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Editorial: आकर्षक लिस्टिंग: Startup और PSU के लिए IPO और डीलिस्टिंग नियमों में ढील

सेबी बोर्ड द्वारा पिछले हफ्ते लिए गए महत्वपूर्ण फैसलों से कई पहलुओं पर स्पष्टता मिलती है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 22, 2025 | 11:03 PM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने गत सप्ताह कई अहम निर्णय लिए। इन्हें साथ मिलाकर देखा जाए तो ये कई बिंदुओं को स्पष्ट करते हैं। बदलावों का एक हिस्सा स्टार्टअप को लेकर चिंताएं दूर करता है। एक अन्य बड़ा कदम है अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (एआईएफ) नियमन के तहत को-इन्वेस्टमेंट व्हीकल (सीआईवी) ढांचे को मंजूर करना। सेबी ने रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (रीट्स) तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (इनविट्स) के संचालन से संबंधित नियमन में भी बदलाव किए हैं जो संबंधित पक्षों तथा ऐसे पक्षों के पास मौजूद यूनिट्स के वर्गीकरण को प्रभावित करेंगे। इसके अलावा सेबी ने कुछ खास किस्म के सार्वजनिक उपक्रमों के लिए सूचीबद्धता समाप्त करने को भी आसान बनाया है।

स्टार्टअप में इंप्लॉयी स्टॉक ओनरशिप प्लान (ईसॉप्स) को जारी करने से संबंधित स्पष्टीकरण ने संस्थापकों को राहत प्रदान की है। पहले जो मानक थे उनके तहत संस्थापकों और प्रवर्तकों को ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) के समय ईसॉप्स रखने की इजाजत नहीं थी। नए नियमों के तहत उन्हें ईसॉप्स जारी किए जा सकते हैं और अगर ऐसे ईसॉप्स डीआरएचपी को फाइल किए जाने के एक साल पहले जारी किए गए हों तो वे उनका इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

इसके अलावा नियामक ने यह अनिवार्य किया है कि डीआरएचपी फाइल करने के पहले वरिष्ठ प्रबंधन के शेयरों को डीमैटीरियिलाइज किया जाए। नियामक ने अनिवार्य परिवर्तनीय प्रतिभूतियों यानी सीसीएस से निकले शेयर रखने वाले निवेशकों के लिए एक वर्ष की लॉक-इन अवधि को भी खत्म कर दिया है। इसका इस्तेमाल कई बार ऐसे निवेशकों को ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) में भागीदारी करने से रोकने के लिए किया जाता था। ये बदलाव किसी स्टार्टअप को विदेश में लॉन्च करके के बाद भारत में सूचीबद्ध करने के चलन में मददगार होंगे।

इसके अलावा सेबी ने विदेशी वेंचर कैपिटल फंड्स, अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (एआईएफ) और सरकारी वित्तीय संस्थानों के पास मौजूद शेयरों को प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश के लिए न्यूनतम प्रवर्तक अंशदान में शामिल करने की अनुमति दे दी है। ये बदलाव स्टार्टअप के लिए सकारात्मक हैं। ऐसे समय में जबकि वैश्विक वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता उच्चतम स्तर पर है, ये बदलाव स्टार्टअप को भारत में फंड जुटाने में मदद करेंगे। नियामक ने एक फ्रेमवर्क भी घोषित किया है जो ऐसे सरकारी उपक्रमों को आसानी से सूचीबद्धता समाप्त करने में मदद करेगा जिनमें सरकार की हिस्सेदारी कम से कम 90 फीसदी है।  इससे पांच सूचीबद्ध सरकारी उपक्रमों को लाभ होगा।

पहली और दूसरी श्रेणी के एआईएफ अब सीआईवी बना सकते हैं जो एआईएफ में निवेशकों को जोड़ने में मददगार साबित होगा। अब तक अगर किसी एआईएफ का निवेशक ऐसी कंपनी में अतिरिक्त निवेश करना चाहता था जिसमें एआईएफ ने भी निवेश किया हो तो इस अतिरिक्त निवेश को बाहर से लाना पड़ता था। पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं यानी पीएमएस का प्रयोग करके ऐसा करना कुछ प्रतिबंधों के दायरे में आ गया। पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं (पीएमएस) का उपयोग करके ऐसा करने पर गैर-सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया और सह-निवेशकों को सलाह देने वाले निवेश प्रबंधकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सीआईवी इस प्रक्रिया को काफी आसान बनाता है।

रीट‌्स और इनविट्स में संशोधन के मुताबिक संबंधित पक्षों द्वारा रखी गई कोई यूनिट्स ‘सार्वजनिक’ में नहीं गिनी जाएंगी। एक अन्य अहम संशोधन के मुताबिक होल्डिंग कंपनियों को अब यह इजाजत दी गई है कि वे अपनी स्वतंत्र ऋणात्मक शुद्ध वितरण योग्य नकदी प्रवाह को विशेष उद्देश्य से बनी कंपनियों (एसपीवी) से प्राप्त नकदी के मुकाबले समायोजित कर सकें। पहले यह जरूरी था कि होल्डिंग कंपनियां एसपीवी से प्राप्त 100 फीसदी नकदी को किसी रीट या इनविट में लगाएं, लेकिन अब उन्हें अपने नकदी प्रवाह को समायोजित करने की छूट है।

बशर्ते कि इसकी उचित जानकारी दी जाए। इसके अलावा सेबी ने निजी स्थापना वाले इनविट्स के लिए न्यूनतम आवंटन की राशि को पहले के एक करोड़ रुपये से कम करके 25 लाख रुपये कर दिया है। इन सबको मिलाकर देखा जाए तो सेबी के निर्णय भारतीय बाजारों को सूचीबद्धता के लिए आकर्षक बनाएंगे और एआईएफ के लिए कारोबारी माहौल को बेहतर बनाते हुए सूचीबद्धता समाप्त करने के इच्छुक सरकारी उपक्रमों के लिए चीजें आसान बनाएंगे।

 

First Published : June 22, 2025 | 10:42 PM IST