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राष्ट्रपति चुनाव में कहां खड़े हैं भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य दल

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 6:51 PM IST

देश के नये राष्ट्रपति के चुनाव की तैयारी आरंभ हो चुकी है।इस वर्ष जुलाई तक नये राष्ट्रपति का निर्वाचन आवश्यक है। ऐसे में सभी दल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के संबंध में अपनी-अपनी स्थिति का आकलन करने में लगे हुए हैं।
राष्ट्रपति के चुनाव में भारतीय संसद के दोनों सदनों के सदस्य तथा सभी विधानसभाओं के विधायक मतदान करते हैं। सांसदों के मत, विधायकों के मतों की तुलना में अधिक कीमती माने जाते हैं। प्रत्येक सांसद के मत का मान जहां 708 होता है, वहीं  अलग-अलग राज्यों के विधायकों का मान उन राज्यों की आबादी से निर्धारित होता है। इसका निर्धारण सन 1971 की जनगणना तथा उन राज्यों की विधानसभाओं की कुल सीटों के आधार पर किया जाता है। यदि इस गणना को ध्यान में रखा जाए तो हम देख सकते हैं कि राजग फिलहाल संप्रग से बहुत आगे है। हालांकि जून में 52 सांसद सेवानिवृत्त होने वाले हैं तथा उनकी जगह नये सांसद चुने जाएंगे लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कम से कम संसद में राजग को संप्रग पर बढ़त हासिल है। कुल 776 सांसदों में से राजग के पास 442 सांसद हैं। इनमें से 326 सांसद लोक सभा में और 116 सांसद राज्य सभा में हैं। उसके पास राष्ट्रपति चुनावों के 310,000 से अधिक मत हैं जबकि संप्रग के सभी गठबंधन साझेदारों को मिलाकर देखा जाए तो उसके पास लगभग 96,000 मत ही हैं।
परंतु संसद के सभी दल राजग या संप्रग के सदस्य भी नहीं हैं। कुछ दल जैसे कि तृणमूल कांग्रेस, राजग का समर्थन नहीं कर सकते। इन दलों के पास लगभग 90,000 मत हैं। वहीं राजग के पास ऐसे समर्थक भी हैं जो उसके गठबंधन साझेदार नहीं हैं। उदाहरण के लिए बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक ने हाल ही में यह घोषणा की है कि उनकी पार्टी गैर भाजपा विपक्षी दलों के साझा मोर्चा बनाकर राष्ट्रपति पद का दावेदार खड़ा करने के पक्ष में नहीं है। बीजू जनता दल जैसे दलों की बात करें तो राष्ट्रपति चुनावों में उनके पास लगभग 47,000 मत हैं।
इस तरह कहा जा सकता है कि संसद के आंकड़े तो स्पष्ट हैं। भले ही संपूर्ण विपक्ष एक साथ आ जाए लेकिन वह भाजपा के प्रत्याशी को केवल संसदीय उपस्थिति के आधार पर पराजित नहीं कर सकता है।
हालांकि जब हम विधानसभाओं के मतों पर विचार करते हैं तो यह गणना बदल जाती है। विधानसभाओं में अकेले भाजपा के पास राष्ट्रपति चुनाव के करीब 184,000 मत हैं। ऐसा इस तथ्य की वजह से है कि पार्टी देश के कई राज्यों में सत्ता में है जहां बड़ी तादाद में उसके विधायक तो हैं ही, साथ ही ऐसे राज्यों में भी उसके अनेक विधायक हैं जहां पार्टी सत्ता में नहीं है।
उत्तर प्रदेश में पार्टी के विधायकों की तादाद 2017 की तुलना में कम हुई है (उस वर्ष रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बने थे)। अगर इसमें गठबंधन साझेदारों को शामिल कर दिया जाए तो राज्यों में राजग के पास राष्ट्रपति चुनावों के लिए करीब 218,000 मत हैं। वहीं दूसरी ओर संप्रग के पास करीब 162,000 मत हैं। यानी यहां दोनों के बीच मतों का अंतर बहुत अधिक नहीं है।
अगर आप राष्ट्रपति चुनाव के गैर राजग दलों के मतों की गणना करें तो यह बहुमत पहले से भी अधिक कमजोर नजर आने लगता है। उदाहरण के लिए समाजवादी पार्टी के पास उत्तर प्रदेश विधानसभा में 111 विधायक हैं।
राष्ट्रपति चुनाव में उत्तर प्रदेश के विधायकों के मतों का भार किसी भी अन्य राज्य के विधायकों से अधिक है। गैर संप्रग, गैर राजग दलों की बात करें तो आम आदमी पार्टी समेत ऐसे अन्य दलों के पास राष्ट्रपति चुनाव में 161,000 वोट हैं। बिना आंकड़ों के विस्तार में गए हम कह सकते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए इस बार राजग के संसद और राज्य विधानसभाओं के संयुक्त आंकड़े बहुमत से करीब 12,000 कम हैं। लेकिन ऐसा उसी स्थिति में होगा जब समूचा विपक्ष भाजपा के खिलाफ एकजुट हो जाए।
ऐसा होने की संभावना नहीं नजर आती। आम आदमी पार्टी ने घोषणा की है कि वह न तो भाजपा का साथ देगी और न ही कांग्रेस का। माना जा सकता है कि उसकी यह बात राष्ट्रपति चुनावों पर भी लागू होगी। हालांकि पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल को अभी इस बात को स्पष्ट करना है।
परंतु भाजपा के तरकश में कई शक्तिशाली तीर हैं। उसे पता है कि आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस और तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति कभी भी कांग्रेस का साथ नहीं देंगी। भाजपा इस बात को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है।
तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि वह कांग्रेस विरोधी-भाजपा विरोधी दलों की एक बैठक बुलाना चाहती हैं ताकि विपक्ष की ओर से एक साझा प्रत्याशी को समर्थन दिया जा सके।
यह बात गठबंधन साझेदारों के मामले में कांग्रेस की स्थिति को बहुत संवेदनशील बना देती है। देश की सबसे बड़ी पुरानी पार्टी चाहे तो अत्यंत विनम्रतापूर्वक यह घोषणा कर सकती है कि वह ऐसे किसी भी प्रत्याशी का समर्थन करने को तैयार है जो राजग को पराजित कर सके, भले ही वह कांग्रेस का प्रत्याशी न हो । यदि ऐसा होता है तो राष्ट्रपति चुनाव दिलचस्प मोड़ ले लेगा। हालांकि तब भी राजग के प्रत्याशी के राष्ट्रपति चुने जाने की संभावना, संप्रग के प्रत्याशी के चुनाव जीतने की तुलना में अधिक रहेगी।

First Published : May 21, 2022 | 12:25 AM IST