लेख

Editorial: नई तकनीक से लैस दुनिया कर रही इंतजार

Published by
देवांशु दत्ता   
Last Updated- June 07, 2023 | 11:20 PM IST

भविष्यवादी जब बड़े एवं क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली तकनीक की बात करते हैं तो उनकी फेहरिस्त में नाभिकीय संलयन, हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स, क्वांटम कंप्यूटिंग और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) का जिक्र जरूर होता है।

इन चारों में पहली दो तकनीक स्वच्छ एवं अनंत ऊर्जा के स्रोत होते हैं जबकि तीसरी और चौथी तकनीक मिलकर वर्तमान दौर की कई पेचीदा समस्याओं का समाधान कर सकती हैं।

एआई के क्षेत्र में असाधारण प्रगति हुई है और यह अभूतपूर्व बदलाव लाने वाली तकनीक है। ऐसे ज्यादातर कार्य अब अल्गोरिद्म के जरिये हो रहे हैं जो पहले हम और आप किया करते थे। मगर अन्य तीन तकनीक का व्यावसायिक इस्तेमाल होने में कई वर्ष और लग सकते हैं।

नाभिकीय संलयन और फ्यूल सेल्स का बड़े स्तर और सामान्य स्थितियों में क्वांटम कंप्यूटिंग का इस्तेमाल होने से पहले कई तकनीकी चुनौतियों के समाधान खोजने होंगे। इन सभी बिंदुओं पर पिछले कई दशकों में अरबों डॉलर खर्च किए गए हैं जिनका कोई हिसाब-किताब नहीं है।

मगर कुछ लोगों का तर्क है कि अभियांत्रिकी से जुड़ी समस्याएं इतनी बड़ी हैं कि उनका बड़े स्तर पर समाधान खोजना असंभव हो सकता है। संलयन पर 1950 के दशक में और क्वांटम कंप्यूटिंग पर 1970 के दशक में शोध कार्य शुरू हुए थे। पहला हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स 19वीं शताब्दी में तैयार हुआ था। इन घटनाक्रम में लगे समय को देखकर लगता है कि कई तकनीकी समस्याएं आड़े आती हैं।

स्थिर एवं सक्षम फ्यूल सेल्स उपलब्ध हैं और इनसे कार, ट्रक एवं रेलगाड़ियां चलती हैं। मगर हाइड्रोजन भंडारण एवं परिवहन एक बड़ा प्रश्न खड़ा करता है। हाइड्रोजन सबसे हल्का तत्त्व होता है और इसी कारण बड़े स्तर पर इसका भंडारण करना काफी कठिन होता है।

हाइड्रोजन को द्रव में बदलने से इसका भंडारण करना आसान हो जाता है। हाइड्रोजन को द्रव में बदलने के लिए इस गैस को परम शून्य (एबसल्यूट जीरो) डिग्री तापमान (-273 डिग्री सेल्सियस) तक ठंडा करना पड़ता है मगर इसके लिए कुशल अभियांत्रिकी और काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। जिन टैंकों में यह विस्फोटक ईंधन रखा जाता है वे भी काफी महंगे होते हैं और इनका ढांचा तैयार करना भी आसान नहीं होता है।

हाइड्रोजन को ठंडा करने की आवश्यकता होती है तो संलयन प्रक्रिया के लिए उच्च तापमान की जरूरत होती है। संलयन के लिए ईंधन (सामान्यतः बिजली से आवेशित प्लाज्मा) को 2 करोड़ सेल्सियस तक या इसके गुणक में गर्म करना पड़ता है। स्पष्ट है कि इसके लिए काफी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

इतने ऊंचे तापमान पर कोई भी ठोस पदार्थ नहीं अपना स्वरूप कायम नहीं रख पाता है। इसे देखते भंडारण के लिए ईंधन को काफी मजबूत चुंबकीय क्षेत्र (मैग्नेटिक फील्ड) में रखना पड़ता है। जिस चैंबर में रासायनिक प्रतिक्रिया होती है वह क्षतिग्रस्त हो जाता है।

ये दोनों विधियां सफलतापूर्वक पूरी की गई हैं जिनमें तापमान 10 करोड़ डिग्री तक पहुंच जाता है। इनमें प्रभावशाली संलयन अभिक्रिया हुई हैं। मगर एक नियंत्रित संलयन अभिक्रिया संपन्न कराने पर आने वाली ऊर्जा की आवश्यकता इससे उत्पन्न ऊर्जा से कहीं अधिक होती है। इस दृष्टिकोण से व्यावहारिक रूप से इसका बहुत लाभ नहीं है।

इसके अलावा इस अभिक्रिया में इस्तेमाल होने वाले उपकरण भी काफी महंगे होते हैं। संयोग से एआई संभवतः संलयन के प्रयोग पर आने वाला खर्च कम कर सकती है। इसका कारण यह है कि एआई चुंबकीय क्षेत्र में आने वाले बदलाव और लेजर किरणों को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकती है। प्रयोगों के माध्यम से यह साबित भी हो चुका है।

क्वांटम कंप्यूटिंग के लिए अत्यधिक ठंडा, अत्यधिक स्थिर परिस्थितियों की दरकार होती है। क्वांटम कंप्यूटर लगभग परम शून्य तापमान पर काम करते हैं और इनमें कुछ किसी तरह की कंपन या धमक से बचाने के लिए सतह से ऊपर हवा में लटका दिए जाते हैं।

हालांकि, जब क्वांटम मशीन सामान्य मशीनों से जोड़े जाती हैं तभी ठीक ढंग से काम करती हैं और सामान्य उपकरण (चिप आदि) शून्य से 272 डिग्री सेल्सियस तापमान पर काम नहीं करते हैं। इसके अलावा क्यूबिट्स (क्वांटम कंप्यूटिंग में सूचनी की मौलिक इकाई) के साथ काम करने वाले सॉफ्टवेयर परंपरागत प्रोग्रामिंग में इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर से काफी अलग होते हैं।

क्वांटम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में कई काम हुए हैं जिनके साथ कई संभावनाएं जुड़ी हुई हैं। शोधकर्ता ऐसे क्यूबिट्स तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जो कमरे के तापमान पर काम करते हैं। इस प्रयास में शोधकर्ताओं को कुछ सफलता भी मिली है। कुछ शोधकर्ता ठंडे माहौल में काम करने वाले उपकरण तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं और इसमें भी कुछ हद तक सफलता हाथ लगी है।

इनमें कुछ शोध एवं विकास व्यवहार्यता के कसौटी पर खरा उतरे हैं। ऐसी उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों में अधिक सामान्य एवं सहज माहौल में भी काम करने वाले क्वांटम मशीन तैयार होने लगेंगे। ऐसा होने के बाद इन पर किए गए वित्तीय निवेश से लाभ उठाना दूसरी प्राथमिकता हो जाएगी। जब एआई क्वांटम कंप्यूटर पर चलाए जा सकेंगे तो इन दोनों की मदद से वित्तीय रूप से टिकाऊ संलयन रिएक्टर बनाने के हम करीब पहुंच जाएंगे या हाइड्रोजन के लिए सस्ती भंडारण सुविधा खोजने में मदद मिल जाएगी।

आदर्श रूप से वर्ष 2050 के आस-पास हमारे घरों में संलयन रिएक्टरों से बिजली पहुंचेगी। ये रिएक्टर स्वच्छ, सस्ती, असीमित ऊर्जा पैदा करें और सभी लोग क्वांटम मोबाइल से चलने वाली एआई का इस्तेमाल करेंगे और फ्यूल सेल्स से चलने वाले वाहनों में सफर करेंगे। ये सारी बातें असंभव नहीं हैं और जलवायु परिवर्तन के संकट के बीच इन क्षेत्रों में शोध एवं विकास करने की आवश्यकता काफी बढ़ गई है।

मगर इसके लिए बड़ी वैचारिक सफलता की जरूरत होगी। लोगों ने कई दशकों तक इस पर काम भी किया है मगर ऐसी सफलता नहीं मिली है। क्या कोई दूसरी योजना तैयार है?

First Published : June 7, 2023 | 11:20 PM IST