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राजकोषीय बाधाएं

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:28 PM IST

आम बजट में पूंजीगत व्यय के आवंटन में हुई बढ़ोतरी की सभी ने सराहना की है। अर्थव्यवस्था महामारी के बाद मची उथलपुथल से उबर रही है और निजी क्षेत्र निवेश करने का इच्छुक नहीं है क्योंकि मांग कमजोर है। ऐसे में आशा की जा रही है कि सरकार का पूंजीगत व्यय वृद्धि को गति देने में मदद करेगा तथा समय बीतने के साथ निजी निवेश भी आएगा। सरकार का उच्च पूंजीगत व्यय तथा बुनियादी ढांचे में सुधार होने से मध्यम अवधि में वृद्धि की संभावनाएं बेहतर होंगी। हालांकि भारत को बुनियादी ढांचे में भारी निवेश की जरूरत है लेकिन राजकोषीय स्थिति ऐसी नहीं है कि सरकार इस क्षेत्र में निरंतर खर्च कर सके। यहां तक कि अगले वित्त वर्ष के लिए भी सरकार राजस्व व्यय में कमी करके ही पूंजीगत व्यय बढ़ाने जा रही है जो शायद बहुत व्यावहारिक कदम न साबित हो। सरकार ने राजस्व व्यय में एक फीसदी से भी कम इजाफे की बात कही है जो हाल के उदाहरणों के अनुरूप नहीं है। यह दलील दी जा रही है कि सरकार ने सब्सिडी और ग्रामीण रोजगार योजना के लिए पर्याप्त आवंटन नहीं किया है। महामारी के कारण भी बजट पर अतिरिक्त मांग का बोझ पड़ सकता है।
समेकित स्तर पर देखें तो सरकार का कुल व्यय केवल 4.6 फीसदी बढऩे की बात कही गई है जबकि सरकार ने महंगाई समायोजित किए बगैर अर्थव्यवस्था के 11.1 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करने का अनुमान जताया है। यह आंकड़ा अपने आप में दिखाता है कि सरकार का अनुमान सीमित है। दूसरे शब्दों में कहें तो चालू वित्त वर्ष से तुलना करने पर सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सरकारी व्यय अगले वर्ष कम हो जाएगा। इससे पता चलता है कि सरकार वित्तीय मोर्चे पर तंगी से जूझ रही है। सरकार ने पूंजीगत व्यय का आवंटन बढ़ाया लेकिन समेकित कर्ज पर ब्याज भुगतान भी चालू वर्ष की तुलना में 15 फीसदी बढऩे का अनुमान है। अगले वर्ष ब्याज भुगतान में लगने वाली राशि 2020-21 की तुलना में 38 फीसदी अधिक होगी। यह राशि केंद्र सरकार के शुद्ध कर राजस्व के 48 फीसदी के बराबर होगी। उधारी के लगातार ऊंचे स्तर पर बने रहने से ब्याज का बोझ बढ़ेगा। अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष तक केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी के 60 फीसदी तक हो जाएगा जो मध्यम अवधि के जीडीपी के 40 फीसदी के लक्ष्य से अधिक होगा। ऐसे में सरकारी व्यय को वृद्धि के साथ समायोजित रखने तथा डेट और जीडीपी अनुपात को कम करने के लिए सरकार को कर और जीडीपी अनुपात बढ़ाना होगा। गैर कर राजस्व इसमें मदद कर सकते हैं लेकिन उनकी अपनी सीमा है।
अगले वित्त वर्ष में केंद्र सरकार का कर-जीडीपी अनुपात चालू वर्ष के 10.8 फीसदी से घटकर 10.7 फीसदी रह जाने की आशा है। बीते कुछ वर्षों में यह अनुपात स्थिर रहा है और बजट में इस विषय में कुछ नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए सुझाव यह दिया गया कि पूंजीगत लाभ पर कर बढ़ाया जाए तथा साथ ही व्यक्तिगत आय कर के क्षेत्र में रियायतों और छूट को तार्किक बनाया जाए। वस्तु एवं सेवा कर के कमजोर प्रदर्शन ने भी कर संग्रह पर असर डाला। हालांकि संग्रह में सुधार हुआ है लेकिन दरों को तार्किक बनाने का काम अभी बाकी है।
सरकार का सामान्य कर जीडीपी के 90 फीसदी के आसपास है। ऐसे में कर और जीडीपी के अनुपात में महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी किए बिना सरकारी वित्त को संभालना मुश्किल होगा। ऐसे में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणालियों पर समग्र दृष्टि डालने की आवश्यकता है। दरों को तार्किक बनाने और अनुपालन में सुधार करने से जरूरी राजकोषीय राहत मिल सकती है।

First Published : February 2, 2022 | 11:22 PM IST