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अर्थतंत्र: केंद्रीय बैंक क्यों खरीद रहे इतना सोना?

चीन बड़ी मात्रा में सोना खरीद रहा है और दुनिया में यह सोना रखने वाले सबसे बड़े देशों में एक है मगर इसके कुल विदेशी मुद्रा भंडार में इसकी हिस्सेदारी मात्र 4.6 प्रतिशत है।

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राजेश कुमार   
Last Updated- May 28, 2024 | 10:56 PM IST

सोने की मांग बढ़ने से पिछले दो वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका भाव 30 प्रतिशत से भी अधिक चढ़ चुका है। भारतीय बाजारों में तो सोने के दाम में पंख लग गए हैं। दाम में मौजूदा तेजी सोने के साथ एक महत्त्वपूर्ण सैद्धांतिक तथ्य से मेल नहीं खाती है। सोना नियमित आय का स्रोत नहीं है इसलिए ब्याज दरें कम रहने की स्थिति में इसे रखने में संभावित नुकसान कम रहता है। परंतु, वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें कई दशकों के ऊंचे स्तर पर रहने के बावजूद सोने के भाव में भारी इजाफा देखा जा रहा है।

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के अधिकारी संकेत दे रहे हैं कि ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर रह सकती हैं। सोने के भाव में तेजी इसलिए भी ध्यान खींच रही कि अमेरिका मुद्रा डॉलर तुलनात्मक रूप से मजबूत है तब भी सोने की चमक कम नहीं हो रही है। अमेरिकी मुद्रा डॉलर और सोने के मूल्य में ज्यादातर अवसरों पर उल्टा संबंध दिखा है। यानी जब डॉलर कमजोर होता है तो उस स्थिति में सोने की कीमतें बढ़ जाती हैं।

पिछले कुछ समय से दुनिया के केंद्रीय बैंक लगातार सोना खरीद रहे हैं और यह इसके दाम में बढ़ोतरी के प्रमुख कारणों में एक है। 2024 की पहली तिमाही में एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों से निवेश निकलने के दौरान भी केंद्रीय बैंकों ने खरीदारी जारी रखी। विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) के अनुसार जनवरी-मार्च 2024 में केंद्रीय बैंकों ने 290 टन सोना खरीदा है।

इससे पहले पहली तिमाही में इतनी भारी मात्रा में सोना नहीं खरीदा गया था। चीन, भारत और तुर्किये के केंद्रीय बैंक सोना खरीदने में सबसे आगे रहे हैं। वर्ष 2024 की शेष अवधि में भी केंद्रीय बैंक सोना खरीदने की अपनी रफ्तार कम नहीं होने देंगे। मगर केंद्रीय बैंक इतना सोना क्यों खरीद रहे हैं?

सोना परंपरागत रूप से केंद्रीय बैंक के भंडार का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है। अनुमानों के अनुसार अब तक जितनी मात्रा में सोने का उत्पादन हुआ है उनका पांचवां हिस्सा केंद्रीय बैंकों के भंडारों में है। केंद्रीय बैंक प्रायः अपने भंडार में विविधता लाने के लिए सोना खरीदते हैं। पिछले आंकड़े बताते हैं कि बॉन्ड एवं शेयरों जैसी परंपरागत परिसंपत्तियों के साथ सोने का मजबूत संबंध नहीं रहा है।

यह कहा जा रहा है कि कुछ केंद्रीय बैंक कई कारणों से अमेरिकी परिसंपत्तियों पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए सोना खरीद रहे हैं। इन कारणों में एक है गंभीर भू-राजनीतिक स्थिति और वैश्विक स्तर पर देशों के बीच बढ़ती दूरियां। जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों ने उसका (रूस) विदेशी मुद्रा भंडार जब्त कर लिया।

इससे दुनिया के दूसरे देशों में भय व्याप्त हो गया है। पश्चिमी देशों ने रूस के लगभग 300 अरब डॉलर भंडार पर ताला जड़ दिया है। भू-राजनीतिक समीकरण में अमेरिकी खेमे में नहीं रहने वाले किसी देश को ऐसे ही परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। सोना रखने में इतना जोखिम नहीं है क्योंकि यह किसी भी देश के अधिकार क्षेत्र में ही रहता है।

साबुत सोने (फिजिकल गोल्ड) में चूक (डिफॉल्ट) का जोखिम शून्य रहता है। हालांकि, इस बात पर चर्चा करना भी जरूरी है कि क्या भू-राजनीतिक बिखराव और लगातार बढ़ते तनाव के बीच सोना केंद्रीय बैंकों के लिए एक मूल्यवान परिसंपत्ति साबित हो सकता है? छोटे देशों के लिए यह संभव है कि वे अपने भंडार का एक बड़ा हिस्सा सोने में निवेश कर दें मगर विदेशी मुद्रा भंडार से बड़े स्तर पर जुड़े बड़े केंद्रीय बैंकों के लिए यह संभव नहीं है।

चीन बड़ी मात्रा में सोना खरीद रहा है और दुनिया में यह सोना रखने वाले सबसे बड़े देशों में एक है मगर इसके कुल विदेशी मुद्रा भंडार में इसकी (सोने की) हिस्सेदारी मात्र 4.6 प्रतिशत है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) सोने का भंडार रखने के मामले में दुनिया का नौवां सबसे बड़ा बैंक है। इसके कुल विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से नीचे है। रूस के भंडार में सोने की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत पहुंच गई है।

इस बात के मजबूत कारण मौजूद हैं कि क्यों सोना केंद्रीय बैंक के बहीखातों में वित्तीय परिसंपत्तियों की जगह बहुत अधिक नहीं ले पाएगा। यह बात भी ध्यान में रखने लायक है कि सोने के साथ जुड़ी सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी आपूर्ति सीमित है। लिहाजा, केंद्रीय बैंकों में इसके भंडार में इसकी कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं और इसके साथ ही निवेश जोखिम भी बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए अगर चीन ने सोने का भंडार बढ़ाकर दोगुना कर दिया है तो इसका मतलब है कि लगभग तीन तिमाहियों में उत्पादित सोने की पूरी मात्रा खरीद ली है।

आरबीआई जैसे केंद्रीय बैंक मुद्रा पर पूंजी से जुड़े प्रभाव कम करने के लिए बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा रखते हैं। विदेशी मुद्रा बाजार में स्थिरता बनाए रखने के लिए केंद्रीय बैंक विदेशी परिसंपत्तियां खरीदते एवं बेचते हैं। सोने की खरीद-बिक्री तेजी से होती है मगर केंद्रीय बैंकों की तरफ से भारी मात्रा में सोने की बिकवाली के समय इसके दाम पर उल्टा असर हो सकता है।

चूंकि, शेयर या बॉन्ड की तरह सोने का मूल्य किसी वस्तु या वित्तीय साधन से नहीं जुड़ा होता है इसलिए केंद्रीय बैंकों द्वारा बड़े स्तर पर खरीदारी या बिकवाली से इसका (सोने के दाम) झुकाव किसी भी तरफ हो सकता है।

उदाहरण के लिए चीन के केंद्रीय बैंक ने पिछले दो वर्षों के दौरान 200 अरब डॉलर मूल्य के अमेरिकी बॉन्ड बेचे हैं और इससे बाजार में कोई खास असर नहीं हुआ है। चीन ने अपनी मुद्रा युआन को मजबूती देने के लिए यह कदम उठाया है, जो 2023 में 9 प्रतिशत तक लुढ़क गया था। चीन के केंद्रीय बैंक के पास लगभग 161 अरब डॉलर सोना जमा है। मगर वहां का केंद्रीय बैंक इसे बेचता है तो निश्चित तौर पर इसकी कीमत पर बड़ा असर होगा। एक परिसंपत्ति के रूप में सोने के साथ लोगों का जुड़ाव भी काफी अधिक होता है और यह बात 1991 में भारत में विदेशी मुद्रा संकट के दौरान दिख चुकी है।

इस तरह, केंद्रीय बैंक अपने भंडार में विविधता लाने के लिए अक्सर सीमित मात्रा में सोना रखते हैं। अमेरिकी मुद्रा डॉलर के सामने इसकी कोई विशेष भूमिका नहीं होती है। दुनिया में इस समय सभी विदेशी मुद्राओं का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा डॉलर में है और 80 प्रतिशत से अधिक व्यापार भी इसी में होता है।

विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा से आर्थिक एवं राजनीतिक बिखराव बढ़ता ही जा रहा है। इसके दुनिया के लिए ऐसे विकट परिणाम हैं जिनका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। मगर इस रणनीतिक एवं वित्तीय संघर्ष में सोने की कोई बड़ी भूमिका नहीं दिख रही है। सोने की आपूर्ति सीमित होती है इसलिए इसकी मांग में मामूली बदलाव से इसकी कीमतों पर असर अधिक हो सकता है।

First Published : May 28, 2024 | 10:56 PM IST