संपादकीय

Editorial: प्रकटीकरण और नियमन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक विनियमन आयोग के विचार का जिक्र किया ताकि पुराने कानूनों और नियमन से निजात पाई जा सके।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- March 09, 2025 | 10:38 PM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नए अध्यक्ष तुहिन कांत पांडेय ने गत सप्ताह पद संभालने के बाद पहली सार्वजनिक उपस्थिति में कुछ उत्साहवर्धक टिप्पणियां की हैं। बाजार में पारदर्शिता पर जोर देते हुए पांडेय ने कहा कि यह नियामक पर भी लागू होती है। उन्होंने कहा कि नियामक को विभिन्न मोर्चों पर पारदर्शी होने की आवश्यकता है। इसमें बोर्ड में हितों का टकराव भी शामिल है। दिलचस्प बात है कि यह हिस्सा नियामक की वेबसाइट पर अपलोड किए गए भाषण में शामिल नहीं है। हालांकि टिप्पणी उनके लिए तैयार किए गए भाषण का हिस्सा थी या नहीं लेकिन अब उनके विचार सार्वजनिक मंच पर हैं और सभी को उनका स्वागत करना चाहिए। सेबी को भी जल्द से जल्द इसका पालन शुरू करना चाहिए।

प्रकटीकरण संबंधी टिप्पणियों को पांडेय की पूर्ववर्ती सेबी प्रमुख माधवी पुरी बुच के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। एक अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च जो अब बंद हो चुकी है, उसने बुच पर अदाणी समूह पर चल रही जांच को लेकर हितों के टकराव का इल्जाम लगाया था। हिंडनबर्ग ने पहले भी अदाणी समूह पर कई इल्जाम लगाए थे। इसकी प्रतिक्रिया में बुच और नियामक दोनों ने वक्तव्य जारी किए। तब सेबी ने कहा कि उसके यहां प्रकटीकरण की ठोस व्यवस्था है। आरोपों की प्रकृति को देखते हुए (इस समाचार पत्र सहित) यह कहा गया कि सेबी को बेहतर मानक अपनाने चाहिए। उदाहरण के लिए अगस्त 2024 के संपादकीय में कहा गया था, ‘प्रमुख लोगों के प्रकटीकरण मानकों को मजबूती देने तथा भविष्य में किसी अटकल को समाप्त करने के लिए नियामक को ऐसे लोगों के वित्तीय हितों को सार्वजनिक करना चाहिए।’ आधुनिक वित्तीय बाजारों में जहां वित्तीय समेत तमाम फंड बहुत आसानी से आ और जा सकते हैं, विनियमित संस्थाओं और नियामक संस्था के प्रमुख लोगों के लिए सभी प्रासंगिक प्रकटीकरण होना चाहिए। इससे व्यवस्था में विश्वास मजबूत होगा।

प्रकटीकरण के विषय से अलग पांडेय ने कुछ अन्य अहम बातें भी कहीं जिनका उल्लेख जरूरी है। नियामक अधिकतम नियमन की ओर देखेगा। अगर कुछ कानून ऐसे हो गए हैं जो कोई उद्देश्य पूरा नहीं कर रहे हैं तो नियामक उनकी समीक्षा को लेकर खुला रुख रखेगा। यह सकारात्मक वक्तव्य है और सरकार की समग्र विचार प्रक्रिया के अनुरूप भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक विनियमन आयोग के विचार का जिक्र किया ताकि पुराने कानूनों और नियमन से निजात पाई जा सके। सेबी आंतरिक तौर पर बहुत कुछ कर सकता है जो नियमित संस्थानों के लिए हालात सामान्य बनाएगा। इस मोर्चे पर प्रतिभूति बाजार नियामक ऐसे नियमन को अपनाने पर काम कर रहा है जहां उभरती बाजार परिस्थितियों का ध्यान रखा जा सके। उदाहरण के लिए ऐसे बदलावों ने नए जमाने की तकनीकी कंपनियों को भारतीय शेयर बाजार से पूंजी जुटाने का अवसर दिया है। नियमन में निरंतर सुधार से भारतीय बाजार पूंजी जुटाने और सूचीबद्धता के लिहाज से बेहतर बनेगा। मौजूदा वित्त वर्ष में जनवरी तक, कंपनियों ने रिकॉर्ड 4 लाख करोड़ रुपये की इक्विटी पूंजी जुटाई जो 2023-24 में जुटाई गई कुल पूंजी से दोगुनी है। बीते वर्षों के दौरान सेबी ने भी म्युचुअल फंड्स की पहुंच बढ़ाने में भी मदद की है जिसने देश के पूंजी बाजारों को गहन बनाया है।

सेबी के चेयरमैन ने यह भी कहा कि नियामक विदेशी पूंजी जुटाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने को लेकर सचेत है और वह अंशधारकों के साथ संवाद का इच्छुक है। यह भी एक स्वस्थ संकेत है। अगर भारत को निरंतर टिकाऊ रूप से उच्च वृद्धि हासिल करनी है तो यह अहम होगा कि पूंजी बाजार सुचारु रूप से काम करें और बचत को न्यूनतम समस्या के साथ निवेश में ला सकें। हालांकि सेबी इस दिशा में काम कर रहा है लेकिन समय आ गया है कि प्रक्रियाओं को और सुसंगत बनाकर भारतीय पूंजी बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए संभावनाओं को बेहतर बनाया जा सके।

First Published : March 9, 2025 | 10:08 PM IST