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देश में 2021-22 में मध्य-आय वर्ग की आमदनी में इजाफा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 8:35 PM IST

भारत में जून 2021 से उपभोक्ताओं की धारणा लगातार मजबूत हो रही है। जून 2021 और फरवरी 2022 के बीच उपभोक्ता धारणा सूचकांक (आईसीएस) 31.9 प्रतिशत ऊपर चढ़ा है। मार्च में समाप्त हुए पहले तीन सप्ताहों में सूचकांक में 8.2 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इस तरह कोविड महामारी की दूसरी लहर के बाद उपभोक्ताओं की धारणा को पहुंची चोट के बाद सूचकांक में शानदार तेजी आई है। दूसरी लहर के दौरान मार्च और जून 2021 के बीच उपभोक्ताओं की धारणा में 15.5 प्रतिशत की कमी आई थी। जून के बाद जारी तेजी ने नुकसान की भरपाई कर ली है।
 उपभोक्ता धारणा में तेजी वैसे परिवारों की वजह से आई है जिनकी आय में एक वर्ष पहले की तुलना में इजाफा हुआ है। उन परिवारों का भी योगदान रहा है जिन्हें लगता है कि आने वाले वर्ष में उनकी आय बढ़ जाएगी। उन परिवारों की संख्या में भी इजाफा हुआ है जिन्हें लगता है कि एक वर्ष पहले की तुलना में उपभोक्ता वस्तुएं (कंज्यूमर ड्यूरेबल्स) खरीदने का यह बेहतर समय है। मगर चिंता की एक बात यह रही है कि यह आशावाद देश के सभी परिवारों के विचार में एक समान रूप से परिलक्षित नहीं हुआ। लोग अल्प एवं दीर्घ अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत उत्साहित नहीं थे।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि जून 2021 और फरवरी 2022 के बीच उपभोक्ताओं की धारणा गरीब परिवारों में अधिक सुधरी है। वास्तव में इन परिवारों में धारणा में सुधार का महत्त्व थोड़ा इसलिए फीका पड़ जाता है क्योंकि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच गरीब परिवारों की धारणा पर सबसे अधिक चोट पड़ी थी। यानी में उनकी धारणा में सुधारा काफी निचले स्तर से हुआ है। सालाना 1 लाख रुपये से कम आय वाले परिवारों में उपभोक्ता धारणा 49.5 प्रतिशत मजबूत हुई। इससे पहले इसमें 28.7 प्रतिशत की गिरावट आई थी। वैसे तो यह एक शानदार सुधार है मगर भारत में कुल परिवारों की धारणा के लिहाज से यह बहुत मायने नहीं रखता है। इन परिवारों का अनुपात कम है और भारतीय उपभोक्ता बाजार में इनकी हिस्सेदारी छोटी है। महामारी से पहले 2019-20 में इन परिवारों के समूह की कुल परिवारों की संख्या में हिस्सेदारी 9.8 प्रतिशत और सभी परिवारों की कुल आय में हिस्सेदारी 3.1 प्रतिशत थी। 2020-21 में कोविड महामारी के दौरान इस समूह की हिस्सेदारी बढ़ गई क्योंकि इस दौरान वृहद पारिवारिक स्तर पर आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी। कुल परिवारों और उनकी आय में इसकी हिस्सेदारी बढ़कर क्रमश: 16.6 प्रतिशत और 5.7 प्रतिशत हो गई। वर्ष 2020-21 में इन अनुपातों में कोई खास बदलाव नहीं देखा गया।
वर्ष 2021-22 में 1 लाख से 2 लाख रुपये सालाना आय वाले परिवारों की संख्या घटती प्रतीत हो रही है। इससे पहले 2017-18 और 2020-21 में ऐसे परिवारों की हिस्सेदारी देश के कुल परिवारों में 44-45 प्रतिशत हुआ करती थी। मगर 2021-22 की पहली छमाही में उनकी हिस्सेदारी कम होकर 25 प्रतिशत रह गई। कुल आय में उनकी हिस्सेदारी भी 31 प्रतिशत से कम होकर 14 प्रतिशत रह गई। इस समूह की उपभोक्ता धारणा जून 2021 और फरवरी 2022 के बीच 31 प्रतिशत तक बढ़ गई।
ऐसा लग रहा है कि कई परिवार अब 1-2 लाख रुपये आय के दायरे से ऊंची आय वाले दायरे में आ रहे हैं। इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि 2021-22 की पहली छमाही में इस दायरे में परिवारों की संख्या में कमी आई है मगर कम आय श्रेणी में आने वाले परिवारों की संख्या अपरिवर्तित रही है जबकि ऊंची आय श्रेणी में परिवारों की संख्या बढ़ी है। इस वर्ष की पहली छमाही में परिवारों की आय में सुधार के संकेत स्पष्ट थे। शेष महीनों के आंकड़े अभी नहीं आए हैं। मगर उपभोक्ताओं की धारणा में लगतार सुधार से संकेत मिलते हैं कि पारिवारिक आय में 2021-22 की दूसरी छमाही में भी सुधार जारी रह सकता है। सालाना 2 लाख से 5 लाख आय वाले परिवारों की उपभोक्ता धारणा जून 2021 और फरवरी 2022 के बीच 28.3 प्रतिशत बढ़ गई। यह आय दायरा भारतीय उपभोक्ता बाजार का सबसे महत्तवपूर्ण खंड बन गया है। देश में कुल परिवारों में इनकी हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है और कुल परिवारों की आय में इनका हिस्सा 56 प्रतिशत है। हाल तक कुल परिवारों में इनकी हिस्सेदारी 33 प्रतिशत और कुल आय में 45 प्रतिशत हुआ करती थी। पूर्ण रूप से कहें तो उपभोक्ता धारणा सूचकांक इस आय समूह में दूसरे आय समूहों की तुलना में सबसे ऊंचे स्तर पर है।
सालाना 5 लाख से 10 लाख रुपये अर्जित करने परिवारों में उपभोक्ता धारणा सूचकांक जून 2021 के बाद 8.1 प्रतिशत तक बढ़ गई। कोविड महामारी की दूसरी लहर में इस आय वर्ग में आने वाले परिवार प्रभावित नहीं हुए थे। उनकी धारणा स्थिर हो गई थी मगर दूसरे समूहों की तरह नीचे नहीं गई थी। ऐसे परिवारों का अनुपात अपेक्षाकृत छोटा है। सभी परिवारों में इनकी हिस्सेदारी केवल 7.1 प्रतिशत है मगर कुल परिवारों की आय में इनकी हिस्सेदारी 19.7 प्रतिशत है। भारत के कुल उपभोक्ता बाजार में सालाना 10 लाख से अधिक आय अर्जित करने वाले परिवारों की संख्या छोटी है। 2021-22 की पहली छमाही में देश के कुल परिवारों में इनकी हिस्सेदारी 0.9 प्रतिशत और कुल आय में हिस्सेदारी 5.2 प्रतिशत थी। दूसरी लहर में ऐसे परिवारों की उपभोक्ता धारणा में 3.9 प्रतिशत की कमी आई थी। तब से इनमें सुधार 1.2 प्रतिशत के साथ उत्साजनक नहीं रहा है। दिसंबर 2021 में इस समूह की उपभोक्ता धारणा शिखर पर पहुंच गई थी मगर जनवरी और फरवरी 2022 दोनों में इनमें गिरावट आई है। ऐसे समूह की आय का करीब 75 प्रतिशत हिस्सा बचत मद में चला जाता है। ऐसा लगता है कि शेयर बाजार में गिरावट की वजह से इस समूह की धारणा पर असर हुआ है। मध्य-आय वर्ग वाले लोगों की आय में सुधार हो रहा है और यह बात उनकी मजबूत होती धारणा में भी परिलक्षित होती है।

First Published : March 24, 2022 | 11:19 PM IST