लेख

महिला सुरक्षा अधिकारों की पोल खोलता पहलवानों का यौन उत्पीड़न को लेकर विरोध

Published by
कनिका दत्ता
Last Updated- May 11, 2023 | 10:11 PM IST

कार्यस्थलों पर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए विधान को अस्तित्व में आए 10 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है। तब बलात्कार की परिभाषा व्यापक बनाने के लिए आपराधिक विधानों में भी पहली बार संशोधन किए गए थे और दंड से जुड़े प्रावधान सख्त बना दिए गए थे। हालांकि, इन सख्त प्रावधानों के बावजूद नई दिल्ली के जंतर मंतर पर महिला कुश्ती खिलाड़ियों के पिछले कई दिनों से चल रहे धरना-प्रदर्शन को भारत सहित पूरी दुनिया मूक दर्शक बनकर देख रही है। ये खिलाड़ी भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख के हाथों कथित रूप से यौन उत्पीड़न की शिकार बनी खिलाड़ियों के लिए न्याय की मांग कर रही हैं।

इनके विरोध प्रदर्शन पर सरकार की प्रतिक्रिया अब तक निराश करने वाली रही है। केंद्र में सत्ताधारी दल स्वयं को कन्या एवं महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकार को बढ़ावा देने का प्रणेता होने का दावा करती रही है। इसी पार्टी की गोवा में सरकार ने तहलका पत्रिका के संस्थापक तरुण तेजपाल के खिलाफ 10 वर्ष पूर्व यौन उत्पीड़न का एक मामला भी दर्ज किया था। जिस महिला ने यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी वह तेजपाल की सहकर्मी थी।

मगर इस मामले में संदिग्ध उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी दल के एक नेता के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है। करीब चार महीने पहले उनके खिलाफ सार्वजनिक तौर पर शिकायत दर्ज कराई गई थी मगर वह अभी भी राज्य के कैसरगंज संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं। वह स्वयं को निर्दोष बताते हैं और अगर कोई उनसे इस बारे में प्रश्न करता है तो वह शिकायतकर्ता की मंशा पर ही सवाल उठाते हैं।

Also Read: शिक्षा में सेंसरशिप के खतरे : सोवियत संघ और पूर्वी जर्मनी से सबक

महिला खिलाड़ियों ने अपने संघ के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं उनमें सत्यता हो भी सकती है और नहीं भी। मगर उनमें इतनी नैतिकता तो होनी चाहिए कि अपने खिलाफ लगे आरोपों की जांच पूरी होने तक वह स्वयं ही संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दें। आखिरकार, संसद का सदस्य होना एक गरिमा और लोगों के विश्वास का विषय है। सिंह भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से भी इस्तीफा देने को तैयार नहीं थे मगर जब खेल मंत्री ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा तो उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा।

इस बीच, सरकार द्वारा नियुक्त निगरानी समिति की रिपोर्ट पिछले महीने सौंपी दी गई। इस समिति के ज्यादातर सदस्यों में खेल की दुनिया के लोग शामिल हैं और ओलिंपिक में पदक विजेता मैरी कॉम इसकी अध्यक्षता कर रही हैं। इस समिति ने सिंह को दोषी पाया है या नहीं इस बारे में आधिकारिक रूप में कुछ नहीं कहा गया है।

मगर अफसोस की बात है कि सरकार ने इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया है और वह सार्वजनिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया देने से बच रही है। पुलिस की छवि ऐसी बन गई है कि शायद ही कोई यह मानता है कि वह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने को लेकर गंभीर रहती है।

इन खिलाड़ियों की याचिका पर उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद अंततः पुलिस को हरकत में आना पड़ा। सिंह के खिलाफ अब तक दो प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। इनमें एक प्राथमिकी यौन उत्पीड़न से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम के तहत दर्ज कराई गई है और दूसरी प्राथमिकी दूसरे लोगों द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायतों के बाद दर्ज कराई गई है।

भारत स्वयं को एक उभरती शक्ति के रूप में पेश कर रहा है और इस वर्ष दुनिया की 20 सर्वाधिक प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाओं की अध्यक्षता कर रहा है, ऐसे समय में जंतर मंतर पर जो कुछ हो रहा है वह इसकी छवि के लिए ठीक नहीं है।

Also Read: महंगाई का 500 लिस्टेड कंपनियों के मुनाफे पर असर

इससे कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में सरकार जाने-अनजाने में गलत संदेश भेज रही है। सत्ताधारी पार्टी के नेता दुनिया में सफल महिला एथलीट की बढ़ती संख्या पर उत्साह दिखा रही है मगर आश्चर्य की बात है कि जितने खेल महासंघ हैं उनमें केवल आधे में ही यौन उत्पीड़न के लिए आंतरिक शिकायत समिति का प्रावधान है।

कानूनन 10 से अधिक कर्मचारियों वाले किसी संगठन में एक आंतरिक शिकायत समिति गठित किया जाना अनिवार्य है। दुख की बात है कि खेल मंत्रालय ने यह प्रावधान लागू कराने पर सक्रियता नहीं दिखाई है और सभी खेल संघों को ऐसी समिति के गठन का निर्देश नहीं दिया है।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून तो सख्त होते जा रहे हैं लेकिन इन कानूनों को लागू करने के लिए होने वाले प्रयास बिल्कुल विपरीत दिशा में जा रहे हैं। उदाहरण के लिए 2018 में कई आपराधिक कानूनों में बलात्कार के लिए दंड का प्रावधान बढ़ा दिया गया है और बलात्कारियों के लिए न्यायालय से जमानत लेना भी अब मुश्किल हो गया है।

उसी साल कंपनी मामलों के मंत्रालय ने कंपनियों के लिए निदेशक मंडल की रिपोर्ट में वह स्वीकरण शामिल करना अनिवार्य कर दिया गया है कि उन्होंने यौन उत्पीड़न रोकथाम से संबंधित कानून का अनुपालन किया है। अगर कोई कंपनी इन शर्तों का पालन नहीं करती है उनके खिलाफ भारी-भरकम जुर्माना लगाया जा सकता है।

इससे इतना तो सुनिश्चित हो पाता है कि कंपनियां कम से कम कागजों पर कानूनों का उल्लंघन नहीं कर रही हैं। मगर सत्ताधारी पार्टी जिस तरह यौन उत्पीड़न के आरोप में घिरे शक्तिशाली व्यक्ति को बचाती हुई प्रतीत हो रही है उससे तो यही लगता है कि कंपनियां भी अगर नियमों में कोई ढिलाई बरतती हैं तो उनके खिलाफ कदाचित ही कोई बड़ी कार्रवाई की जाएगी।

Also Read: विश्लेषण: सरकारी नीतियां तय करेंगी कि किस करवट बैठेगी भारत की इकॉनमिक ग्रोथ

इससे एक संदेश यह भी जा रहा है कि अगर कोई महिला यौन उत्पीड़न की शिकायत करती भी है तो उसे शायद ही कोई गंभीरता से लेगा। यह एक ऐसी समस्या जिससे हम सभी अवगत है।

पश्चिमी देशों में यौन उत्पीड़न या किसी अन्य शिकायत पर शिकायतकर्ता की बात को स्वाभाविक रूप में गंभीरता से लिया जाता है मगर भारत में ऐसी शिकायतों पर सुनवाई करने से पहले तमाम तकनीकी पहलुओं जैसे शिकायतकर्ता की मंशा आदि पर समय जाया किया जाता है। यह बड़े दुख की बात है कि जिन महिलाओं ने वैश्विक स्तर पर खेल के मैदान में भारत को गौरवान्वित किया है उनकी बात को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है।

अगर इन महिलाओं के साथ ऐसा बरताव हो सकता है तो अन्य संगठनों में काम करने वाली महिलाओं के साथ क्या होगा इस बात की कल्पना आसानी से की जा सकता है। खासकर, सरकार के सुस्त रवैये को देखते हुए तो ‘बेटी बचाओ’ का नारा एक मजाक लगने लगा है।

First Published : May 11, 2023 | 10:10 PM IST