किसान और ग्वाले लाभान्वित हो रहे हैं।
सुधा डेयरी के प्रबंध निदेशक सुधीर कुमार सिंह ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि सुधा डेयरी दो नए प्लांट खोलने जा रही है। इनमें 26 एकड़ में फैला बिहारशरीफ प्लांट प्रमुख है। उन्होंने बताया कि बिहार में छह दुग्ध यूनियन हैं, जो पटना, सिमुल (मुजफ्फरपुर), समस्तीपुर, भोजपुर, बरौनी और भोजपुर में स्थित हैं। उन्होंने कहा कि सुधा डेयरी से 5 लाख से ज्यादा दुग्ध उत्पादकों को फायदा हो रहा है। डेयरी संगठन ने मवेशियों के स्वास्थ्य बीमा की भी व्यवस्था की है। इस संगठन से जुड़े किसानों को टीकाकरण की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है।
उन्होंने कहा कि यूनिसेफ की मदद से सुधा डेयरी ने गांवों में कम कीमत वाले शौचालय बनाने की योजना भी चला रही है। उन्होंने कहा कि हालांकि राज्य में राज डेयरी और अमूल डेयरी का भी छोटा-मोटा बाजार है, लेकिन अगर डेयरी उद्योग की बात की जाए तो सुधा डेयरी ही लोग जानते हैं। पशु चिकित्सक संजय कुमार झा ने क हते हैं कि निश्चित तौर पर सुधा डेयरी ने बिहार में श्वेत क्रांति की दिशा बदल दी है। बिहार में कृषि और पशुपालन एक प्रमुख व्यवसाय है, लेकिन सटीक रणनीति के अभाव में यहां दुग्ध उत्पादन की स्थिति अच्छी नहीं है।
इस दिशा में सुधा डेयरी एक उम्मीद की रोशनी बनकर आई है। को-ऑपरेटिव सोसाइटी के अंतर्गत काफी कम लाभ लेकर लोगों को सेवाएं उपलब्ध करवाकर सुधा डेयरी ने व्यापार और प्रबंधन का एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। उन्होंने कहा कि ऐसे किसान, जो को-ऑपरेटिव दुग्ध सोसाइटी के सदस्य हैं, वे ही निजी बैंकों द्वारा दिए जा रहे ऋण और अन्य पैकेजों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह से सुधा ने किसानों और ग्वालों को एक बेहतर जिंदगी जीने का रास्ता दिखाया है।