संपादकीय

Editorial: एक और युद्ध विराम

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन के साथ कारोबारी जंग में 90 दिन का विराम देने की व्यवस्था कर दी है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 12, 2025 | 11:03 PM IST

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन के साथ कारोबारी जंग में 90 दिन का विराम देने की व्यवस्था कर दी है। दोनों देशों ने संकेत दिया है कि उन्होंने एक दूसरे के आयात पर जो अत्यधिक ऊंचे टैरिफ लागू किए थे उनमें भारी कमी की जा सकती है। टैरिफ में यह कमी एक व्यापार समझौते की उम्मीद के साथ की जाएगी। यह बात याद रखनी होगी कि जब ट्रंप ने अपने प्रतिशोधात्मक शुल्क (यह जवाबी शुल्क नहीं था क्योंकि इसमें सामने वाले देश की टैरिफ दर को ध्यान में नहीं रखा गया था) को 90 दिन के लिए स्थगित करने की घोषणा की थी तब चीन को इससे बाहर रखा गया था। चीन से होने वाले आयात पर दूसरे देशों से अधिक शुल्क लगाया गया था जो करीब 145 फीसदी था। इसकी प्रतिक्रिया में चीन ने भी विभिन्न उत्पादों पर 125 फीसदी शुल्क लगा दिया था। अब दोनों देश 115 फीसदी की कमी करके इन्हें क्रमश: 30 फीसदी और 10 फीसदी पर ले आएंगे। दुनिया भर के शेयर बाजारों ने इसे लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। एसऐंडपी वायदा में कारोबार 3 फीसदी ऊपर रहा जबकि हॉन्गकॉन्ग का हैंगसेंग भी इतना ही ऊपर गया। कुछ यूरोपीय बाजारों ने इससे भी बेहतर प्रदर्शन किया।

दोनों देशों के पास समझौते पर पहुंचने की वजह है। चीन की फैक्ट्रियों में बनने वाली वस्तुओं की मांग में लगातार कमी आई है क्योंकि अमेरिकी बाजार के दरवाजे उसके लिए बंद हैं। हालांकि उन्होंने इन वस्तुओं को अन्य देशों में भेजकर भरपाई करने का प्रयास किया। चीन ने इस उम्मीद में अपने माल को दूसरे देशों में भेजा कि वहां से उन्हें दोबारा पैक करके अमेरिका भेजा जा सकेगा। इस कोशिश के बावजूद चीन की अर्थव्यवस्था के धीमा पड़ने के अनुमान लगातार सामने आते रहे। इस बीच अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले अनेक लोग हाल के दिनों में उस समय घबराहट के शिकार हो गए जब अमेरिकी बंदरगाहों से खाली कंटेनर शिप और खाली पड़े अनलोडिंग क्षेत्र की तस्वीरें और वीडियो आने लगे। वैश्विक व्यापार और ऑर्डर थोड़े अंतराल के साथ काम करते हैं। अगर अगले कुछ दिनों में यह युद्ध विराम नहीं हुआ होता तो अमेरिका में टैरिफ बढ़ोतरी का प्रभाव महसूस किया जाने लगता।

इसे ट्रंप की ओर से कदम वापस खींचने के रूप में ही देखा जा सकता है। यह एक तरह से इस बात की स्वीकारोक्ति है कि अमेरिका और चीन की कारोबारी जंग फिलहाल अमेरिका के लिए अधिक नुकसानदेह साबित हो रही थी। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि दोनों ही देश एक दूसरे के उत्पादों पर प्रतिबंध नहीं चाहते। यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि ट्रंप प्रशासन को पता चल गया है कि चीन के उत्पादों पर पूर्ण रोक कभी भी सही विचार था ही नहीं। यह मानना उचित होगा कि 90 दिनों का इस्तेमाल चीन के साथ समझौता करने के लिए किया जाएगा। बेहतर होगा कि अमेरिकी प्रशासन इस अवधि का इस्तेमाल यह आकलन करने में लगाए कि टैरिफ में बढ़ोतरी के कारण कीमतों में कितना इजाफा झेला जा सकता है। फिलहाल जो स्थितियां हैं उनमें यह स्पष्ट नहीं है कि वह मांगों को लेकर क्या प्रस्ताव लाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी प्रशासन इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं है कि वह अमेरिकी उपभोक्ताओं को कितना कष्ट देने को तैयार है।

भारत समेत अन्य देशों का डर यह है कि अमेरिका के साथ सौदेबाजी के उनके प्रयास चीन के साथ बातचीत के परिणामों के अधीन हो जाएंगे। अगर ट्रंप चीन से संतुष्ट रहते हैं तो भारत को बेहतर अवसर मिलेंगे। अगर इसके उलट स्थिति बनी तो वह भारत के लिए असहज हालात हो सकते हैं। भारत को अमेरिका पर नजर रखते हुए प्रतीक्षा करनी चाहिए जबकि यूरोपीय संघ जैसे वैकल्पिक समझौतों को लेकर तेजी से आगे बढ़ना चाहिए।

First Published : May 12, 2025 | 11:03 PM IST