बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुनियादी ढांचा और संचार के लिए राष्ट्रव्यापी मास्टर प्लान की शुरुआत की जिसे उन्होंने ‘गति शक्ति’ का नाम दिया। इस योजना का आकार 100 लाख करोड़ रुपये बताया जा रहा है, हालांकि यह निश्चित नहीं है कि व्यय का यह स्तर कैसे हासिल किया जाएगा। प्रधानमंत्री के भाषण से अनुमान लगता है कि कार्यक्रम के तहत विविध मॉडल वाला संचार सुनिश्चित किया जाएगा और 16 मंत्रालयों को साथ लाकर परियोजनाओं के क्रियान्वयन में सुधार लाने का प्रयास किया जाएगा। परंतु इस दौरान योजना निर्माण में समन्वय भी आवश्यक है। विविध मॉडल वाले संचार में यह अक्सर कमजोर कड़ी साबित हुआ है। उदाहरण के लिए दिल्ली मेट्रो का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की अन्य परिवहन सेवाओं के साथ कमजोर संपर्क है। यदि मास्टर प्लान को विभिन्न अंशधारकों द्वारा सही ढंग से तैयार किया जाए तो यह सुनिश्चित होगा कि निवेशक और निर्णय लेने वालों के पास आगे का एक स्पष्ट खाका होगा।
सरकार का इरादा और इस शुरुआत के पहले प्रधानमंत्री का निवेशकों और कारोबारी जगत के समर्थन वाला रुख दोनों स्वागत करने लायक हैं। उन्होंने गति शक्ति की बात करते हुए कहा कि निजी कारोबारियों को स्पष्टता और निरंतरता मुहैया कराई जाएगी ताकि निवेश के माहौल को गति प्रदान की जा सके और नीतिगत जोखिम कम किया जा सके। कैबिनेट सचिव के अधीन सचिवों का एक अधिकारप्राप्त समूह क्रियान्वयन का प्रबंधन करेगा और वही मास्टर प्लान में जरूरत के मुताबिक बदलाव करेगा। यहां अहम बात यह है कि बुनियादी क्षेत्र के मास्टर प्लान में केवल राज्य और राजनीतिक प्राथमिकताओं पर ध्यान नहीं दिया जाए (ऐसी बातों ने भारतीय रेल के नियोजन को बेपटरी किया है) बल्कि उसे आंतरिक और बाहरी बाजारों के बीच रचनात्मक संबंध कायम करने पर भी ध्यान देना चाहिए। समर्पित फ्रेट कॉरिडोर निजी क्षेत्र के अनुकूल पहल के बेहतरीन उदाहरण हैं और मास्टर प्लान में भी ऐसी पहल की जानी चाहिए। इसके बावजूद सही क्रियान्वयन की मदद से ही यह सुनिश्चित हो सकेगा कि सभी अंशधारक, खासकर राज्य सरकारें और नागरिक समाज आदि को साथ लिया जाए। केंद्र सरकार ने अतीत में बुनियादी विकास को लेकर जो योजनाएं बनाईं वे इसलिए नाकाम रहीं क्योंकि वे जटिल थीं और सरकारी नियामकों ने उन्हें लेकर विरोधाभासी रुख अपनाया। कुछ मामलों में नागरिक समाज के समूहों ने भी उनका तगड़ा विरोध किया। योजना बनाते समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए और इसके लिए उसे पारदर्शी और समावेशी होना पड़ेगा।
कुछ विशिष्ट क्षेत्रों पर खास ध्यान देने की जरूरत होगी। जब तक बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित और किफायती नहीं होगी तब तक बुनियादी क्षेत्र में निवेशकों को आकर्षित करना आसान नहीं होगा। बिजली क्षेत्र में लगातार सुधार की जरूरत बनी हुई है और इसे निरंतर राहत की जरूरत पड़ती है। ऐसी स्थिति निरंतर नहीं बनी रह सकती है और लंबी अवधि में यह बात वृद्धि को प्रभावित करेगी। बिजली प्रदाता को लेकर उपभोक्ताओं और औद्योगिक चयन पर जोर तथा अंतिम छोर तक प्रतिस्पर्धा बरकरार रहनी चाहिए तभी यह क्षेत्र देश के विकास में योगदान कर सकेगा। अतीत में बुनियादी परियोजनाओं में निजी-सार्वजनिक भागीदारी इसलिए बेपटरी हुई क्योंकि सरकार और उद्योग जगत के रिश्ते ठीक नहीं थे। हाल में हवाई अड्डों के निजीकरण में भी ऐसी ही दिक्कतें दिखीं और यहां एकाधिकार निर्मित हो गया जो आगे चलकर समस्या पैदा करेगा। कुछ अन्य क्षेत्र भी अतिशय नियमन, हस्तक्षेप और शुल्क आदि से पीडि़त हैं। दूरसंचार क्षेत्र दशकों तक तेजी का वाहक रहा लेकिन अब वह संकट में है। एयर इंडिया का निजीकरण और राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन तथा अब गति शक्ति जैसी योजना यकीनन यह भरोसा पैदा करती है कि सरकार इन समस्याओं को हल करने का प्रयास कर रही है। विनियम के मामले में इरादे और जमीनी कदम भी 100 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य से कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।