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शेयर बाजार में कयास पर अंकुश जरूरी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 12:05 AM IST

शेयर बाजार में कीमतों में बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। शेयर कीमतों में बदलाव या वृहद स्तर पर बाजार में अनिश्चितता के लिए केवल शेयर से जुड़ी मूल बातों को प्रभावित करने वाले कारक ही उत्तरदायी नहीं होते हैं। मनोधारणा या अव्यावहारिक सोच और इससे उत्पन्न होने वाली परिस्थितियां भी बाजार में कारोबार पर असर डालती हैं। सभी लोग यह तथ्य स्वीकार भी कर चुके हैं। सक्षम बाजार सिद्धांत (एफिशिअंट मार्केट थ्योरी या ईएमटी) पर पहले किए गए शोध में केवल यह पाया गया था कि वित्तीय बाजारों में पर्याप्त प्रतिस्पद्र्धा होती है इसलिए ज्यादातर कारोबारियों के लिए मुनाफा कमाने के अवसर निरंतर उपलब्ध नहीं रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह सिद्धांत अव्यावहारिक कीमतों और बाजार में अत्यधिक अनिश्चितता की स्थिति के साथ भी लागू हो सकता है। इस संदर्भ में सक्षम बाजार का सिद्धांत स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं करता है। शेयर बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव का व्यापक असर होता है और इससे निवेशक, वास्तविक अर्थव्यवस्था और आर्थिक कल्याण आदि पहलू भी प्रभावित होते हैं।
अगर निवेशकों को उचित मूल्य पर ठोस एवं विश्वसनीय वित्तीय सलाह उपलब्ध होती तो यह काफी मददगार साबित हो सकती थी। अफसोस की बात है कि फिलहाल निवेशकों को ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं है और मिलती भी है तो उसके लिए उन्हें अधिक भुगतान करना पड़ता है। प्राय: वित्तीय सलाहकार सलाह देने में सभी दृष्टिकोण से सक्षम नहीं होते हैं। इस वजह से वित्तीय सलाह लेने के लिए निवेशकों के पास अधिक विकल्प नहीं हैं। अगर वित्तीय सलाह विश्वसनीय होती है तो शुल्क अधिक हो सकता है जो स्वयं एक समस्या है। इसे देखते हुए निवेशक अपने अनुभव एवं ज्ञान का इस्तेमाल करते हैं मगर शेयर बाजार में दांव लगाने के लिए यह पर्याप्त साबित नहीं होता है। कभी-कभी तो यह निवेशकों को गलत दिशा में ले जा सकता है। दरअसल निवेशकों की कोई गलती नहीं है और वे केवल वही कर सकते हैं जो उनके वश में है। प्राय: निवेशक निवेश से जुड़े पहलुओं को नहीं समझ पाते हैं। इसके पीछे एक कारण यह है कि निवेश प्रक्रिया जितनी आसान दिखती है वह वास्तव में उतनी आसान होती नहीं है।
वित्तीय सलाहकारों की भी अपनी दिक्कतें होती हैं। उन्हें एक ऐसे बाजार में सलाह देनी पड़ती है जो मनोधारणा या कयास पर आधारित है। हम सभी जानते हैं कि बाजार में कारोबार कयास एवं मनोधारणा पर टिका होता है। ज्यादातर वित्तीय सलाह शेयरों की बुनियादी मजबूती एवं कयास दोनों को ध्यान में रखकर दी जाती हैं, इसलिए कोई भी वित्तीय सलाहकार मनोधारणा को नजरअंदाज करने की गलती नहीं कर सकता है। अगर सलाहकारों एवं कारोबारियों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित हो जाए और शेयर एवं बाजार की बुनियादी बातों पर पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो उस स्थिति में क्या होगा! मगर ऐसा नहीं है। अफसोस की बात है कि वित्तीय सलाहकारों को जो शिक्षा दी जाती है वह समुचित और व्यापक नहीं होती है और इसमें वित्तीय इतिहास, राजनीतिक अर्थव्यवस्था, मनोविज्ञान, तकनीक एवं अर्थशास्त्र जैसे विषय शामिल नहीं होते हैं।
अंतिम मगर एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें संपत्ति और विकल्प चुनने की स्वतंत्रता के अधिकार मिले हुए हैं। लिहाजा निवेशकों पर किसी वित्तीय योजनाओं में किसी खास विधि से निवेश के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता है। इन सभी बातों का नतीजा हमें साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि क्यों शेयर कीमतें किसी भी ऊपरी या निचले स्तर पर या इनके इर्द-गिर्द घूम सकती हैं। इस समस्या को देखते इस लेखक ने एक तीन सूत्री सलाह दी है। यह तीन सूत्री सलाह बाजार में हस्तक्षेप से अधिक मौजूदा नीतिगत ढांचे में व्यापक बदलाव से जुड़ा है। हम इस वक्त जिस स्थिति में हैं उसके अनुसार अनुसार तीनों सलाह लीक से हटकर हो सकती हैं मगर इसका यह कतई मतलब नहीं है कि इनका क्रियान्वयन अचानक एवं अनियोजित ढंग से हो।
पहली बात, सबसे पहले हमें उन छात्रों की चयन प्रक्रिया में सुधार करना होगा जो वित्तीय सलाह देने के के पेशे में दिलचस्पी रखते हैं। इसके अलावा वित्तीय सलाहकारों को मान्यता देने की पूरी प्रक्रिया (शिक्षा, परीक्षा, अभिप्रमाणन) में वृहद स्तर पर सुधार करना होगा। ऐसा करने से वित्तीय सलाहकारों की गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता बनी रहेगी। दूसरी अहम बात यह है कि वित्तीय सलाहकार केवल बुनियादी बातों के आधार पर वित्तीय सलाह देने के लिए प्रशिक्षित किए जाएं और उन्हें यह बताया जाए कि मौजूदा स्थिति या भविष्य में मनोधारणा या कयास के आधार पर सलाह नहीं दी जानी चाहिए। इससे वित्तीय सलाहकारों और कारोबारियों के बीच समन्वय की समस्या दूर हो जाएगी।
तीसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बाजार में निवेश करने से पहले निवेशकों के  लिए पेशेवर वित्तीय सलाह लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए। मगर इसके साथ-साथ उन्हें वित्तीय सलाह के लिए विभिन्न विकल्पों के चयन की स्वतंत्रता भी दी जानी चाहिए। इससे पूंजीवादी या मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी संपत्ति और विकल्प चुनने की स्वतंत्रता का प्रावधान भी बरकरार रखने में मदद मिलेगी। चूंकि, जिस नीति की सिफारिश की गई है उसमे वित्तीय सलाह अनिवार्य होगी इसलिए हमारे पास इतना बड़ा बाजार होना चाहिए ताकि गुणवत्तापूर्ण वित्तीय सलाह उचित मूल्य पर मिलना संभव हो जाए।
जनवरी 2020 में निफ्टी 50 सूचकांक के लिए प्राइस-टू-बुक अनुपात 3.81 के स्तर पर पहुंच गया था। मार्च 2020 में यह कम होकर 2.17 रह गया। यह फिलहाल 4.5 है और तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए करीब 2 है। अगर निवेशक पूरी तरह निवेश प्रक्रिया में निपुण होते और उन्हें विश्वसनीय और उचित मूल्य पर वित्तीय सलाह मिली होती तो परिदृश्य कुछ और होता। मगर क्या निवेशक इस ओर ध्यान देंगे? इसके लिए एक मिलते-जुलते उदाहरण पर विचार किया जा सकता है। लोग कानूनी एवं चिकित्सकीय सलाह को पूरी गंभीरता से लेते हैं। इससे यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोग पुख्ता एवं विश्वसनीय वित्तीय सलाह भी स्वीकार करेंगे। उस स्थिति में शेयर बाजार बिना किसी किंतु-परंतु के साथ पूरी क्षमता के साथ कारोबार करेगा।
(लेखक भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, दिल्ली केंद्र में अतिथि प्राध्यापक हैं।)

First Published : October 21, 2021 | 11:26 PM IST